भारत सरकार द्वारा शहरों में स्वच्छता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से स्वच्छता सर्वेक्षण की शुरुआत की गयी है. वर्ष 2023 में इसका आठवां संस्करण होने जा रहा है. इस आठवें संस्करण के चौथे पड़ाव की शुरुआत 1 जुलाई से हो गयी है. इस सर्वेक्षण में देश के 4800 से ज़्यादा शहर भाग ले रहे हैं.
क्या पटना स्वच्छता सर्वेक्षण में टॉप 20 में शामिल होगा?
इस बार के संस्करण में पटना पहली बार चार अलग-अलग तरह की कैटेगरी- गार्बेज फ्री सिटी, गंगा टाउन, वाटर प्लस और मुख्य सर्वे में भाग लेने वाला है. गार्बेज फ़्री सिटी और वाटर प्लस में अच्छे नंबर मिलने के बाद ही पटना 3 स्टार रेटिंग शहरों में शामिल हो सकता है. यह पहला मौका है जब पटना को किसी स्टार रेटिंग के लिए चयनित किया जाएगा.
नगर निगम के अधिकारियों का कहना है कि पटना इस बार टॉप 20 में शामिल हो सकता है. क्योंकि पिछली बार देशभर में पटना को 38वां रैंक मिला था.
इस बार सर्वे 9500 अंकों का होगा. एक शहर को सफ़ाई से जुड़े अलग-अलग मापदंड पर नंबर दिए जाते हैं, जैसे कि:
- कूड़ा इकट्ठा और ट्रांसपोर्ट करना
- कूड़े को प्रोसेस और नष्ट करना
- सस्टेनेबल सैनिटेशन
- नई और बेहतर प्रैक्टिस
- फल सब्जियों के मार्केट की हालत
- रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड की हालत
- शहर के इलाकों का सौंदर्यीकरण
- अतिक्रमण और नाली के पानी का ट्रीटमेंट
- लोगों की राय और स्वच्छता एप
सर्वे में सर्विस लेवल प्रोग्रेस के लिए 4830 अंक निर्धारित किए गए हैं. इसमें से भी 1600 अंक कूड़ा उठाव को लेकर दिए जायेंगें. यूस्ड वाटर मैनेजमेंट और सफ़ाईकर्मियों की सुरक्षा के लिए 1320 अंक निर्धारित है. वहीं कचरा प्रबंधन के 1910 अंक निर्धारित है.
स्वच्छता सर्वेक्षण में सिटीज़न फीडबैक होगा महत्वपूर्ण
स्वच्छता सर्वे में 1 जुलाई से 16 अगस्त तक सिटीजन फीडबैक लिया जाएगा. इसमें इस बार 12 की जगह केवल 4 प्रश्न ही पूछे जाएंगे. प्रत्येक प्रश्न के लिए 150 अंक निर्धारित किये गये हैं. इन प्रश्नों को ऑनलाइन के माध्यम से सिटिजन फीडबैक के तौर पर लिया जाएगा. इसमें नगर निगम मोबाइल एप, क्यूआर कोड और हेल्पलाइन नंबर के माध्यम से फीडबैक लेने की व्यवस्था है.
फीडबैक में चार प्रश्न पूछे जायेंगे:
- क्या आपके घर से प्रतिदिन कचरे का उठाव होता है?
- क्या आपके यहां से कचरा लेने वाला कर्मचारी कचरे को गीले और सूखे के तौर पर अलग-अलग कलेक्ट करता है?
- क्या आप अपने आस पास हमेशा साफ़-सफ़ाई देखते है?
- क्या आप अपने नज़दीक के पब्लिक टॉयलेट को गूगल पर खोज पाते हैं?
गीले और सूखे कचरे का अलग-अलग नहीं होता है उठाव
अगर हम इन्हीं चार प्रश्नों के आधार पर अपने शहर में स्वच्छता की स्थिति को समझने का प्रयास करें, तो अच्छे नंबर देना बहुत मुश्किल है. क्योंकि शहर में कूड़े का उठाव डोर-टू-डोर तो हो रहा है, लेकिन उसके निस्तारण की व्यवस्था बेहतर नहीं है.
