पटना यूनिवर्सिटी को केन्द्रीय यूनिवर्सिटी बनाना कितना मुमकिन?

पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाया जाए! अपने पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों को अपनी इस मांग को लेकर आवाज़ उठाते या आंदोलन करते देखा होगा. बिहार में जब भी कोई विशिष्ट नेता का कार्यक्रम पटना यूनिवर्सिटी में होता है तब तक यह मुद्दा और तेज़ हो जाता है. कई बार इस मुद्दे पर सियासत भी गर्म हो जाती है.

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पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाया जाए! अपने पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों को अपनी इस मांग को लेकर आवाज़ उठाते या आंदोलन करते देखा होगा. बिहार में जब भी कोई विशिष्ट नेता का कार्यक्रम पटना यूनिवर्सिटी में होता है तब तक यह मुद्दा और तेज़ हो जाता है. कई बार इस मुद्दे पर सियासत भी गर्म हो जाती है.

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हालत तो ऐसी है कि जब 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना यूनिवर्सिटी के 100 साल पूरे होने पर शताब्दी समारोह में आए थे उस समय भी छात्रों ने पटना यूनिवर्सिटी को केंद्रीय यूनिवर्सिटी बनाने की मांग ज़ोर शोर से उठाई थी. तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो उस मंच पर मौजूद थे, उन्होंने छात्रों की मांग को सही ठहराते हुए प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाया जाए.

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4 अगस्त 2019 को भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू पटना के सेंट्रल लाइब्रेरी में आए थे. उस वक्त भी सीएम नीतीश कुमार के साथ मंच पर मौजूदगी के वक़्त पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने के लिए नारे लगे थे. जिस पर उपराष्ट्रपति ने कहा था कि

"इस संबंध में जो संभव हो सकेगा इसके लिए प्रयास करूंगा"

इसके बाद वेंकैया नायडू ने राज्य सरकार से इस संबंध में पत्राचार भी किया था. लेकिन पटना यूनिवर्सिटी के तरफ़ से ही इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने का प्रस्ताव उपराष्ट्रपति भवन नहीं भेजा गया. उपराष्ट्रपति भवन से इस संबंध में राज्य सरकार से पूछताछ कर प्रस्ताव भेजने को कहा गया था लेकिन विडंबना तो यह हुई कि इस दिशा में विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से कोई कागज़ात ही उपलब्ध नहीं करवाए गए जिसके अभाव में यह मुद्दा जस-का-तस रह गया और कोई नतीजा नहीं निकला.

आपको संसद भवन लेकर चलते हैं. वहां भी यह मुद्दा कुछ कम चर्चा में नहीं रहा. तारीख 5 अगस्त साल 2022 को संसद सत्र के दौरान बीजेपी सांसद रामकृपाल यादव ने सदन में खड़े होकर पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की मांग की थी और कहा था कि

"बहुत समय से लोग पटना युनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की मांग करते रहे हैं.अब समय है कि शिक्षा मंत्री अपना ध्यान इस ओर भी आकर्षित करें"

इस क्रम में जदयू के नेता भी पीछे नहीं हैं. जदयू के कौशलेन्द्र कुमार ने भी संसद में खड़े होकर पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की बात कही थी.

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के छात्र नेता आदित्य आनंद ने इस विषय को लेकर कहा कि –

"बहुत पहले से पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की मांग चल रही है. लेकिन ना तो सरकार इस पर भी ध्यान दे रही है और ना ही विश्वविद्यालय प्रशासन. छात्रों को दोनों ओर से केवल निराशा ही हाथ लग रही है"

वहीं दूसरी ओर एनएसयूआई के बिहार सचिव और साथ ही पटना विश्वविद्यालय के छात्र नेता शाश्वत शेखर ने कहा-

"हम लोग इसके लिए बहुत समय पहले से ही संघर्ष कर रहे हैं. जब गठबंधन में भाजपा और जदयू की सरकार थी तब यह काम तो और आसानी से हो जाना चाहिए था. लेकिन इस मांग को लेकर केवल बात कागज़ी कार्रवाई तक ही सिमित रह जाती है"

हमने इस विषय पर जब पटना विश्वविद्यालय के डीन ऑफ स्टूडेंट वेलफेयर  से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया और ना ही वापस उसका जवाब दिया. उनके दफ्तर में घंटों इंतज़ार करने के बाद भी उनसे बात नहीं हो पायी.

50 वर्षों से उठाया जाता रहा है यह मुद्दा

पटना यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की मांग कोई नई नहीं है. यह मुद्दा पिछले 50 वर्षों से अलग-अलग समय पर उठाया जाता रहा है. आपको बता दें कि 1970 के दशक में छात्र नेता रहे रामरतन सिन्हा ने भी इसकी मांग उठाई थी जिसे उस वक़्त ख़ारिज कर दिया गया था.

