दिव्यांग आरक्षण रोस्टर का सरकारी भर्तियों में नहीं हुआ पालन, लोग बेरोज़गार

विकास कुमार की नियुक्ति बेल्ट्रॉन द्वारा होनी थी। तब एक नियम यह आया था कि दिव्यांग व्यक्तियों को सरकारी जॉब में अगर केंद्र सरकार द्वारा चार प्रतिशत का आरक्षण दिया जाएगा तो बिहार में पांच प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। विकास की नियुक्ति 2.5 प्रतिशत आरक्षण के फेर में लटक गयी। शुरूआती दौर में तमाम आला अधिकारियों द्वारा विकास को जॉब देने की बात भी कही गई। नतीजा क्या निकला, किसी को कुछ पता नहीं।

देश की सरकारी नौकरियों में दिव्यांग कोटे की नौकरियों का अलग महत्व है। जिसके चलते उचित पदों पर दिव्यांग उम्मीदवारों की भर्ती और चयन प्रक्रिया आसान हो जाती है। लेकिन सरकार की तमाम सकारात्मक और कारगर नीतियों के बाद भी कई ऐसे लोग हैं, जो सरकारी नौकरियों में मिलने वाले आरक्षण कोटे के लाभ से महरूम हो जाते हैं।

अपनी संस्था तोशियाश के माध्यम से दिव्यांग में जागृति की अलख जगा रहे और उनके अधिकारों को लेकर लड़ रहे सौरभ कुमार कहते हैं,

सबसे बडी बात यह है कि दिव्यांग को लेकर पॉलिसी तो बन जाती है लेकिन उस पॉलिसी का पालन कौन करेगा? यह तय नहीं हो पाता। अहम यह है कि दिव्यांग के लिए पॉलिसी भारत सरकार की भी नहीं है बल्कि यह डब्ल्यूएचओ की है, जिसे यूनाइटेड नेशंस में भेजा जाता है। देश में ऐसे कई राज्य हैं, जिनमें इस पॉलिसी को पूर्ण रूप से लागू ही नहीं किया गया है।

अभय कुमार की जॉब दिव्यांग कोटे से संविदा पर हुई। उनका कार्यकाल पूरा भी हुआ। उस दौरान कुछ लडकों की नियुक्ति दुबारा हुई कुछ की नहीं हुई। अभय अपनी बात को लेकर सीएम के जनता दरबार में भी गए। जहां सीएम ने गंभीरता से उनकी बातों को सुनते हुए आला अधिकारियों को उचित निर्देश भी दिया। लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला।

भारत सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार देश में 2011 में हुई जनगणना के अनुसार देश में दिव्यांगों की संख्या 2.68 करोड़ है जो देश की कुल जनसंख्या का 2.21 प्रतिशत है। वेबसाइट के अनुसार इनमें दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित, वाकबाधित, अस्थि दिव्यांग व मानसिक रूप से दिव्यांग व्यक्ति शामिल हैं।

(दिव्यांगजनों ने कई बार अपनी मांग को लेकर धरना देने का काम किया है)

सौरभ बताते हैं, जब देश में कोई पॉलिसी बनती है तो उसके उचित संधारण के लिए किसी न किसी अधिकारी को नोडल अधिकारी बनाया जाता है। लेकिन मेरे सामने तमाम ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें नोडल अधिकारी की ही नियुक्ति नहीं हुई है। ऐसे में पॉलिसी का संधारण कितना और कैसे होता होगा? यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है।

जब देश में कोरोना का संक्रमण फैला तो केंद्रीय स्तर पर 40 पन्ने की पॉलिसी बनी। सबसे पहले दिव्यांगों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी गई। लेकिन इस पॉलिसी की भी जमीनी हकीकत एकदम अलग है। किसी भी दिव्यांग को इसका लाभ नहीं मिला। केंद्रीय सामाजिक कल्याण मंत्रालय से इसकी जानकारी लेने की कोशिश की तो वहां से भी उचित जानकारी नहीं मिली।

बिहार सरकार ने साल 2013 में BSSC यानी Bihar Staff Selection Commission की वैकेंसी निकाली। उस समय दिव्यांग व्यक्तियों को 5% आरक्षण दिया गया था। 9 साल बीत जाने के बाद भी आज तक BSSC में दिव्यांग कोटे से एक भी भर्ती नहीं ली गयी है। इसके अलावा बिहार सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति असंवेदनशीलता भी दिखाई। दृष्टिबाधित अभियर्थी से टाइपिंग टेस्ट की डिमांड भी की गयी।

राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ, बिहार के युवा महासचिव आदित्य तिवारी डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए मीडिया के प्रति थोड़ी नाराजगी भी ज़ाहिर करते हैं। आदित्य तिवारी कहते हैं-

कभी भी हमारी बात को ना मीडिया ने आवाज़ दी और ना ही सरकार ने सुनी। सरकार के लिए हम वोट बैंक तो हैं नहीं कि वो हमारे लिए योजना बनायें और उसे धरातल पर लाये। हम तो बस हैं। साल 1991 से लेकर आज तक दिव्यांग व्यक्तियों को कभी भी सरकारी नौकरियों में आरक्षण नहीं मिल पा रहा है। कई बार हम लोगों ने विधायकों से बात की, सांसदों से मिले लेकिन आज तक आश्वासन के अलावा हमें कुछ भी नहीं मिला।

एक सरकारी आदेश के अनुसार दिव्यांगों के लिए जो पुराने सर्टिफिकेट हैं, अब उनकी जगह यूडीआइडी कार्ड मान्य होगा। करीब 95 प्रतिशत ऐसे दिव्यांग हैं, जिनके पास यह कार्ड ही नहीं है। अब सवाल यह है कि पुराने को आप मानेंगे नहीं और नया बना ही नहीं तो आखिर दिव्यांग करें तो क्या करें। वह अपनी फरियाद किससे करेंगे।

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अनुसार

The RPWD Act, 2016 provides that “the appropriate Government shall ensure that the PWD enjoy the right to equality, life with dignity, and respect for his or her own integrity equally with others.”

लेकिन शायद सरकारी भर्तियों में नियम ही सरकार नहीं मान रही है। इसके वजह से बिहार सहित पूरे देश की सरकारी भर्तियों में दिव्यांगजन पिछड़ते जा रहे हैं। शिक्षक नियोजन भर्ती में भी इसी तरीके से आरक्षण रोस्टर का पालन नहीं किया गया था। इसके बाद ब्लाइंड फेडरेशन ने इस भर्ती को रोकने के लिए पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। आज तक ये मामला कोर्ट में है और अभी तक दिव्यांगजन अपने भर्तियों का इंतज़ार कर रहे हैं।

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