बिहार: नीतीश कुमार के विकास में क्यों पिछड़े है दृष्टिबाधित छात्र ?

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बिहार: नीतीश कुमार के विकास में क्यों पिछड़े है दृष्टिबाधित छात्र ?
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पटना के कदमकुंआ स्थित ब्लाइंड स्कूल में शिक्षकों की कमी को लेकर पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका डाली गई है. याचिका में बताया गया है स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद को मिलाकर कुल 11 शिक्षकों के पद स्वीकृत हैं. लेकिन साल 2014 के बाद से यहां एक भी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है.

याचिकाकर्ता के वकील वृषकेतु शरण पांडेय ने कोर्ट को बताया कि

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स्कूल में शिक्षकों के 11 पद सृजित हैं, लेकिन केवल एक संगीत शिक्षक के सहारे स्कूल को चलाया जा रहा है. ब्लाइंड स्कूल में शिक्षकों की कमी को लेकर छह महीने पहले भी कोर्ट ने नियुक्ति के आदेश दिए थे. लेकिन अफ़सोस की बात है कि अबतक नियुक्ति नहीं की जा सकी है.

स्कूल में शिक्षकों की कमी मामले में हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा

ऐसा लगता है राज्य सरकार नेत्रहीन छात्रों को केवल संगीत सिखाना चाहती है. यह बेहद चौंकाने वाला है. नेत्रहीन छात्रों की उपेक्षा करना राज्य सरकार की संवेदनहीनता को प्रदर्शित करता है. साल 2014 से अब तक स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होना क्रूरता की पराकाष्ठा है.

वहीं सरकार का पक्ष रखते हुए अपर महाधिवक्ता पीके वर्मा ने कोर्ट को बताया कि

स्कूल में शिक्षकों की व्यवस्था शिक्षा विभाग की ओर से कर दी गई है. इस समय स्कूल में 12 शिक्षक कार्यरत है.

कोर्ट ने सरकार से कार्यरत शिक्षकों की योग्यता का ब्योरा मांगा है.

पटना हाई कोर्ट के वकील विशाल कुमार बताते हैं “इस याचिका से पूर्व भी इसी तरह का एक मामला भागलपुर जिले से भी आया था. राज कुमार रंजन नामक याचिकाकर्ता ने एक जनहित याचिका 2018 में भागलपुर के जगदीशपुर ब्लॉक के एक स्पेशल स्कूल, दृष्टि विहीन बालिका विद्यालय के बच्चियों को बुनियादी सुविधा नहीं मिलने के संबंध में डाली थी. राइट ऑफ पर्सन विथ डिसाविलिटी एक्ट 2016 (RPWD एक्ट 2016) के संदर्भ में नहीं दी जा रही सुविधाओं के बारे में डाला था.

इस जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय करोल ने इसे पूरे बिहार का मुद्दा बनाते हुए राज्य के हरेक जिले में आरपीडब्लूडी (RPWD act) 2016 के संदर्भ में स्कूली स्तर पर लागू सुविधाओं के बारे में मुख्य सचिव को जवाब तलब किया था. इस संबंध में बिहार निःशक्तता आयोग और बिहार कर्मचारी चयन आयोग से भी जवाब मांगा गया था. आखिर क्यों अबतक इन स्पेशल स्कूलों में जो कि एक्ट के हिसाब से निर्मित किए गए हैं, उनमें टीचर, हेडमास्टर तथा अन्य पदों पर बहाली नहीं हो सकी है. इस मामले में भी सरकार अब तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई है.

आयोग काम नहीं कर रहा तो उसे भंग कर दे

वहीं अब तक योग्य प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति नहीं होने पर सरकार ने कोर्ट को बताया कि

शिक्षकों की नियुक्ति के लिए 2014 में बिहार कर्मचारी चयन आयोग (BSSC) को प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन आयोग के तरफ से योग्य शिक्षकों कि नियुक्ति की अनुशंसा नहीं की गई.

आयोग द्वारा अनुशंसा नहीं किये जाने पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि जब सरकार की अनुशंसा के बाद भी आयोग काम नहीं कर रहा है तो उसे भंग क्यों नहीं कर देते. वहीं बीएसएससी (BSSC) आयोग के वकील ने कोर्ट को बताया कि अब तक एक भी योग्य अभ्यर्थी नहीं पाए गए हैं.    

