नवादा: भूमि विवाद में जलाया दलितों के 34 घर, क्या उन्हें मिलेगा इंसाफ़?

नवादा में ज़मीन विवाद में दलितों के 34 घर जला दिए गए. लेकिन क्या इन्हें इंसाफ़ मिलेगा? क्या ये सिर्फ़ एक ज़मीन विवाद का नतीजा है या इसके पीछे कोई जातिगत हिंसा का एंगल है?

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नवादा: भूमि विवाद में जलाया दलितों के 34 घर, क्या उन्हें मिलेगा इंसाफ़?

बुधवार 18 सितम्बर की शाम नवादा जिले के मुफ़स्सिल थाना क्षेत्र के अंतर्गत पड़ने वाले देदौर गांव के कृष्णानगर दलित बस्ती में कथित दबंगों ने आग लगा दी. जिसमें मांझी और रविदास समुदाय से आने वाले 34 परिवारों के घर जलकर राख हो गए. झोपड़ियों में आग लगाने से पहले दबंगों ने कई राउंड हवाई फ़ायरिंग भी की. बताया जा रहा है कि ज़मीन विवाद में दबंगों ने घटना को अंजाम दिया. 

वहीं दूसरी ओर घटना को जातीय हिंसा से भी जोड़कर देखा जा रहा है. लेकिन पुलिस अधीक्षक अभिनव धीमान इसकी पुष्टि नहीं करते हैं. मीडिया में दिए बयान में अभिनव धीमान ने कहा “अभी इस मामले को ज़मीनी विवाद के तौर पर देखा जा रहा है. पीड़ित पक्ष और अभियुक्तों के बीच ज़मीनी विवाद चल रहा था. जाति एंगल के बारे पुष्टि नहीं करूंगा.” 

दरअसल, घटना के पीड़ित और अभियुक्त दोनों ही अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं. घटना में नंदू पासवान समेत 28 लोगों पर नामज़द रिपोर्ट दर्ज कराई गयी है. जिसमें मुख्य अभियुक्त नंदू पासवान समेत 15 लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है.

20 सितंबर को प्रेस कांफ्रेंस में नवादा एसपी अभिनव धीमान ने बताया “मामले में 15 लोगों की गिरफ़्तारी हो चुकी है. अभियुक्तों के पास से तीन देसी कट्टा, 6 बाइक, 3 कारतूस, 1 पिलेट बरामद हुई है. बाकी अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है.”

क्या ज़मीनी विवाद बना घटना का कारण?

बस्ती के लगभग 16 एकड़ जमीन को लेकर विवाद चल रहा है. शुरुआती पूछताछ और पीड़ितों द्वारा पुलिस में दर्ज कराए गये बयान के आधार पर इसे ज़मीनी विवाद का मामला ही माना जा सकता है. बस्ती में रहने वाले लोगों का कहना है कि वो लोग यहां 1994 से रह रहे हैं. उनके पास इसी पते का वोटर आईकार्ड, आधार कार्ड और राशनकार्ड मौजूद है.

पीड़ितों का कहना है कि यह ज़मीन रजिया बेगम के नाम पर है जिन्होंने इसे बिहार सरकार को दान में दे दिया था. एक तरफ़ ज़मीन को बिहार सरकार के स्वामित्व वाली 'अनाबाद बिहार सरकार ज़मीन' यानी भूदान में मिली हुई ज़मीन बताया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ़ दो पक्षों के बीच इस पर स्वामित्व को लेकर 1995 से जिला न्यायालय में केस भी चल रहा है.

90 के दशक में विवाद बढ़ने के बाद कृष्णानगर बस्ती के रहने वाले वीरेंद्र प्रसाद ने मुंसिफ कोर्ट नवादा में रमज़ान मियां, पिता चुल्हन मियां के खिलाफ़ टाइटल सूट (केस नंबर 22/95) केस दायर कर दिया.

याचिकाकर्ता वीरेंद्र प्रसाद मामले को लेकर कहते हैं “हम रमज़ान मियां पर केस किए हैं. क्योंकि उसने अपना ज़मीन बेच दिया और फिर मेरी ज़मीन बेचने लगे. तब मैंने टाइटल सूट फायल किया. केस करने के बाद भी दबंग लोगों ने ज़मीन लिखा लिया. दबंगों ने कहा हमलोग को लिख दो हम कब्ज़ा कर लेंगे.” 

राज्य में ज़मीन के खरीद बिक्री में होने वाली धांधली पर बात करते हुए वीरेंद्र कहते हैं “केस के मुताबिक ज़मीन का ख़रीद बिक्री नहीं होनी चाहिए था. लेकिन ज़मीन का बिक्री हो गयी, उसका म्यूटेशन हो गया. अनाबाद बिहार सरकार की ज़मीन की ना तो बिक्री होती है और ना ही उसका म्यूटेशन होता है.”

