पटना के इतिहास को धीरे-धीरे मिटाने के सफ़र पर राज्य सरकार अपना दूसरा कदम बढ़ाने को तैयार है. वीरचंद पटेल स्थित सुल्तान पैलेस को राज्य सरकार तोड़कर वहां फाइव स्टार होटल बनाने को तैयार है. 17 जून (शुक्रवार) को कैबिनेट की हुई बैठक में इसकी मंजूरी दे दी गयी है. सरकार सुल्तान पैलेस के साथ-साथ बांकीपुर बस डिपो, इनकम टैक्स गोलंबर स्थित होटल पाटलिपुत्र अशोक की जमीन पर भी फाइव स्टार होटल के बनाने की तैयारी में है. इसके निर्माण के लिए पीपीडी मोड पर काम होगा और 2026 तक निर्माण पूरा किया जाएगा.
होटल निर्माण के लिए दो माह के अंदर एजेंसी का चयन किया जाएगा. इसके लिए निविदा निकालने की प्रक्रिया जल्द शुरू की जाएगी. बांकीपुर बस डिपो और सुल्तान पैलेस में अभी परिवहन विभाग का कार्यालय चल रहा है. परिवहन विभाग को धीरे-धीरे फुलवारीशरीफ में शिफ्ट कर दिया जाएगा.
सुल्तान पैलेस का इतिहास
सर सुल्तान अहमद ने 1922 में पटना के वीर चंद पटेल पथ पर हवेली का निर्माण करवाया था जिसे आज सुल्तान पैलेस के रूप में जाना जाता है. सर सुल्तान अहमद पटना हाई कोर्ट के पूर्व जज और पटना यूनिवर्सिटी के पहले भारतीय कुलपति थे. अपने सौ साल पुरे कर चुकी यह हवेली इंडो- सारसेनिक शैली में बनी है जिसमे मुग़ल और राजपूत शैली को भी खास स्थान दिया था.
10 एकड़ में बनी इस हवेली के वास्तुकार अली जान थे. लगभग दो सालों में बनकर तैयार हुए इस हवेली को बनानें में उस वक्त तीन लाख रूपए खर्च हुए थे. इसकी अद्भुत नक्काशी प्रसिद्ध कारीगर मंजुल हसन काजमी ने की थी. हवेली का अगला हिस्सा पुरुषों के लिय और पिछला हिस्सा महिलाओं के रहने के लिए बनाया गया था. हवेली में सफेद संगमरमर का उपयोग किया गया है साथ ही इसके मुख्य हॉल व डाइनिंग रूम की छत और दीवारों की नक्काशी में 18 कैरट सोने का भी उपयोग किया गया था. उपरी मंजिल पर जाने के लिए बनाई गयी सीढ़ी में बर्मा से लाए गए लकड़ियों का प्रयोग किया गया था. दरवाजों और रोशनदानों में लगाए गए रंगीन शीशे विदेशों से मंगाए गए थे. हवेली की दीवारों को फूल पत्तियों की नक्काशी से सजाया गया है.
जेएनयू से कला और औपनिवेशिक काल के साहित्य पर रिसर्च कर रही दिव्या गौरी बिहार के हेरिटेज इमारतों को इस तरह तोड़ने से आहत हैं. वो कहतीं हैं
सरकार कैसे किसी शहर को उसके इतिहास से इस तरह दूर कर सकती है. किसी भी शहर का इतिहास उसकी पुरानी इमारतों, भाषा, बोली और तहज़ीब से बनती हैं. अगर किसी शहर से यही छीन लिया जाए तो उसकी पहचान क्या रहेगी? सुल्तान पैलेस का अपना इतिहास रहा है. शहर में तीन-तीन फाइव स्टार होटल बनाने की योजना सरकार की है लेकिन क्या राज्य सरकार ने आकलन किया है की इतने टूरिस्ट बिहार आएंगे?
