सौर ऊर्जा: बिहार में नयी योजना आई लेकिन पुरानी योजना क्यों धाराशायी हुई?

author-image
Rahul Gaurav
एडिट
New Update
सौर ऊर्जा: बिहार में नयी योजना आई लेकिन पुरानी योजना क्यों धाराशायी हुई?

"धरनई में बना सोलर माइक्रो ग्रिड मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का ड्रीम प्रोजेक्ट था। उद्घाटन भी उन्होंने स्वयं किया था। गांव वाले भी समझ रहे थें कि सोलर एनर्जी ही असली बिजली है। लेकिन आज पूरा सौलर प्लांट ही सरकारी लापरवाही की वजह से जर्जर और  दयनीय स्थिति में है।"

धरनाई गांव के बगल के गांव कुमारडीह के 47 वर्षीय चंदन मंडल बताते है।

publive-image

वर्ष 2014 में बिहार सरकार ने जहानाबाद और गया जिले की सीमा से सटे गांव धरनई में बिहार का पहला सौर ग्राम बनाने की घोषणा की थी। इस योजना पर काम भी बहुत जल्दी हुआ और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने, अगस्त 2014 को एक मिनी सौर ग्रिड का उद्घाटन किया। जिसके बाद सौर ऊर्जा से गांव की गलियां और घर जगमगा गई।

इस उद्घाटन समारोह के वक्त मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि ताप बिजली घर बनता तो उसके लिए कोयले की जरूरत होती है लेकिन वह कोयला 100-150 सालों में खत्म हो जाएगा। तब ताप बिजली घर भी बंद हो जाएंगा। इसके साथ ही बिजली का उत्पादन ही बंद हो जाएगा। लेकिन. जो सौर ऊर्जा है वह अक्षय ऊर्जा है। अगर वक्त के साथ तकनीक का विकास होता जाएगा। तो ये कभी खत्म होने वाला नहीं है और यही असली बिजली भी है।

करीब 30 साल बाद अंधेरे में डूबा रहने वाला यह गांव अचानक सौर ऊर्जा से जगमगा उठा था

गांव वालों के मुताबिक ग्रेड बनते वक्त विरोध भी हुआ था। गांव के लोगों ने पोस्टर लेकर नारे लगा रहे थे और असली बिजली की मांग कर रहे थे। लेकिन सरकार ने स्थायी समाधान का वादा कर उन्हें शांत किया। इसके बावजूद 3-4 साल में ही बदल गयी धरनई की तस्वीर। सोलर पावर ग्रिड के उद्घाटन के वक्त तत्कालीन मुखिया अजय सिंह बताते हैं कि, "लोग दूर-दूर से इस गांव में बने सोलर माइक्रो ग्रिड देखने आते थे। धरनई गांव में 1984 के बाद से बिजली नहीं आइ थी। अंधेरे में डूबा रहने वाला यह गांव अचानक सौर ऊर्जा से जगमगा उठा था। लेकिन आज सोलर माइक्रो ग्रिड बैट्री के अभाव में बंद पड़ी सोलर पावर ग्रिड भवन के आगे धान का फसल रखा हुआ रहता है।

publive-image

नई योजना के तहत प्रत्येक पंचायत को लगभग 24 लाख रुपया दिया गया

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सितंबर 2022 को कैबिनेट मीटिंग के दौरान सात निश्चय पार्ट-टू के तहत शुरू हुई ग्रामीण सोलर लाइट योजना के अन्तर्गत 2 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया। बिहार में 8387 ग्राम पंचायत हैं। मतलब प्रत्येक पंचायत के लिए लगभग 24 लाख रुपया दिया गया है। स्थानीय पत्रकार दुर्गेश कुमार के मुताबिक मुख्यमंत्री सोलर स्ट्रीट लाइट योजना के प्रथम चरण में बिहार के पांच पंचायतों में लगा है। जिनमें एक नीतीश कुमार का गांव कल्याण बिगहा है

सुपौल के आरटीआई एक्टिविस्ट और पत्रकार अमरेश सोलर लाइट स्कीम को लेकर कई बार आरटीआई दायर कर चुके हैं। वो पूरे मामले पर बताते हैं कि, "सौर उर्जा से संबंधित सोलर लाइट योजना हो या सोलर पैनल का निर्माण। इन सभी मामलों में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी सामने आई थीं। गांव के मुखिया अपने चहेते लोगों के दरवाजे पर सोलर लाइट लगवाया ना की वहां जहां जरूरत हो। इस बार देखते हैं सरकार की योजना कितनी बेहतर रहतीं हैं।"

publive-image

बिहार के गावों में दम तोड़ रही सोलर परियोजनाएं

सहरसा जिला स्थित महिषी पंचायत अपने अध्यात्मिक इतिहास को लेकर बहुत प्रसिद्ध है। महिषी पंचायत स्थित दो गांव हैं। इन दोनों गांवों में कई प्रसिद्ध मंदिर और जगह हैं। उसके बगल में सरकार के द्वारा सोलर लाइट लगवाया गया था। महिषी गांव के रोहित खां बताते हैं कि, "3-4 साल पहले तक गांव का वो इलाका जहां मंदिर हैं,सोलर एनर्जी से जगमग रहता था। लेकिन अब अब किसी को इसकी फिक्र नहीं है।कुछ जगहों पर सोलर लाइट से हल्की रोशनी आती है।"