हालांकि जब-जब यह मुद्दा गरम हुआ है तब-तब छात्रों को मांग के नाम पर केवल निराशा ही हासिल हुई है. आज भी स्थिति पहले जैसी ही है और मांग भी वही अटका पड़ा है. पत्रकारों से बात करते हुए जब पटना विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश कुमार चौधरी से इस विषय को लेकर उठाए गए कदम के पर सवाल पूछा गया था तब उन्होंने पत्रकारों को जवाब देते हुए कहा था कि

"पटना विश्वविद्यालय ने एक प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को पहले भेजा था जिसमें पीयू को सेंट्रल यूनिवर्सिटी का दर्जा दिए जाने की मांग की गई थी. लेकिन केंद्र सरकार के द्वारा यह मांग खारिज कर दी गई"

राज्य विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय में नहीं बदला जाएगा

2017 में शिक्षा मंत्रालय की तरफ़ से जारी एक रिपोर्ट जो पीआईबी के द्वारा प्रकाशित भी प्रकाशित की गई थी उसमें यह कहा गया था कि

"केंद्र सरकार ने कई कारणों से राज्य विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालयों में परिवर्तित नहीं करने का नीतिगत फैसला लिया है. केंद्रीय ने  यह फैसला विरासत के मुद्दों, मौजूदा कर्मचारियों के समायोजन और संबद्ध कॉलेजों की असंबद्धता के मद्देनजर लिया है"

राज्य विश्वविद्यालयों को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने के क्या हैं मापदंड

किसी विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने के पीछे कुछ मापदंड निर्धारित किए गए हैं. हालांकि इन नियमों में लगातार संशोधन होता रहा है. अगर बात ताज़ा नियम की करें तो किसी विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा तभी मिल सकता है जब उसके ऊपर किसी तरह का कोई बकाया ना हो. केवल राज्य सरकार का ही नहीं बल्कि वहां काम करने वाले नॉन टीचिंग स्टाफ के वेतन व पेंशन का बकाया भी नहीं होना चाहिए.

इसके अलावा शिक्षा की गुणवत्ता, बुनियादी ढांचे के निर्माण, शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों की मंजूरी, शासन, रखरखाव, अकादमिक अखंडता, संकाय की गुणवत्ता, विश्वविद्यालय के लिए संकाय और कर्मचारियों की प्रतिबद्धता आदि पर भी निर्भर करता है.

क्यों हो रहा है पटना विश्वविद्यालय इन मापदंडों पर फ़ेल

पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने से पहले यह समझना आवश्यक है कि पटना विश्वविद्यालय ऐसे कई मापदंडों और पैमाने पर खड़ा नहीं उतर पाता जिससे उसे केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जा सके. इसमें सबसे पहली बात आती है ऐतिहासिक गौरव की. एक वक्त था जब पटना विश्वविद्यालय को एशिया का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था.

यहां के छात्र बिना किसी कोचिंग संस्थान में पढ़ें यूपीएससी जैसी सर्वश्रेष्ठ परीक्षा को भी उत्तीर्ण कर लेते थे. पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे इसके उदाहरण हैं. बात अगर शोध की करें तो प्रोफेसर वशिष्ठ नारायण सिंह, प्रोफेसर एचसी वर्मा, प्रोफेसर केसी सिन्हा सरीखे लोग इस विश्वविद्यालय के गौरवपूर्ण इतिहास का उदाहरण हैं. लेकिन पटना विश्वविद्यालय का कोई गौरवशाली वर्तमान नहीं है. इसके शैक्षणिक स्तर में काफी गिरावट आई है.

दूसरा मसला है शिक्षकों की उपलब्धता. आपको बता दें पटना विश्वविद्यालय में मौजूदा छात्रों की संख्या 18,741 है लेकिन इसमें कार्यरत शिक्षकों की संख्या 448 है. अगर अनुपात निकाला जाए तो 42 छात्रों पर केवल एक शिक्षक हैं. हालत तो ऐसी है की कुछ-कुछ विभाग तो केवल एक से दो शिक्षकों की दया पर चल रहा है.

और तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कारण जैसा कि ऊपर भी बताया गया है कि कर्मचारियों का कोई बकाया नहीं होना चाहिए. चाहे वह नॉन-टीचिंग स्टाफ ही क्यों ना हो. पटना विश्वविद्यालय में अक्सर कई कर्मचारी हड़ताल पर रहते हैं. क्योंकि पिछले कई वर्षों से उन्हें वेतन नहीं दिया गया है. इन बुनियादी खामियों के बाद किसी विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा नियमानुसार तो नहीं दिया जा सकता.

पहले राज्य सरकार पटना विश्वविद्यालय को सही मायनों में सर्वश्रेष्ठ राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय के लिए जरूरी सुविधाएं दे और विकास के ऊपर कार्य करे. पटना विश्वविद्यालय के गौरवशाली अतीत को गौरवशाली वर्तमान में तब्दील करने का सफ़ल प्रयास करे तो शायद यह संभव है कि पटना विश्वविद्यालय एक दिन केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा हासिल कर भी ले.

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