पटना यूनिवर्सिटी में DDE को बंद करना लाखों बच्चों के भविष्य के साथ खेलना है

यूजीसी के नियमानुसार अब वही विश्वविद्यालय डिस्टेंस मोड (DDE) में पढ़ाई करा सकते हैं जिन्हें नैक से ए ग्रेड प्राप्त हो और वर्तमान में बिहार में नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के आलावा किसी और यूनिवर्सिटी को मान्यता प्राप्त नहीं है.

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"मेरे घर की आर्थिक स्थिति सही नहीं है. इसी वजह से हम पढ़ाई के साथ-साथ हजाम का काम भी करते हैं. डिस्टेंस मोड (DDE) में पढ़ाई करने के अलावा मेरे पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं था. इसलिए हम पटना यूनिवर्सिटी के डिस्टेंस मोड (DDE) के इतिहास विभाग में एडमिशन लिए. लेकिन नैक ने अब इसको बंद करने का फ़ैसला किया है. इससे हज़ारों छात्रों के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा और गरीब छात्रों की पढ़ाई का रास्ता हमेशा के लिए बंद हो जाएगा."

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सूरज पटना यूनिवर्सिटी के पास शरीफ़ कॉलोनी में एक सैलून में काम करते हैं. अगर डिस्टेंस मोड (DDE) में पढ़ाई की सुविधा नहीं होती तो सूरज कभी भी ग्रेजुएशन नहीं कर पाते.

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यूजीसी के नियमानुसार अब वही विश्वविद्यालय डिस्टेंस मोड (DDE) में पढ़ाई करा सकते हैं जिन्हें नैक से ए ग्रेड प्राप्त हो और वर्तमान में बिहार में नालंदा ओपन यूनिवर्सिटी के आलावा किसी और यूनिवर्सिटी को मान्यता प्राप्त नहीं है.

बिहार सहित भारत की सातवीं सबसे पुरानी यूनिवर्सिटी पटना विश्वविद्यालय को इस साल भी यूजीसी से मान्यता नहीं मिली है. पटना यूनिवर्सिटी जो बिहार सहित पूर्वी भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सबसे अग्रणी विश्विद्यालय रहा है वो अब शिक्षा जगत में अपनी पहचान खो रहा है. यहां साल 1974 से डिस्टेंस मोड (DDE) में पढ़ाई कराई जा रही है. लेकिन पिछले साल से ही यूजीसी ने इसे डिस्टेंस मोड में नामांकन लेने से रोक दिया है. साल 2020 में इसे एक साल का एक्सटेंशन मिला था, लेकिन कहीं साल अटक नहीं जाए इस दुविधा के कारण बहुत कम छात्रों ने नामांकन लिया जिसके कारण आधी से ज्यादा सीटें ख़ाली रह गयी थी.



पटना विश्वविद्यालय(पटना), ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (दरभंगा), जयप्रकाश नारायण यूनिवर्सिटी (छपरा), मगध डिस्टेंस एजुकेशन यूनिवर्सिटी (बोधगया) सहित कई विश्वविद्यालय को नामांकन लेने से रोक दिया गया है.

बिहार जैसे प्रदेश में जहां पहले से ही शिक्षा की दर बहुत कम है, वहां डिस्टेंस एजुकेशन इसके दर को बढ़ाने में सहायक हो सकता था. क्योंकि डिस्टेंस मोड में छात्रों को बहुत सारी सुविधाएं, जैसे समय में लचीलापन, कोर्स के लिए कहीं आने जाने की अनिवार्यता नहीं ,चयन करने के लिए बहुत सारे कॉलेज लिस्ट में मिलते थे. साथ ही इसका सबसे अधिक फ़ायदा है कि आपको कम फ़ीस में ही मनचाहे कोर्स को पढ़ने की सुविधा मिलती है. क्योंकि आज भी बहुत से ऐसे परिवार है जो आर्थिक तंगी की वजह से अपने बच्चो को उच्च शिक्षा नहीं दिला सकते हैं.