सिटिजन फीडबैक में पूछे जाने वाला पहला प्रश्न है- क्या आपके घर से प्रतिदिन कचरे का उठाव होता है जिसका जवाब तो हां है. लेकिन वहीं दूसरे प्रश्न- क्या आपके यहां से कचरा लेने वाला कर्मचारी कचरे को गीले और सूखे के तौर पर अलग-अलग कलेक्ट करता है? जिसका सीधा जवाब है ना.
हनुमान नगर की रहने वाली कनक लता बताती हैं
हमारे मोहल्ले में रोज़ाना कचरे का उठाव होता है. लेकिन गीला और सूखा अलग करके नहीं लिया जाता है. एक बार बहुत पहले हमारे वार्ड की पूर्व पार्षद माला सिन्हा आई थीं. हमलोगों को अलग-अलग कचरा देने को कहा था. लेकिन जब कचरा लेने वाला ही कचरा एक जगह मिला कर ले जाता है तो अलग-अलग देने का क्या मतलब.
भंवर पोखर की रहने वाली गौरी बताती हैं
कचरा का उठाव तो रोज़ होता है लेकिन हमलोगों से कभी गीला-सूखा कचरा अलग करके नहीं मांगा गया है.
कचरा प्रोसेस करना तभी मुमकिन होता है जब घरों से निकलने वाला कचरा अलग-अलग कर दिया जाए. लेकिन जब घरों से ही कचरा अलग-अलग नहीं लिया जा रहा है तो उसकी प्रोसेसिंग करना कैसे संभव है?
राजधानी पटना से रोज़ाना कितना गीला और सूखा कचरा निकलता है? और इसके प्रोसेसिंग के लिए निगम क्या कदम उठा रहा है? इसकी जानकारी के लिए डेमोक्रेटिक चरखा ने पटना नगर निगम की अपर नगर आयुक्त शिला ईरानी से बात की. उन्होंने बताया कि किसी भी डाटा की जानकारी हमें निगम की पीआरओ देंगी.
वहीं जब हमने निगम की पीआरओ श्वेता भास्कर से बात किया तो उन्होंने बताया कि
अभी सभी कर्मी स्वच्छ सर्वेक्षण में थोड़ा व्यस्त हैं. डाटा देने में अभी वक्त लगेगा.
नियम क्या कहता है?
बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2007 और नगरीय ठोस कचरा (प्रबंधन एवं हैंडलिंग) नियम, 2000 के अनुसार, पीएमसी शहर में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए जिम्मेदार नगर निकाय है. साल 2018 तक पटना में ठोस कचरा प्रबंधन के लिए घरेलू कचरे को गली के खुले गड्ढे या सामुदायिक कूड़ा साइट में फेंकना एक प्रचलित प्रक्रिया थी. इस कचरे में जैविक और अजैविक दोनों तरह के कचरे सम्मिलित होते थे.
साल 2018 में केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन (SBM) की शुरुआत की थी. इसी मिशन के तहत पटना नगर निगम ने घर-घर जाकर कचरा इकट्ठा करने का एक व्यापक अभियान शुरू किया था. लेकिन इस कचरा उठाव में गीला और सूखा कचरा अलग नहीं किया गया.
केंद्रीय शहरी और आवासन मंत्रालय के स्वच्छ भारत मिशन वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार बिहार के 256 ULB के 5,236 वार्डों में से 3,579 (68%) वार्डों से डोर टू डोर कचरा का उठाव होता है. वहीं राज्य में रोज़ाना 6,106.05 टीडीपी (tons per day) कचरा निकलता है. जिसमें से मात्र 1,305.99 टीडीपी यानि 21% कचरा ही प्रोस्सेस हो पाता है. शेष 79% कचरा रोज़ाना बिना प्रोस्सेसिंग के, ऐसे ही पर्यावरण में जा रहा है.