आंकड़ों के मुताबिक जान लीजिए

एक तरफ तो 'मुख्यमंत्री ग्रामीणस्ट्रीट लाइट निश्चय योजना' के वेबसाइट के मुताबिक बिहार राज्य में सौर स्ट्रीट लाइट का विस्तार हुआ है। वहीं दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत के मामलें में बिहार सबसे पीछे है। दूसरे आंकड़े के मुताबिक 2017 में बिहार सरकार के द्वारा नवीकरणीय ऊर्जा नीति बनाया गया था। जिसमें 2022 तक राज्य में 3,433 मेगावॉट स्वच्छ ऊर्जा की क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा गया। लेकिन अगस्त 2022 तक के आंकड़े के मुताबिक सिर्फ 400 मेगावॉट स्थापित क्षमता को ही हासिल किया जा सका है। 2021 के अक्टूबर महीने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बोला था कि राज्य की किसी भी इकाई में अभी बिजली उत्पादन में नहीं हो रहा है, इसलिए कोयला संकट के वक्त बिहार सरकार को मजबूरी में अधिक मूल्य पर कोयले से बनी बिजली खरीदनी पड़ी थी।

पंचायती विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक सरकार के द्वारा अक्षय ऊर्जा की भागीदारी बढ़ाने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। जिसमें राज्य के सारे सरकारी भवनो में सोलर रूफ़टॉप लगाने के साथ नवीकरणीय उर्जा योजना का विस्तार करने पर काम कर रहे हैं। सोलर लाइट योजना भी इसी का एक पार्ट है। अधिकारी ने ये भी माना कि देखभाल की कमी और समय पर मरम्मत की वजह से सौर परियोजनाएं की तमाम योजनाएं धड़ातल पर असफल साबित हो रही हैं। 

publive-image

सोलर पंप पर सब्सिडी वाले प्रधानमंत्री कुसुम योजना की स्थिति

बिहार के किसानों को कुछ वर्ष पहले मुख्यमंत्री सौर पम्प योजना के तहत 75 प्रतिशत सब्सिडी मिलता था। भागलपुर में किसानों के लिए लड़ रहे हैं दीपक डॉल्फिन संरक्षण का भी काम करते हैं। वो बताते हैं कि, "मुख्यमंत्री सौर पम्प योजना के तहत बिहार में दो वर्ष में ही इस योजना को तोड़ दिया। वहीं केंद्र सरकार की पीएम-कुसुम योजना बिहार में शुरू भी नहीं हो पाई है। इसका मुख्य वजह जागरूकता हैं। बिहार में सौर ऊर्जा से सिंचाई वाली योजना का प्रसार बहुत कम हुआ। एक मुख्य वजह यह भी है कि बिहार में अधिकांश छोटे किसान हैं और योजना के तहत किसानों को बाजार से सोलर पंप खरीदना पड़ता था।
लेकिन छोटे किसान बिना सब्सिडी वाले महंगे सोलर पंप नहीं खरीद पाते थे।"

सुपौल के सीमरहा गांव के माधव राय को लगभग 2 लाख की सोलर पम्प खरीदने पर सिर्फ 38 हजार रूपया सब्सिडी  दिया गया। माधव राय मुख्यमंत्री नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा सौर पम्प योजना के तहत आवेदन दिया था। इस योजना के तहत सौर पम्प लगाने के लिए बिहार सरकार से 75 प्रतिशत सब्सिडी मिलने का जिक्र था। माधव राय अब
सोलर पम्प से खेती के अलावा व्यवसाय भी शुरू कर दिए है।

विशेषज्ञ का तर्क

"सरकार के द्वारा गांवों के मुताबिक बड़े शहर में चल रहे सौर परियोजनाओं पर ज्यादा फोकस करती हैं। गांव में चल रहीं अधिकांश परियोजनाएं बहुत कम दिनों में खत्म हो जाती हैं। गांव में चल रही अधिकांश परियोजनाओं को खत्म होने के बाद उसका देखभाल आम मैकेनिक करता है। क्योंकि सरकार तकनीकी कुशलता वाले मैकेनिक उपलब्ध नहीं कराती है। सरकार को गांव के ही मैकेनिक को अच्छी तरीके से ट्रेनिंग देनी चाहिए। अगर योजना प्राइवेट सोलर कंपनी के द्वारा चलाया जाता हैं तो कंपनी
5 से 6 साल तक ही परियोजनाओं की देख रेख के लिए बाध्य हैं। जबकि सोलर परियोजना की आयु 15-25 साल की होती है। सरकार को सोलर योजना पर ध्यान देना चाहिए, इससे हम हकीकत में कार्बन उत्सर्जन में कमी ला सकते है।"एनआईटी जमशेदपुर और आईआईएम रोहतक से पढ़ चुके अतुल रोहित बताते है।