इससे पहले भी बिहार सरकार ने पटना कलेक्ट्रेट भवन को तोड़कर वहां नया भवन बनाने की मंजूरी दे दी. 350 साल पुराने भवन को बचाने के लिय कुछ लोगो ने कैम्पेन भी किया इनटेक (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज) ने केस भी किया लेकिन कोर्ट में राज्य सरकार ने तर्क दिया की भवन जर्जर हो चुका है. सरकार की यह मंशा रहती है पहले ऐतिहासिक भवनों को जर्जर होने की स्थिति में लाकर छोड़ दो फिर उसे गिरा दो. सुल्तान पैलेस के साथ भी यही होगा.
क्या है पटना कलेक्ट्रेट भवन का मामला?
राज्य सरकार ने 31 जुलाई 2019 को पटना कलेक्ट्रेट भवन के जीर्ण-शीर्ण ढांचे को गिराने के आदेश जारी किए थे ताकि इसके स्थान पर नया और हाई-टेक भवन बनाया जा सके लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2020 में इसपर रोक लगा दिया. दरअसल, इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज (INTACH) के पटना चैप्टर की ओर से इमारत गिराने के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी. इसमें दावा किया गया था कि कलेक्ट्रेट भवन शहर की संस्कृति और विरासत का एक अनिवार्य हिस्सा है जिसे ध्वस्त करने के बजाय संरक्षित किया जाना चाहिए. राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिंदर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि इमारत जीर्ण- शीर्ण अवस्था में था और लोगों के लिए एक गंभीर खतरा था. बिहार शहरी कला और विरासत आयोग ने 4 जून 2020 को कलेक्ट्रेट परिसर को ध्वस्त करने की मंजूरी दी थी. 1972, में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने बिहार में एक सर्वेक्षण किया था किया था और 72 ऐसे स्थलों की पहचान की थी जो ऐतिहासिक स्मारक के योग्य थे. उस वक्त भी पटना कलेक्ट्रेट भवन उस लिस्ट में शामिल नहीं था.
सुप्रीम कोर्ट ने 350 साल पुराने बिल्डिंग को गिराने का आदेश दिया
सुप्रीम कोर्ट कि पीठ ने कहा कि हमारे पास औपनिवेशिक युग से बड़ी संख्या में इमारतें हैं. कुछ ब्रिटिश युग, डच युग और यहां तक की फ्रांसीसी युग के भी हैं. हर औपनिवेशिक इमारत को संरक्षित करने की आवश्यकता नही है. कोर्ट ने आगे कहा कि एएसआई ने कहा कि इसका कोई विरासत मूल्य नही है. यह एक गोदाम था जिसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा नमक और अफीम रखने के लिए किया जाता था. अदालत ने आगे कहा कि वह जेल जहां स्वतंत्रता संग्राम के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों को रखा गया था जो ऐतिहासिक महत्व के हैं उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है. वर्तमान इमारत निर्दोष नागरिकों को खतरे में डाल सकती है.
दिव्या गौरी बताती हैं
मान लीजिए कोई व्यक्ति पांच सालों बाद पटना वापस आए तो उसके लिए उस जगह और उससे जुड़ी सारी पहचान ही बदली मिलेंगी. उसे अपने शहर का इतिहास सिर्फ तस्वीरों और कागजों में मिलेगा.
संदीप सौरभ पालीगंज से विधायक हैं और लगातार इस मुद्दे पर आवाज उठाते रहे हैं. संदीप सौरभ ने सुल्तान पैलेस को तोड़ने के फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा कि
आखिर सरकार को ऐतिहासिक इमारतों से आखिर क्या परेशानी है? प्राइवेट हाथों को मजबूत करने के लिए सरकार इस तरह से इमारतों को तोड़ने पर उतारू है. सुल्तान पैलेस का 100 सालों का इतिहास रहा है और यह पटना और बिहार की पहचान रहा है.
सर सुल्तान अहमद को देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान में मंत्री बनाए जाने का प्रलोभन भी दिया गया था लेकिन भारत और अपनी मिट्टी से प्रेम के वजह से वो पाकिस्तान नहीं गए लेकिन आज बिहार सरकार उनसे जुड़े इस खास धरोहर के संरक्षण के बजाय उसे तोड़ने में लगी है. हमलोग इसके खिलाफ जरुर आवाज उठाएंगे.”
