पापा ने पूरे जीवन की पूंजी लगाकर राजीव नगर में ये मकान बनाया था. अब हम कहां रहने जाएंगे. हमारे पास अब कहीं रहने का ठिकाना नहीं है.
ये कहते हुए पूनम रोने लगती हैं. पूनम अपने पूरे परिवार के साथ तीन दिन पहले ही यहां रहने आयी थी. पूनम बताती हैं मेरे पापाप्राइवेट टीचर हैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हैं उसी से हमारा घर चलता है. पापा ने अपनी बचत और गांव की जमीन को बेचकर पटना में साल 2013 में जमीन खरीदा था. हमारा कुछ दिन पहले ही मकान बनकर तैयार हुआ था. पैसे की कमी की वजह से मेरे भाई ने बाजार से पेंट खरीदकर घर के कमरे को खुद से पेंट किया था. तीन दिन पहले ही हमने गृह प्रवेश किया था. और आज तीन दिन बाद हम फिर से सड़क पर हैं. पापा ने कर्ज लेकर घर बनाया था अब आप ही बताईए हम कैसे उस कर्ज को भरेंगे.
ऐसी ही कहानी यहां कई घरों कि है. इस पटना के राजीव नगर के नेपाली नगर में कई पुलिस अधिकारी, मंत्री, और अफसरों के भी मकान थे. लेकिन कई मकान ऐसे है जिसे मध्यम वर्ग के लोगों ने अपने कई सपने को मारकर, एक-एक पैसे को जोड़कर यहां जमीन खरीदा और मकान बनाया था. लेकिन आज सरकार ने उनका आशियाना उजाड़ दिया. नेपाली नगर की ही रहने वाली रिंकू कुमारी कहती हैं
मैं और मेरी मां दूसरों के घरों में झाड़ू-पोछा का काम करते हैं. मेरे पिताजी मजदूर थे. उनकी मौत हो गयी है. यहां जमीन मेरे पिताजी ने ही खरीदा था. उस वक्त मैं छोटी थी. आज ना पिता का साया है और ना ही उनका दिया हुआ घर. अब मै और मेरी विधवा मां कहां रहेंगे. सरकार भी हम गरीबों को ही उजाड़ने में रहती है.
सरकार का तर्क जो भी हो लेकिन आज नेपाली नगर में रह रहे लोगों के साथ जो हुआ वह किसी भी हाल में सही नहीं है. सरकार और प्रशासन उस वक्त कहां थी जब यहां लोगों ने जमीन खरीदा और वहां घर बनाना शुरू किया. उसी वक्त रोक क्यों नही लगाई गई. प्रशासन और अधिकारी उस वक्त क्यों अंधे बने रहे. क्यों दलालों और जमीन माफियाओं को पहले मासूम लोगों को ठगने दिया जाता है. क्या प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी अंजान बनी रहती है? ऐसे कई सवाल उठाते हुए पूनम के पिताजी रुआंसे हो जाते हैं. उनका कहना है
सरकार कहती है गरीबों को घर बनाकर देगी लेकिन जब एक गरीब घर बनाता है तो उसका घर उजाड़ देती है. ये कहां का न्याय है? उनका कहना हैं जब हमने यहां जमीन खरीदा था तब कहा गया था कोई परेशानी नहीं होगी. घर बनाते समय भी हमसे पुलिस वालों ने पैसे की मांग की थी. हमने यहां के किसानों से जमीन खरीदा था. हमारे पास जमीन का कागज भी है. मैंने जमीन की रजिस्ट्री कोलकाता से करवाया था. यहां कई लोगो ने रजिस्ट्री कोलकाता से ही करवाया है.
क्यों होती है बिहार से बाहर रजिस्ट्री
राजीव नगर के जमीन की रजिस्ट्री पटना में नहीं होती है. इसलिए दलाल कोलकाता से जमीन की पॉवर ऑफ अटर्नी ले लेते हैं. उसके बाद जमीन लेने वाले लोगों ने कोलकाता से रजिस्ट्री करवाया था. जमीन के दलालों ने जमीन खरीदने वाले लोगों को झांसेमें लाकर इस पुरे इलाके के सरकारी जमीन को बेच दिया.
अभी कुछ दिनों पहले यहां लोगों का आशियाना था, उसमे लोगों की यादें थीं, उनके सपने थे. कभी किचन से खाना बनने की सुगंध मोहल्ले में फैलती थी, पूजा घर से घंटियों की आवाजें गूंजती थी, ड्राइंग रूम से बच्चों के चहकने की आवाजें आती थीं. लेकिन अब यहां सिर्फ बुलडोजर की गर्जना है और चारो तरफ सिर्फ सन्नाटा है. यहां घर बनाने वालों ने अपने घर को बड़े उम्मीद और सपनों के साथ बनाया था. लेकिन आज सिर्फ उस घर का मलबा, टूटी खिड़कियां-दरवाजे, और घर के बिखरे सामान हैं.
