खेल विश्वविद्यालय: बिहार में सरकार कब खेल संरचना पर सोचेगी?

बिहार में खेल विश्वविद्यालय बनने या खेल के लिए बेहतर माहौल और सुविधा मिलने से खिलाड़ियों को अपने ही राज्य में बेहतर सुविधा मिल सकती है. खिलाड़ियों को विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण, ओलंपिक और अंतर्राष्ट्रीय खेलों की तैयारी के लिए बेहतर सुविधा मिल सकेगी.

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नाजिश महताब
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खेल विश्वविद्यालय: बिहार में सरकार कब खेल संरचना पर सोचेगी?

खेल विश्वविद्यालय: बिहार के राजगीर में

बिहार विधानसभा में विधेयक 2021 में बिहार में खेल विश्वविद्यालय बनाने की बात हुई थी. तय हुआ था कि खेल विश्वविद्यालय बिहार के राजगीर में बनेगा लेकिन 2 सालों में सिर्फ़ कागज़ पर बना.

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गुजरात, पंजाब, असम, तमिलनाडु और राजस्थान इन पांच राज्यों में खेल विश्वविद्यालय बन चुके हैं. वहीं बिहार के राजगीर में बनने वाला राज्य स्पोर्ट्स अकादमी सह अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्रिकेट स्टेडियम अभी निर्माणाधीन है. 90 एकड़ भूमि में बनने वाले इस स्टेडियम की लागत 740 करोड़ रूपए है. इस वित्तीय वर्ष 2023-24 बजट में शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति के क्षेत्र में 42,381 करोड़ रुपए की राशि आवंटित हुई है.

वहीं अगर बात दूसरे राज्यों की कि जाए तो राजस्थान अपने खेल पर 2500 करोड़ रुपए, हरियाणा 566.04 करोड़ और ओडिशा 1,217 करोड़ रुपए सिर्फ खेल पर ख़र्च करती है. बिहार के 38 में से सिर्फ 17 जिलों में ही जिला खेल पदाधिकारी हैं. बिहार में खेल की दुर्दशा इस बात से समझी जा सकती है कि राज्य के 17 जिलों के इन जिला खेल पदाधिकारीयों को कभी-कभी जिलों में कोच का भी काम करना पड़ता है. एक तरफ जिलों में जिला खेल पदाधिकारी की कमी है तो  दूसरी तरफ खिलाड़ियों को अब बिहार सरकार और विभाग से ज़्यादा उम्मीद नहीं है.

मेडल की चाहत लेकिन इन्फ्रास्ट्रक्चर ही नहीं

सरकार का कहना है कि वो बिहार एक स्पोर्टिंग पावर वाले राज्य में विकसित करेगी. बिहार के खिलाड़ियों को एक बेहतर माहौल और आधारिक खेल अवसंरचना (Basic Game Infrastructure) प्राप्त होगी. लेकिन सच्चाई ये है कि मूलभूत सुविधाओं की कमी के कारण बिहार के अनेक प्रतिभावान खिलाड़ीयों को दूसरे राज्य जाना पड़ता है.

बिहार में खेल विश्वविद्यालय बनने या खेल के लिए बेहतर माहौल और सुविधा मिलने से खिलाड़ियों को अपने ही राज्य में बेहतर सुविधा मिल सकती है. खिलाड़ियों को विभिन्न खेलों का प्रशिक्षण, ओलंपिक और अंतर्राष्ट्रीय खेलों की तैयारी के लिए बेहतर सुविधा मिल सकेगी. आरक्षित सीटों से महिलाओं को खेलों के प्रति अधिक प्रोत्साहन मिलेगा और इस प्रकार खेल के क्षेत्र में उनकी संख्या बढ़ेगी. लेकिन सरकार की कथनी और करनी में काफ़ी फ़र्क दिखाई देता है.