मामले की गंभीरता के कारण हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव से पूछा है कि

राज्य में नेत्रहीन छात्रों को पढ़ाने की क्या व्यवस्था है? साथ ही राज्यभर में नेत्रहीन छात्रों के लिए बने स्कूलों और वहां तैनात शिक्षकों की मौजूदा स्थिति क्या है.

कोर्ट इस बात को लेकर भी गंभीर है कि आठवीं कक्षा में लगभग 27 हजार छात्र पढ़ते हैं जबकि नौवीं और बारहवीं कक्षा में यह संख्या घटकर मात्र 2 हजार हो जाती है.      

कोर्ट ने मामले को गंभीर बताते हुए इसपर हर रोज सुनवाई का फैसला सुनाया है और अब इसकी अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होनी है.

विशेष आवश्यकता  वाले बच्चे जिन्हें असाधारण देखभाल और विशेष आवश्यकताओं की आवश्यकता होती है. ऐसे बच्चों को चिल्ड्रेन विथ स्पेशल नीड्स (CWSN) की श्रेणी में रखा जाता है.   

यू-डायस के 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में सीडब्लूएसएन (CWSN) बच्चों की संख्या कक्षा 1 से 12वीं तक में 1,77,727 है, जिसमें लड़कों की संख्या 10,5,902 और लड़कियों की संख्या 71,825.   

इस रिपोर्ट के अनुसार राज्य में छठी से आठवीं कक्षा में 50,561 बच्चे और नौवीं से दसवीं कक्षा में 11,292 और 11वीं से 12वीं में 3,195 बच्चे पंजीकृत थे. राज्य में सीडब्लूएसएन (CSWN) छात्रों के लिए 93,165 स्कूल है. इसमें सरकारी, निजी और अन्य सहायता से चलने वाले स्कूल सम्मिलित है.

शताब्दी वर्ष मना चुके स्कूल में नहीं हैं ब्रेल प्रशिक्षित शिक्षक

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साल 2022 में पटना के कदमकुआं स्थित राजकीय उच्च नेत्रहीन विद्यालय ने अपना शताब्दी वर्ष पूरा किया है. इस आवासीय स्कूल की स्थापना साल 1922 में दृष्टिबाधित छात्रों को शिक्षित करने के उद्देश्य से किया गया था. 

लेकिन इस विद्यालय की विडंबना यह है कि यहां के दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए आज एक भी प्रशिक्षित शिक्षक मौजूद नहीं है. हालांकि साल 2019 से यहां शिक्षा विभाग के तरफ से ब्रेल शिक्षक नियुक्त किये गए है. इस आवासीय स्कूल में 68 बच्चों के पढने और रहने की जगह है. जिसमें पटना सहित राज्य के अन्य जिलों के बच्चे पढ़ाई करते हैं. 

नवंबर 2022 में विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक बने अमरनाथ जी स्कूल में रिक्त पदों की जानकारी देते हुए बताते हैं

विद्यालय में कुल 11 पद खाली है. स्नातक प्रशिक्षित का छह पद  रिक्त है. मैट्रिक प्रशिक्षित का दो पद है जिसमें एक पर संविदा शिक्षक अभी मौजूद हैं जबकि एक पद रिक्त है. संगीत शिक्षक, रीडर और प्रधानाध्यापक का एक-एक पद रिक्त है.

अमरनाथ आगे कहते हैं

आज भी सब जगह अख़बारों में संगीत शिक्षक के भरोसे स्कूल संचालन की बात लिखी जा रही है, जबकि वो दिसंबर 2022 में रिटायर हो चुके हैं.

स्थायी और दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी होते हुए भी इस स्कूल में पढने वाले बच्चों में निराशा नज़र नहीं आती है. शिक्षकों की कमी के कारण 08 वीं और 09वीं के बच्चों की पढाई एक साथ करवानी पड़ती है. क्लास में पढ़ा रही शिक्षिका राखी सिंह बताती हैं

यहां मेरी पोस्टिंग साल 2017 में हुई थी. शुरूआती कुछ महीने परेशानी हुई क्योंकि ये बच्चे साधारण नहीं बल्कि आसाधारण हैं. हमारा प्रशिक्षण सधारण बच्चों को पढ़ाने के लिए है. लेकिन जबसे शिक्षा विभाग से यहां पोस्टिंग हुई है, इन्हीं बच्चों को पढ़ाने में अपना सौ प्रतिशत दे रहे हैं.

