- बेउर सेंट्रल जेल की क्षमता 100 महिला कैदियों की, लेकिन एक ही वार्ड में 250 से अधिक महिला कैदियों को रखा गया है.
- वहीं यूपी के बाद बिहार में सबसे ज्यादा 304 महिला कैदी के साथ 344 बच्चे जेलों में रह रहे हैं.
- पूरे देश में महिलाओं के लिए केवल 32 आरक्षित जेल मौजूद.
“जमानत के वक्त उन्होंने वादा किया था कि बाहर निकलने के बाद उसके लिए वकील की व्यवस्था करेंगे. शुरुआत में तो मिलने भी आते थे लेकिन पिछले दो सालों से वो मुझसे मिलने भी नहीं आ रहे है.”
यह कहना है बेउर जेल के महिला वार्ड में बंद विचाराधीन (Undertrial) महिला कैदी अनीता देवी का.
अनीता देवी आईपीसी की धारा 363/365 (अपहरण) की आरोपी हैं और 2019 से बेउर सेंट्रल जेल में बंद है. अनीता देवी और उसके पति को पटना जंक्शन से बच्चा चोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. लेकिन गिरफ्तारी के 6 महीने बाद 2019 में ही उनके पति को जमानत पर रिहा कर दिया गया था.
जमानत के बाद अनीता के पति ने उससे वादा किया था कि वह वकील की व्यवस्था करेगा और उसे जमानत पर बाहर निकालेगा, लेकिन तीन साल बीतने के बाद भी अनीता आज तक बेउर जेल में ही बंद है. उसके पति ने 2020 से उससे मिलना या फोन पर बात करना बंद कर दिया है. पिछले दो साल से वह इस इंतजार में है कि किसी दिन उसका पति उसे छुड़ाने आएगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं है.
लेकिन बीते तीन साल में उनको किसी भी तरह की न्यायिक मदद नहीं मिल पाई है. इसका कारण वो बताती हैं कि उनका इस दुनिया में कोई नहीं है. उनकी कोई औलाद भी नहीं है.
अनीता देवी जैसी कहानी नालंदा जिला जेल में बंद ललिता देवी की है. ललिता देवी नारकोटिक्स एंड ड्रग्स एक्ट के एक मामले में साल 2019 से नालंदा जिला जेल में बंद हैं. इस बीच ललिता देवी के परिवार ने उनसे मिलाना जुलना बंद कर दिया है. साथ ही उन्हें जमानत पर रिहा भी नहीं किया गया है.
ललिता देवी बताती है
“उनसे जेल में मिलने कोई नहीं आता है. उनका कहना है कि वो अब तक अपने लिए कोई वकील तक नहीं कर पाई हैं.
राज्य की सबसे बड़ी जेल बेउर सेंट्रल जेल की क्षमता 100 महिला कैदियों की है, लेकिन यहां कि स्थिति यह है की एक ही वार्ड में 250 से अधिक महिला कैदियों को रखा गया है. जेल में भीड़-भाड़ न केवल बेउर सेंट्रल जेल की समस्या है, बल्कि राज्य के अन्य अन्य जेलों में भी यही समस्या देखने को मिलती है.
चूंकि भारत में महिला जेलों की संख्या काफी कम है, इसलिए महिला कैदियों को अक्सर उनके घरों से काफी दूर कैद करके रखा जाता है. ऐसे में शुरुआत में तो उनके परिवार से कभी-कभार कोई मिलने आ भी जाया करता हैं, लेकिन थोड़े वक्त के बाद उनके परिवार द्वारा भी उन्हें छोड़ दिया जाता है. साथ ही कैदी महिलाओं को सामाजिक कलंक का भी सामना करना पड़ता हैं. उन्हें कानूनी तौर पर ही नहीं, नैतिक तौर भी अपराधी माना जाता है.
भारत की 1,319 जेलों में से सिर्फ 32 महिलाओं के लिए आरक्षित हैं और सिर्फ 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग महिला जेलें हैं. बाकी सभी जगहों पर महिला कैदियों को पुरुष जेलों के भीतर छोटे अहातों में रखा जाता है- जिसे जेल के भीतर जेल कहा जा सकता है.
31 दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार इन महिला जेलों में 6,767 महिला कैदियों के लिए जगह उपलब्ध है. जिसमें से अभी 3,808 महिला कैदी अभी बंद है.