दूसरा और प्रमुख कारण बिहार जैसे राज्य में जहां अशिक्षा के साथ साथ गरीबी की दर भी बहुत अधिक है ऐसे में कई छात्रों को अपने परिवार को आर्थिक रूप से सहयोग करने के लिए काम करना पड़ता है. जिस कारण से उनकी रेगुलर मोड में पढ़ाई नहीं हो सकती है, ऐसे में डिस्टेंस एजुकेशन उनकी बहुत मदद करता है

एनआईटी, पटना के पास अपनी कॉफी की दुकान चलाने वाले अमित कुमार बताते हैं कि पटना यूनिवर्सिटी में चलने वाले डिस्टेंस एजुकेशन की वजह से ही आज वो अपना मनपसंद कोर्स कर पा रहे हैं. उन्होंने बताया कि रेगुलर कोर्स में एडमिशन लेने के लिए कॉलेज द्वारा जो कटऑफ निकाला गया उसे वो 2 मार्क्स से क्लियर नहीं कर पाए थे. जिस वजह से उन्हें उनके मनपसंद कोर्स में नामांकन नही मिला था. तब उन्होंने डिस्टेंस मोड के माध्यम से अपने मनपसंद कोर्स में नामांकन लेने का फ़ैसला लिया.

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डिस्टेंस मोड का फ़ायदा उन छात्रों को भी मिलता है जिनका किसी कारणवश कम अंक प्राप्त हुआ हों, तो उन्हें आगे पढ़ने के लिए मौका मिल जाता है. लेकिन डिस्टेंस मोड (DDE) ख़त्म होने की वजह से ऐसे छात्रों को मिलने वाला दूसरा मौका समाप्त हो चुका है.

बिहार में सरकारी और गैरसरकारी विश्वविद्यालयों को मिलाकर कुल विश्वविद्यालयो की संख्या 31 है, लेकिन वर्तमान समय में 20 से 22 विश्वविद्यालय ही हैं जहां पढ़ाई कराई जा रही है. उसमें भी चार से पांच विश्वविद्यालय ही डिस्टेंस मोड (DDE) में पढ़ाई करवा रहे हैं. ऐसे में बिहार के लाखों बच्चों को इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ रहा है. इधर डिस्टेंस कोर्स में नामांकन बंद होने से सकल नामांकन अनुपात में भी काफ़ी गिरावट देखने को मिली है.

एहतेशाम इब्राहिम जो एक छात्र नेता हैं डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताते हैं

"सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले छात्र या फिर पटना में ही रहकर सरकारी या फिर अलग-अलग प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र जो अपना समय और पैसा दोनों बचाना चाहते हैं वही इस पाठ्यक्रम में दाख़िला लेते हैं. ऐसे में दो सालों से जब पटना विश्वविद्यालय में दाखिला बंद है तो छात्रों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है."

सुरेश कुमार ऐसी ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करते हैं. पटना के खजांची रोड के एक छोटे से लॉज में रहने वाले सुरेश कुमार डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताते हैं कि

"मेरे बैच के बाद नैक ने डिस्टेंस एजुकेशन में दाख़िले पर रोक लगा दी है. मेरी खुशकिस्मती थी समय से मेरा दाख़िला तो हो गया नहीं तो फिर मेरी परीक्षा की तैयारी नहीं हो पाती."

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए एहतेशाम इब्राहीम आगे बताते हैं

"जब पटना यूनिवर्सिटी जैसे विश्वविद्यालय को नैक से ए ग्रेड प्राप्त नहीं हुआ है तो बिहार के अन्य विश्वविद्यालयों की क्या दशा होगी? इस पर कुलपति और शिक्षा विभाग को विचार करना चाहिए."

डेमोक्रेटिक चरखा ने इससे पहले भी अपनी रिपोर्ट में दिखाया है कि बिहार के विश्वविद्यालयों की क्या स्थिति है. इस मुद्दे पर बात करने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने शिक्षा विभाग और पटना विश्वविद्यालय के कुलपति से बात करने के लिए कई बार कॉल और मेल किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला है.