पटना का ताजमहल है सुल्तान पैलेस
कुणाल दत्त जो एक इंडिपेंडेंट रिसर्चर हैं और साल 2016 से पुरानी धरोहरों को बचाने के लिए काम कर रहे हैं. कुणाल दत्त बिहार और पटना के हेरिटेज भवनों को इस तरह गिराए जाने से आहत हैं और कहते हैं कि
सुल्तान पैलेस पटना का ताजमहल है. क्या कल भारत सरकार ताजमहल को भी गिरा देगी? तो फिर बिहार सरकार सुल्तान पैलेस के साथ ऐसा क्यों कर रही है? जब मैं अपने दोस्तों से पूछता हूं कि क्या आप 100 साल पुराने हेरिटेज होटल में रहना चाहोगे या 2022 में बने किसी फाइव स्टार होटल में उनका कहना था सीधी बात है हम 100 साल पुराने किसी हेरिटेज होटल में रहेंगे, ना की किसी फाइव स्टार होटल में. और ऐसा पहली बार नही हो रहा है इससे पहले भी 1990 में डाकबंगला बिल्डिंग को तोड़ दिया गया था तब अपने विरासत और पुराने पटना से प्यार करने वाले लोग बहुत आहत हुए थे. लोगों ने आवाज भी उठाई थी लेकिन परिणाम सरकार के पक्ष में ही रहा.
साल 2008 में नीतीश सरकार ने ‘पटना: अ मौन्यूमेंटल हिस्ट्री’ नाम से एक किताब का अनावरण किया था जिसमे पटना के ऐतिहासिक मौन्यूमेंट्स को शामिल किया गया था. इस किताब में सुल्तान पैलेस के साथ-साथ रिजवान कैस्टल, महजरुल हक आवास, सचिदानंद सिन्हा आवास, बादशाह मंजिल और हजाम साहेब कोठी सहित कई ऐतिहासिक इमारतों को शामिल किया गया था. लेकिन आज डाकबंगला सहित उसके आसपास की सारी पुरानी इमारतें जैसे हसन मंजिल (हसन इमाम), अली मंजिल (अली इमाम) और नशेमन खत्म हो चुका हैं. कलेक्ट्रेट भवन के बाद अब सुल्तान पैलेस की बारी है. राज्य सरकार एक ऐतिहासिक शहर को फ्लाईओवर वाला शहर बनाने पर तुली है. सुल्तान पैलेस के पास पहले ही फ्लाईओवर बनाकर उसकी खूबसूरती छुपाने का काम सरकार ने किया था और अब उसे गिराकर पूरी तरह भुलाने की तैयारी कर चुका है. अभी कुछ महीने पहले कलेक्ट्रेट भवन को भी तोड़ने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दे दिया. विकास और आधुनिकीकरण के नाम पर सरकार पुराने और ऐतिहासिक इमारतों को गिराती रहती है, और दूसरी तरफ 19 से 25 नवंबर को विश्व विरासत सप्ताह मनाया जाता है जो पटना जैसे ऐतिहासिक और अमूल्य विरासत वाले शहर के लिए मजाक जैसा है.
बिहार म्यूजियम और सभ्यता द्वार के निर्माण के लिए भी कई पुरानी इमारतों को गिराया गया था, ये कहां तक सही है. 200 साल से भी अधिक पुराने उस बिल्डिंग को बचाने की मुहीम लंबी चली लेकिन आख़िरकार सरकार कोर्ट में अपना तर्क देकर जीत गयी. लेकिन यहां हार उनलोगों की हुई है जो अपनी विरासत और अपनी शहर की पहचान को बचाए रखना चाहते थे.
कुणाल दत्त बताते हैं
पुरानी इमारतें या हेरिटेज इमारतें अपने लिए आवाज नहीं उठाएगी. हमें, आपको और पटना की जनता को आवाज उठाना होगा. पटना से बाहर और यहां तक कि विदेशों में रहने वाले लोग जो अपने देश या विश्व की हेरिटेज से प्यार करते हैं इस खबर से आहत है, लेकिन मेन स्ट्रीम मीडिया, नेशनल मीडिया और सरकारी महकमा इसपर चुप है. लेकिन आने वाली पीढ़ी हममे से किसी को माफ़ नही करेगी.