राज्य के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल पीएमसीएच का हाल यह है कि यहां जांच और इलाज के लिए बुनियादी उपकरण मौजूद नहीं है. यह बात तब सामने आई है जब स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों से विभागवार मौजूद उपकरणों की सूची मांगी. राष्ट्रीय मेडिकल आयोग द्वारा जारी दिशा-निर्देश के आधार पर स्वास्थ्य विभाग ने अस्पतालों से उपकरणों की सूची मांगी है.
कहने के लिए पीएमसीएच राज्य का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है लेकिन यहां जब आप किसी किडनी की बीमारी से पीड़ित मरीज को इलाज के लिए भर्ती करेंगे तो भगवान भरोसे ही उसका इलाज संभव है. क्योकि पीएमसीएच के नेफ्रोलॉजी विभाग में वेंटीलेटर ही मौजूद नहीं है. बिना वेंटीलेटर के मरीजों का इलाज कैसे किया जा रहा है?
जब पीएमसीएच का यह हाल है तो अन्य सरकारी अस्पतालों की स्थिति का सहज अनुमान लगाया जा सकता है. सरकारी अस्पतालों में उपकरणों की कमी के कारण गरीब मरीजों को ज्यादा खर्च कर निजी अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ता है.
पीएमसीएच में नेफ्रोलॉजी विभाग साल 2013 से ही काम कर रहा है. लेकिन अभी तक इस विभाग में वेंटीलेटर कि सुविधा मुहाल नहीं हुई है. अगर किसी मरीज को वेंटीलेटर पर रखने कि जरूरत पड़े तो उसे दूसरे अस्पताल में रेफर करना पड़ता है. नेफ्रोलॉजी विभाग को कम से कम दो वेंटिलेटर, ईसीजी मशीन, पोर्टेबल एक्सरे, एबीजी मशीन और 10 बेड के आईसीयू की आवश्यकता है.
लेकिन विभाग इस कमी को दूर करने को लेकर गंभीर नहीं है. हालांकि विभाग में 30 डायलिसिस मशीन मौजूद है. अगर विभाग में वेंटिलेटर, ईसीजी मशीन, पोर्टेबल एक्सरे, एबीजी मशीन और 10 बेड के आईसीयू की व्यवस्था हो जाए तो किडनी फेल्योर मरीजों के इलाज में सहूलियत हो जाएगी.
वही बात अगर कार्डियोलॉजी विभाग की हो तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी नहीं है. यहां चार डीएम और एक डीएनबी डिग्रीधारी डॉक्टर मौजूद हैं. लेकिन केवल डॉक्टर के रहने से इलाज संभव नहीं है. विभाग में इलाज के लिए ज़रूरी उपकरणों की भी आवश्यकता होती है. हार्ट के मरीजों के इलाज के लिए विभाग में कैथ लैब, इमेज इंटेसीफायर, आईसीयू और पेस मेकर की ज़रूरत है ताकि मरीजों की सर्जरी हो सके या उन्हें पेसमेकर लगाया जा सके. वैसे मरीज जो गांव या दूर-दराज से यहां इलाज करवाने आते हैं उन्हें इन कमियों के वजह से किसी दूसरे अस्पताल में रेफर करना पड़ता है.
चर्म रोग विभाग के ओपीडी में राज्य भर से मरीज आते हैं. रोज इस विभाग में 400 से ज्यादा मरीज रजिस्ट्रेशन कराते हैं. चेहरे पर मस्सा, दाग-धब्बे से पीड़ित मरीज पीएमसीएच आते है. लेकिन यहां आने के बाद उन्हें निराशा ही हाथ लगती है. क्योंकि विभाग में इसके इलाज के लिए सीओटू लेज़र मशीन नहीं है. विभाग में नौ साल पहले लगभग 17 लाख रूपए के लागत से सीओटू मशीन लगाया गया था.
लेकिन मशीन खराब होने के कारण मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. फ़िलहाल विभाग में आरएफ मशीन से काम चलाया जा रहा है. वह भी ठीक से काम नहीं कर रहा है. निजी अस्पताल में इसी इलाफ के लिए मरीजों को 10 हजार तक खर्च करने पड़ते हैं, जबकि मशीन कि कीमत महज 9 से 10 लाख रूपए है.
नालंदा कि रहने वाली रश्मि (बदला हुआ नाम) बताती हैं कि
दिसंबर में मेरी शादी है. मेरे चेहरे के बाएं तरफ एक बड़ा सा मस्सा है. इसी का इलाज कराने यहां आई हूं. लेकिन यहां आने के बाद पता चला की मशीन खराब है, इलाज नहीं होगा. निजी अस्पताल में इसका इलाज बहुत महंगा है. लेकिन मजबूरी है इसलिए कराना पड़ेगा. यहां तो इस उम्मीद में आये थे कि इलाज सस्ते में हो जाएगा.
पीएमसीएच के चर्म विभाग में तलवा या हथेली में अधिक पसीना आने के इलाज के लिए वोइंटोफोरेसीस मशीन नहीं है जिससे दूर-दराज से इलाज कराने आ रहे मरीजों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
लखीसराय के रहने वाले राजीव कुमार बताते है कि
गर्मी के दिनों में मेरे हथेली और पैरों के तलवों में पसीना आता है. कुछ दिनों पहले पैरों के तलवें के पसीने के कारण गिर गया था. जिसके कारण पैर में मोच भी आ गया था. घर में सबके कहने के बाद पसीने का ईलाज कराने आया था लेकिन यहां आने पर पता चला की मशीन ही खराब है. अब गांव में ही होमियोपैथ से इलाज करवाऊंगा.
इसके अलावा अनचाहे बाल हटाने के लिए डायोड लेजर नहीं है. चेहरे से किसी प्रकार का दाग, लहसन, छाईं आदि हटाने के लिए एनडियाग मशीन 15 साल पहले लगाया गया था लेकिन पिछले दो साल से वह भी काम नहीं कर रहा है. सफेद दाग के इलाज के लिए पीयूबीए मशीन मौजूद है लेकिन वर्तमान में इसके लिए एडवांस नैरो बैंड यूवी मशीन और एक्जाइमर मशीन प्रचलन में हैं. वही विभाग में सेंकाई मशीन भी मौजूद नहीं है.
वहीं हड्डी विभाग कि बात की जाए तो यहां भी मरीजों की संख्या के मुकाबले उपकरण कम संख्या में हैं. मरीजों की संख्या बढ़ने या ज़रूरत पड़ने पर पावर ड्रिल और ब्लीडिंग रोकने के लिए डायोथर्मी मशीन किराए पर मंगाना पड़ता है और इसका खर्च भी मरीजों को ही उठाना पड़ता है.
शिशु विभाग में बच्चों के इलाज के लिए अधिकांश उपकरण हैं. लेकिन पीकू (पेडिएट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट) में अल्ट्रा सोनोग्राफी मशीन, पोर्टेबल एक्स-रे, एबीजी (आर्ट्रियल ब्लड गैस) मशीन की ज़रूरत है. पीएमसीएच में पीकू वार्ड अभी हाल ही में बनाया गया है.
अभी कुछ दिनों पहले कैंसर विभाग में भी उपकरण होने के बावजूद कर्मचारी की कमी के कारण कोबाल्ट मशीन द्वारा कि जाने वाली सेंकाई बंद होने के कगार पर थी.
राज्य के सरकारी अस्पतालों की दशा कमोबेश सब जगह एक जैसी ही है. राजधानी पटना में होने के बावजूद जब पीएमसीएच की दशा ऐसी है, तो राज्य के अन्य सरकारी अस्पतालों के हालात क्या होंगे?