शहर के बीचों बीच डंप हो रहे हैं कचरे
पटना शहर को स्वच्छता सर्वे 2023 में अपनी रैंकिंग सुधारने के लिए सबसे पहले शहर से निकलने वाले कचरे का उचित प्रबंधन करना होगा. स्वच्छता सर्वेक्षण में एक सवाल है: क्या आप अपने आसपास हमेशा साफ़-सफ़ाई देखते है? लेकिन इस सवाल का जवाब हां में देना काफ़ी मुश्किल है. क्योंकि गली-मोहल्ले और भीड़भाड़ वाले मार्केट में कूड़ा पॉइंट दिख जाना आम बात है.
वहीं बड़े कूड़े पॉइंट की बात की जाए तो शहर के बीच सचिवालय हॉल्ट के नजदीक एक बड़ा कूड़ा डंपिंग यार्ड है. कचरा डंप होने के कारण यहां रहने वाले लोगों को काफ़ी परेशानी हो रही है. पटना शहरी क्षेत्र में गर्दनीबाग कूड़ा डंपिंग यार्ड के आलावा दूसरा न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी से सटे, पानी टंकी के पास डंपिंग यार्ड है.
न्यू पाटलिपुत्र कॉलोनी का यार्ड सघन रिहाइशी इलाके के बीचो-बीच है. जबकि गर्दनीबाग का डंपिंग यार्ड सिविल सर्जन कार्यालय और गर्दनीबाग हॉस्पिटल के पास है. इन दोनों ही जगहों पर रोज़ाना सैंकड़ों टन कूड़ा डाला जाता है.
हालांकि पाटलिपुत्र कूड़ा डंपिंग यार्ड को घेर दिया गया है जबकि गर्दनीबाग का डंपिंग यार्ड बिल्कुल खुला है. यही वजह है कि गर्दनीबाग पुल पर चढऩे के साथ ही दूर से ही दुर्गंध आने लगती है.
गर्दनीबाग और पाटलिपुत्र में लोग दुर्गन्ध झेलने को मजबूर
गर्दनीबाग डंपिंग प्वाइंट से महज 20-25 मीटर की दूरी पर सिविल सर्जन कार्यालय और गर्दनीबाग हॉस्पिटल मौजूद है. सिविल सर्जन कार्यालय और गर्दनीबाग हॉस्पिटल के कारण रोज़ाना यहां हज़ारों लोग आते हैं. इसके अलावा हजारों लोग गर्दनीबाग पुल के पास से स्टेशन, मीठापुर, सचिवालय समेत अन्य स्थानों पर जाते हैं. जिसके कारण हज़ारों लोग हर दिन मजबूरी में दुर्गंध झेलने को मजबूर हैं.
दानापुर से रोज़ाना पटना आने वाले दीपक कुमार कहते हैं.
सालों बीत गए लेकिन यहां से आज तक कूड़ा यार्ड नहीं हटा है. बैरिया में जब डंपिंग यार्ड बन रहा था तब सुनने में आया था कि यहां से डंपिंग यार्ड हट जाएगा लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ.
दीपक कहते हैं
जब ट्रेन सचिवालय हॉल्ट के पास रूकती है तो सांस लेना मुश्किल हो जाता है, इतनी बदबू आती है. पास में ही सरकारी हॉस्पिटल भी है. पता नहीं वहां पेशेंट कैसे रहते हैं.
पटना नगर निगम दावा करती है कि शहर से निकलने वाले कचरे का रिसाइकल, रीयूज़ करने के दिशा में बेहतर कार्य किया जा रहा है. लेकिन सच्चाई आपको शहर के बीचो-बीच बने इस डंपिंग पॉइंट से पता लग सकती है.