2021 के नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के लिए आरक्षित 32 कारागारों की भर्ती दर (आक्युपेंसी रेट) 56.03 फीसदी है. ये आंकड़े केवल कागजों पर अच्छे लग सकते हैं, क्योंकि असल में भारत की जेलें ठसाठस भरी होने के लिए बहुत समय से कुख्यात है.
भारत की 424 जिला जेलों का औसत आक्युपेंसी रेट 155.4 फीसदी, 148 सेंट्रल जेलों में 123.7 फ़ीसदी, 564 उप-जेलों में 102.9 फ़ीसदी है.
राज्यों के हिसाब से देखने पर ये आंकड़े और अलग नजर आने लगते हैं. कई राज्यों में महिला कैदियों के लिए निर्धारित जेलें क्षमता से ज्यादा भरी हुई हैं और राष्ट्रीय औसत वास्तव में इस हकीकत को छिपाने का काम करता है.
साढ़े चार लाख के लगभग विचाराधीन कैदी
देश के जेलों में बंद कैदियों में एक बड़ी संख्या वैसे कैदियों की है, जिनपर अभी तक आरोप सिद्ध नहीं हुआ है. इन कैदियों को विचाराधीन कैदी (Undertrial Prisoners) माने जाते हैं, जो अभी तक दोषी साबित नहीं हुए और कोर्ट में उनके मामले चल रहे हैं.
31 दिसंबर 2021 की स्थिति के अनुसार, जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की संख्या काफ़ी ज्यादा है.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ‘प्रिजन स्टेटिसटिक्स इंडिया’ में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार पुरे भारत में 4,27,265 कैदी ऐसे हैं, जो विचाराधीन हैं. इसमें 28 राज्यों में 4,04,786 कैदी हैं और 8 संघ राज्य क्षेत्र में ऐसे कैदियों की संख्या 22,479 है. इन आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब साढ़े कहर लाख कैदी बिना दोषी साबित हुए ही अभी तक जेल में बंद हैं.
इन विचाराधीन कैदियों में कई कैदी ऐसे हैं, जो पांच साल से भी ज्यादा वक्त से जेल में बंद हैं. गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार 11,490 कैदी ऐसे हैं, जो पांच साल से ज्यादा वक्त से जेल में हैं.
इसके अलावा 3 से 5 साल तक के वक्त से 16,603 कैदी जेल में हैं. इन कैदियों में 2 से 3 साल से 24,033 और 1 से 2 साल से 56,233 कैदी जेल में हैं. अगर उन कैदियों की बात करें जो सिर्फ 3 महीने तक की अवधि में बंद है तो इन कैदियों की संख्या 1,46,074 है. वहीं 3 से 6 महीने तक के लिए 86,525 कैदी बंद है साथ ही 6 से 12 महीने के लिए 70,318 कैदी बंद है.
यूपी के बाद बिहार में सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदी
देश में विचाराधीन कैदियों की संख्या 4,27,265 है जिसमें से उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदी जेल में है और उनकी संख्या 90,606 है. इसके बाद बिहार का स्थान आता है, जहां 59,577 कैदी ऐसे हैं, जो विचाराधीन हैं. तीसरे नंबर महाराष्ट्र है, जहां 31,752 कैदी ऐसे हैं, जो जेल में बंद हैं और अभी कोर्ट में उनके खिलाफ मामले चल रहे हैं.
31 दिसंबर 2021, तक पूरे भारत में 1650 महिला कैदी 18 67 बच्चों के साथ जेलों में बंद थीं. इन महिला कैदियों में अंडरट्रायल महिला कैदियों की संख्या 14 18 है जिनके साथ 16 01 बच्चे इन जेलों में रह रहे हैं. वहीं सजायाफ्ता महिला कैदियों की संख्या 216 हैं जिनके साथ 246 बच्चे मौजूद हैं.
वहीं यूपी के बाद बिहार में सबसे ज्यादा 304 महिला कैदी के साथ 344 बच्चे जेलों में रह रहे हैं.
भारत के जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों के लिए क्या सरकार के कुछ दायित्व नहीं बनते हैं. इस सवाल पर पटना हाईकोर्ट के वकील विशाल बताते हैं
“माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने '1382 जेलों में कैदियों की पुनः अमानवीय स्थिति (2013 का एक मामला)' में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायधीश माननीय श्री न्यायमूर्ति आर.सी. लाहोटी ने अंडरट्रायल रिव्यू कमेटी (UTRC) के गठन सहित कुछ दिशा निर्देश जारी किये थे, जो लंबे समय से जेल में बंद कैदियों के मामले की समीक्षा करने और रिहा करने के संबंध में थे. लेकिन इस संबंध में अबतक कुछ नहीं किया गया है.”