सरकारी फ़ाइलों में भी ज़मीन की जमाबंदी रमज़ान मियां पिता चुल्हन मियां के नाम पर है. नवादा जिले के जिला मजिस्ट्रेट आशुतोष शर्मा इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं “विवादित जमीन पहले सरकारी थी, जिसे बाद में निजी स्वामित्व का दिखाया गया.”

मामले में मुख्य अभियुक्त नंदू पासवान भी बस्ती की जमीन पर दावा करते हैं. नंदू पासवान के पिता सौखी पासवान और उनके तीन भाई सहदेव, जगदीश और सुमेश्वर ने यह ज़मीन खरीदी थी. परिवार हर साल इस ज़मीन का लगान भी अदा कर रहा है. 

मामले में अभियुक्त लोगों के परिजनों का दावा है कि उनके ज़मीन पर बस्ती के लोगों ने अवैध रूप से कब्ज़ा कर रखा है.  

घटना के बाद क्या हैं हालात?

घटना के बाद आसपास के क्षेत्रों में तनाव के माहौल को देखते हुए पुलिस की टीम गांव में कैंप कर रही है. इसके साथ ही अन्य अभियुक्तों की गिरफ़्तारी के लिए एसआईटी की टीम छापेमारी कर रही है.

आगजनी में बेघर हुए पीड़ित परिवारों के रहने, खाने और कपड़े का इंतेजाम प्रशासन की तरफ से किया गया है. कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने भी तत्काल मदद पहुंचाने में सहयोग किया था.

नवादा पुलिस के प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार सर्वेक्षण में 34 परिवारों के घर जलने की पुष्टि हुई है. जिनमें से 21 घर पुर्णतः नष्ट हैं जबकि 13 आंशिक तौर पर क्षतिग्रस्त है. सभी 34 परिवारों को अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति प्रावधान के तहत मुआवज़ा राशि की पहली किश्त दी गई है.

बिहार की राजनीति पर इस घटना का क्या असर हुआ?

घटना के तुरंत बाद इस पर राजनैतिक दलों की प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गयी. बिहार में जाति की राजनीति खासकर ‘अगड़ों और पिछड़ों’ की राजनीति आम बात है. 

राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आनी शुरू हुई. पूर्व उपमुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने एनडीए सरकार पर निशाना साधते हुए उसे दलित और पिछड़ा विरोधी बताया. वहीं एनडीए के घटक दल हम पार्टी के मुखिया जो दलितों का राजनीतिक चेहरा हैं, उन्होंने इसे राजद समर्थकों का हाथ बताया है.

इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जीतन राम मांझी ने राजद और यादव समाज को लेकर कहा “यादव लोग एकाध दुसाध जाति के लोग को अपने साथ मिलाकर घटना को अंजाम दिए हैं. इस घटना में 12 यादव समाज के लोगों को गिरफ़्तार किया गया है. घटना को अंजाम देने वाले राजद समर्थक हैं.”

बिहार में दुसाध, पासवान जाति को कहा जाता है जिसका चेहरा लोजपा (आर) प्रमुख चिराग पासवान हैं. चिराग ने इसपर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि किसी भी अपराध को जाति के चश्मे से देखना समाज को बांटने का काम करता है. उन्होंने राज्य सरकार से मामले के दोषियों पर सख्त कार्रवाई के लिए निष्पक्ष जांच की मांग की है. 

वहीं राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और बसपा प्रमुख मायावती ने भी इसे दलितों पर अत्याचार बताया.  

भूमि विवाद के मामलों को सुलझाने के उद्देश्य से राज्य में भूमि सर्वेक्षण कराया जा रहा है. जैसा कि नीतीश कुमार कहते रहे हैं राज्य में 60 फीसदी अपराध भूमि विवाद के कारण ही होता रहा है. सर्वेक्षण के बाद इसमें कमी आएगी.

लेकिन इस घटना ने एक बार फिर यह साफ़ कर दिया है कि भूमि विवाद को हलके में आंकना सरकार की नाकामी है. सरकार को भूमि सर्वेक्षण से पहले विवादित मामलों का निपटारा करना होगा. या ऐसे विवादित ज़मीनों के लिए सर्वेक्षण के दौरान अलग से प्रक्रिया अपनाई जाये. 

साथ ही न्यायालयों को भूमि विवाद में लंबित सभी मामलों में समय पर उचित फ़ैसला देना होगा. नहीं तो आने वाले दिनों में अन्य क्षेत्रों में भी ऐसी घटनाएं हो सकती है.

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