स्वच्छ भारत मिशन के वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार बिहार में बिहार में 45 डंपिंग साईट हैं. जिनमें से 12 डंपिंग साईट गंगा किनारे बसे शहरों में स्थित है.
स्वच्छता सर्वेक्षण में कैसे होंगे पास
स्वच्छता सर्वे में बेहतर अंक लाने के लिए एक मुख्य आधार सफ़ाई है. शहर में साफ़-सफ़ाई रखने में सार्वजानिक शौचालयों की बहुत अहम् भूमिका होती है. इस सर्वेक्षण में चौथा प्रश्न भी शौचालय को लेकर ही है. क्या आप अपने नजदीक के पब्लिक टॉयलेट को गूगल पर खोज पाते हैं? लेकिन शौचालय को गूगल पर खोज पाना और उसका इस्तेमाल कर पाना दूसरी बात है.
किसी भी शहर में प्रवेश करने के तीन मुख्य मार्ग होते हैं. एक एयरपोर्ट, दूसरा रेलवे स्टेशन और तीसरा बस स्टैंड. अगर एयरपोर्ट एरिया को छोड़ दिया जाए तो पटना शहर में प्रवेश करने वाले दोनों मार्गों में गंदगी का अंबार है. बरसात के समय इन रास्तों की स्थिति नारकीय हो जाती है.
ट्रेन के द्वारा आने वाले लोगों के लिए पटना जंक्शन शहर का मुख्य रेलवे स्टेशन है. स्टेशन से निकलने वाले दो रास्ते- एक स्टेशन रोड, महावीर मंदिर और दूसरा रास्ता करबिगहिया की ओर जाता है. इन दोनों ही रास्तों में अतिक्रमण के कारण गंदगी रहती है.
स्टेशन के पास बेतरतीब बिखरा है कचरा
स्टेशन रोड के दोनों ओर ठेले और ऑटो के बेतरतीब कब्ज़े के कारण इस रास्ते में काफ़ी गंदगी रहती है. इसी रास्ते के पिलर नंबर 14, 15, और 16 के पास काफ़ी गंदगी है. स्थानीय दुकानदारों और यहां से गुजरने वाले लोगों द्वारा खुले में पेशाब करने के कारण, वहां से बिना नाक ढके गुजरना मुश्किल है. जबकि यहां निगम के द्वारा शौचालय और पेशाबघर का निर्माण किया गया है. लेकिन नियमित साफ़-सफ़ाई नहीं होने के कारण लोग उसका इस्तेमाल नहीं करते हैं.
स्थानीय दुकानदार अजीत कुमार कहते हैं.
शौचालय एकदम गंदा है. नगर निगम इसकी देखरेख नहीं करता है. सरकारी कर्मचारी और व्यवस्था दोनों काफी सुस्त और घटिया है. बदबू इतनी ज्यादा है कि आसपास के लोगों यहां खड़े भी नहीं रह सकते.
वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स की दुकान चलाने वाली स्थानीय महिला दुकानदार अनीता श्री कहती हैं.
शौचालय नहीं होने से सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को ही होती है. पुरुष तो कहीं भी खड़े हो जाते हैं लेकिन महिलायें ऐसा नहीं कर सकती हैं. कई बार हमलोगों ने नगर निगम में शिकायत भी की लेकिन उन्होंने कोई काम नहीं किया.
पटना जंक्शन जैसे व्यस्त क्षेत्र में स्थित शौचालय की स्थिति जब इतनी नारकीय है तो अन्य क्षेत्रों में बने शौचालयों की दशा क्या होगी इसको आसानी से समझा जा सकता है.
अगर पटना नगर निगम सही मायनों में, पटना को 3 स्टार रेटिंग वाले शहरों में शामिल करना चाहता है तो उसे सबसे पहले इन कमियों को सुधार लाना होगा. वहीं पटना को स्वच्छ और सुंदर देखने की चाह रखने वाले स्थानीय निवासियों को भी अपनी आदतों में सुधार लाकर इसमें सहयोग करना होगा.