विशाल आगे बताते हैं
“विचाराधीन महिला कैदियों को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 436 A के तहत कानूनी सहायता प्रदान की जा सकती है. इस कानून के अनुसार, उन्हें इस आधार पर जमानत दी जा सकती है कि उन्होंने अपनी आधी सजा पूरी कर ली है.”
देश में महिलाओं के लिए मात्र 32 जेल
दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार पूरे भारत में 1,319 जेल मौजूद हैं जिनमें 32 जेल महिलाओं के लिए आरक्षित है. इन महिला जेलों में 6,767 महिला कैदियों के लिए जगह उपलब्ध है जिसमें से अभी 3,808 महिला कैदी अभी यहां बंद हैं.
‘प्रिजन स्टेटिसटिक्स इंडिया 2021’ के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 59 जेल मौजूद है जिनमें 8 सेंट्रल जेल (Central Jail), 31 जिला जेल (District Jail), 17 उप जेल (Sub Jail) और एक ओपन जेल (Open Jail) मौजूद हैं. वहीं इनमें से मात्र 2 जेल महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. इन दो महिला जेलों में 202 महिलाओं के लिए स्थान उपलब्ध है.
बिहार के जेलों में 47,750 कैदियों के लिए जगह उपलब्ध है जिनमें साल 2021 के अंत तक 66,879 कैदी बंद थे. वहीं 66 हजार कैदियों में 60 हजार के लगभग कैदी अंडरट्रायल हैं, यानि अभी तक उनके ऊपर दोष सिद्ध नहीं हुआ है.
राज्य में महिला कैदियों के लिए 2,014 स्थान उपलब्ध है जिसमें सेंट्रल जेल में 564, जिला जेल में 980, सब-जेल में 268, महिला जेलों में 202 और स्पेशल जेलों में 12 स्थान मौजूद हैं, लेकिन तय स्थान के मुकाबले यहां 3,067 महिला कैदी बंद है.
उत्तराखंड में सबसे ज्यादा महिला कैदी मौजूद (178.8%) है. इसके बाद बिहार (152.3%) और छत्तीसगढ़ (147.6%) का स्थान आता है. हालांकि, उत्तर प्रदेश की जेलों में महिला कैदियों की संख्या (4,995) सबसे ज्यादा है. इसके बाद बिहार (3,067) और मध्य प्रदेश (1,892) का स्थान आता है.
31 दिसंबर, 2021 तक पुरे भारत में 1,650 महिला कैदी 1,867 बच्चों के साथ इन जेलों में बंद थीं. इन महिला कैदियों में विचाराधीन महिला कैदियों की संख्या 1,418 है जिनके साथ 1,601 बच्चे जेलों में मौजूद हैं. सजायाफ्ता महिला कैदियों की संख्या 216 हैं जिनके साथ 246 बच्चे मौजूद हैं. वहीं यूपी के बाद बिहार में सबसे ज्यादा 304 महिला कैदी के साथ 344 बच्चे इन जेलों में रह रहे हैं.
सबसे ज्यादा महिला बंदियों की संख्या तमिलनाडु के जेलों (574) में है. उसके बाद दिल्ली (559), राजस्थान (453) और उत्तर प्रदेश (309) का स्थान आता है. महिला जेलों की अधिग्रहण दर राष्ट्रीय स्तर पर 56.3% और बिहार में 115.8% है जो की राष्ट्रीय स्तर से लगभग दोगुना है. महिला जेलों में भीड़-भाड़, के मामले में बिहार के बाद महाराष्ट्र (109.2%) और तेलंगाना (108.8%) का स्थान आता है.
वहीं भारत में मात्र 19 बाल सुधार गृह मौजूद हैं, लेकिन बिहार और यूपी जैसे राज्य जहां कैदियों की संख्या सबसे ज्यादा है.
कारावास को अपने आप में ही सजा मानी जाती है और भारतीय जेल प्रणाली भी पुनर्वास पर ध्यान देने का दावा करती है. लेकिन क्षमता से ज्यादा भीड़ के साथ-साथ कई दूसरे मसले भी गरिमापूर्ण और स्वस्थ जीवन जीने के कैदी के अधिकार के आड़े आते हैं, जिसपर भारतीय कानून को काम करने की आवश्यकता है.