टूटे घर और बिखरे सामान को दिखाते हुए अखिलेश यादव कहते हैं
2014 में 25 लाख रूपए कट्ठा जमीन खरीदा था. बड़े ही उम्मीद और सपने के साथ यहां घर बनाया. घर बनाने में भी लाखों खर्च हुए. लेकिन सुकून था की चलो घर बन गया. आम आदमी को क्या चाहिए सर पर एक छत. लेकिन आज मेरे आंखों के सामने मेरे घर पर बुलडोजर चला दिया गया और मै बेबस की तरह देखता रहा. जिस घर में एक-एक सामान बड़े ही उत्साह और प्यार के साथ लाया था. आज एक-एक सामान अपने आखों के सामने चूर होते देख रहा हूं. मेरे साथ मेरे और तीन रिश्तेदार विजय कुमार और सुनील कुमार के भी घर टूटे हैं.
पटना के राजीव नगर के नेपाली कॉलोनी में जब 30 जून को 22 बुलडोजर, 40 मजिस्ट्रेट, 50 पुलिस अफसर और एक हजार जवान के साथ अतिक्रमण हटाने आ गए. इससे पहले रविवार को एक ही दिन में प्रशासन के बुलडोजर ने 70-80 मकानों को देखते ही देखते ध्वस्त कर दिया. लोगों के विरोध के बावजूद पुलिस ने बल प्रयोग किया और लाठीचार्ज कर लोगोंको खदेड़ दिया, इसके बाद प्रशासनिक टीम भारी संख्या में पुलिस के जवानों के साथ बुलडोजर लेकर राजीव नगर में प्रवेश कर गई. राजीव नगर में अतिक्रमण हटाने का अभियान आज दूसरे दिन भी लगातार जारी है. लोग अब बस बेबस होकर अपने आशियाने को उजरते देख रहे हैं.
48 साल पुराना जमीन अधिग्रहण का मामला
पूरा मामला 1024 एकड़ जमीन का है. इस जमीन पर अब सैकड़ों मकान बन चुके हैं. इन मकानों में नेता, मंत्री, जज और आईएएस से लेकर आइपीएस तक के मकान भी शामिल हैं. दरअसल आवास बोर्ड ने 1974 में राजीव नगर में 1024 एकड़ में आवासीय परिसर बसाने का निर्णय लिया था. इसके लिए बोर्ड की ओर से जमीन भी अधिग्रहित की गई लेकिन किसानों से जमीन अधिग्रहण में भेदभाव और सही मुआवजा नहीं देने का आरोप लगाया था. इसको लेकर पटना हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सुनवायी हुई.
1982 में आवास बोर्ड ने समाहरणालय में आठ करोड़ जमा भी कराए थे. लेकिन किसानों ने इसे लेने से इंकार कर दिया था. 1984 में कोर्ट ने आवास बोर्ड के पक्ष में फैसला सुनाया था. लेकिन किसानों का दावा रहा कि कोर्ट ने आवास बोर्ड को जमीन अधिग्रहण में भेदभाव दूर करने एवं किसानों को सूद सहित मुआवजा देने का निर्देश दिया था लेकिन आवास बोर्ड की अनदेखी की वजह से किसानों ने निजी हाथों में यहां के जमीन की खरीद बिक्री शुरू कर दी.
यहीं से राजीव नगर का विवाद लगातार बढ़ते गया. फिलहाल यहां 1024 एकड़ में हजारों मकान बन चुके हैं लेकिन तब के अधिग्रहित जमीन में जहां-जहां जमीन आज खाली दिखती है जहां बसावट कम दिखती सरकार अपने हिसाब से जमीन को अपने कब्जे में लेकर जिस विभाग को जमीन की जरूरत होती है उसे दे देती है. पिछले साल इसी राजीव नगर में सरकार ने जमीन को खाली कराकर एसएसबी को तकरीबन 6 एकड़ जमीन और सीबीएसई बोर्ड को 2 एकड़ जमीन दी गई थी, साथ ही राजीव नगर में थाना बनाने के लिये 2 एकड़ जमीन खाली कराया गया था. इन तीनों विभागों को जमीन दे दी गई, जिसमें राजीव नगर थाना बनकर तैयार भी हो गया था. और बाकी दोनों विभागों का ऑफिस अभी बनना बाकी है.
अभी कल से जो जमीन खाली कराया जा रहा है उसमे जानकारी के मुताबिक हाईकोर्ट के अधिकारीयों के लिए आवास का निर्माण कराया जाएगा और बाकि बचे जमीन पर आवास बोर्ड का कब्ज़ा होगा.