इन बच्चों को आप कैसे पढ़ाती हैं? इसपर राखी सिंह कहती हैं

“क्योंकि बच्चे दृष्टिबाधित  और केवल सुनकर ही सारी बातों को समझते हैं. इसलिए टॉपिक को बार-बार पढ़कर उन्हें समझाते हैं. क्लास में हम जो टॉपिक समझाते हैं बच्चे उसे सुनकर समझते हैं और अपने फ़ोन में रिकॉर्ड करते हैं. बाद में फिर उसे सुनकर अपने ब्रेल कॉपी में लिखते हैं.”   

शिक्षा विभाग ने कुछ शिक्षकों की नियुक्ति इस विद्यालय में कर दी है.

दिव्यांग नेत्रहीन बच्चों को ब्रेल भाषा सिखाने के लिए स्कूल में दो ब्रेल भाषा के शिक्षक साल 2019 में यहां नियुक्त किये गए हैं. साल 2019 से शिक्षक के पद पर कार्यरत मनोज कुमार इसी विद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र रहे हैं. मनोज कुमार बताते हैं

“मैंने इस स्कूल से 2004 में दसवीं की परीक्षा पास की हैं. लेकिन अभी के समय में मेरे अलावे एक और शिक्षक शिक्षा विभाग के ओर से बच्चों को ब्रेल भाषा सिखाने के लिए यहां नियुक्त किये गए है.”

राजकीय नेत्रहीन विद्यालय में नौवी क्लास में पढ़ रहे गुलशन कुमार मधेपुरा जिला के रहने वाले हैं. पांचवी क्लास से इस विद्यालय में पढ़ रहे गुलशन बताते हैं

मैं यहां से पहले दो और ब्लाइंड स्कूल में पढ़ चुका हूं. लेकिन उन दोनों स्कूलों से ज्यादा मुझे यहां अच्छा लगता है. यहां के टीचर हमारे लिए घर के सदस्यों की तरह हो चुके हैं. हमें कभी भी उनकी मदद की जरूरत होती है तो हम उन्हें कॉल कर लेते हैं.

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टेक्नोलॉजी बनी है मददगार

टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए बच्चे आगे बढ़ने और सीखने का प्रयास कर रहे हैं. यहां पांचवी से ऊपर की कक्षाओं के बच्चों के पास अपना खुद का स्मार्टफोन मौजूद है. बच्चे इन स्मार्टफोन का उपयोग अपना डाउट क्लियर करने के लिए करते हैं. साथ ही क्लास में टीचर द्वारा पढ़ाए गए टॉपिक को रिकॉर्ड करने में भी स्मार्टफोन उनके लिए उपयोगी साबित होता है. लेकिन यहां एक समस्या यह है की सभी बच्चों को स्मार्टफोन खुद के पैसों से खरीदना होता है. वहीं जो स्मार्टफ़ोन नहीं खरीद सकते वो अन्य बच्चों की सहायता से अपनी पढ़ाई करते हैं.

पटना सिटी के रहने वाले राजा कुमार आठवीं कक्षा के छात्र हैं. दिव्यांग होते हुए भी राजा टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना बखूबी जानते हैं. राजा बताते हैं

पापा ने जब फोन खरीद कर दिया तबसे मैं बहुत खुश हूं. अब मैं अपना सारा डाउट गूगल से पूछकर क्लियर कर लेता हूं. फ़ोन इस्तेमाल करने में भी मुझे कोई परेशानी नहीं है क्योंकि सबकुछ वाएस कमांड (voice command) से हो जाता है.

हॉस्टल में रीडर का पद रिक्त होने के कारण बच्चों को शाम या रात में पढ़ाई करते वक्त एक दूसरे की मदद करनी पड़ती है. सीनियर बच्चे अपने से जूनियर क्लास के बच्चों की भी मदद करते हैं.  

स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अपने भविष्य के लिए काफ़ी आशावान नजर आते हैं. लेकिन सरकार की कार्यप्रणाली बच्चों के भविष्य निर्माण में बाधक के अलावा और कुछ नहीं है. आवासीय स्कूल खोल देने, नेत्रहीन छात्रों के लिए नाश्ते और भोजन का प्रबंध कर देने भर से क्या उनका भविष्य निर्माण संभव है?  

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