शिवम एक राष्ट्रीय स्तर के कराटे खिलाड़ी हैं. राज्य में खेल के लिए मूलभूत सुविधाओं के आभाव से परेशान शिवम दूसरे राज्य में जाने का सोच रहे हैं. बिहार में खेल की स्थिति से निराश होकर शिवम कहते हैं

हमें लगता है की हमें दूसरे राज्य जाकर खेलना चाहिए क्योंकि बिहार में कोई सुविधा नहीं है वहीं दूसरे राज्य जैसे राजस्थान और हरियाणा में कई तरह की सुविधा खिलाड़ियों को मिल जाती है.

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(स्पोर्ट्स कॉन्क्लेव का आयोजन हुआ लेकिन उससे खिलाड़ियों को क्या फ़ायेदा पहुंचा?)

संसाधन की कमी का सबसे अधिक असर लड़कियों पर

ऐसा नहीं है कि बिहार में खिलाड़ियों की कमी है. बिहार में खेल में लड़के और लड़कियों की संख्या अच्छी है. लेकिन संसाधन की कमी का सीधा असर बिहार की लड़कियों पर अधिक पड़ता है. लड़के तो दूसरे राज्यों में जाकर खेलते भी हैं. लेकिन सामाजिक बंधनों की वजह से लड़कियों को बिहार से बाहर जाकर खेल पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है.

बिहार के सीमांत जिलों में से एक सीवान के मैरवां में लड़कियों का एक फुटबॉल क्लब है. नाम है रानी लक्ष्मीबाई स्पोर्ट्स अकादमी. संजय पाठक इस अकादमी को संचालित करते हैं. उनका सपना है कि बिहार के गांव से निकल कर बिहार की ये बेटियां अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकें. संजय पाठक ये अकादमी अपने ख़र्चे से ही चलाते हैं. अगर सरकार ने खेल विश्वविद्यालय के अपने वादे को निभाया होता तो फिर ये लड़कियां बेहतर संसाधनों के साथ तैयारी कर पाती.

मेडल लाओ नौकरी पाओ योजना कितनी सफ़ल?

पाटलिपुत्र खेल परिसर में 18वीं राष्ट्रीय अंतर जिला जूनियर एथलेटिक्स मीट का उद्घाटन करते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि

राज्य सरकार के ओर से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में हिस्सा लेकर पदक जीतने वाले को बिहार प्रशासनिक सेवा और बिहार पुलिस सेवा में ग्रेड वन की नौकरी प्रदान की जाएगी.

लेकिन सरकार के इस दावे को गलत बताते हुए पटना विश्वविद्यालय के छात्र और नेशनल कराटे चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक विजेता ज़ाबिर अंसारी बताते हैं

बिहार सरकार कहती है ‘मेडल लाओ नौकरी पाओ’ लेकिन उसके नए नियमावली में विश्वविद्यालय खेलों को ही बाहर कर दिया गया है. खेल विश्वविद्यालय बनने से फ़ायदा तो है लेकिन ऐसे खिलाड़ी जो विश्वविद्यालय की तरफ से पदक जीत रहे हैं उनके लिए सरकार क्या कर रही है?

मेडल लाओ नौकरी पाओ’ योजना के लागू होने से अबतक कितने खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी मिली है. इसकी जानकारी के लिए जब हमने बिहार के आर्ट कल्चर और यूथ डिपार्टमेंट और बिहार स्टेट स्पोर्ट अथॉरिटी से संपर्क किया तो  उन्होंने बताया कि हमारे पास कोई डाटा नहीं है और कॉल काट दिया. 

हालांकि 18वीं राष्ट्रीय अंतर जिला जूनियर एथलेटिक्स मीट में नीतीश कुमार ने कहा था कि 2012 से अबतक 235 खिलाड़ियों को नौकरी दिया गया है.

कई खिलाड़ी आज भी पंक्चर बनाने का काम करते हैं

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कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो आज भी सड़कों पर पंक्चर बनाते हैं या चाय बेचने का काम करते हैं. पटना के नया टोला में पिछले 22 सालों से अपनी चाय की दुकान चलाने वाले गोपाल कुमार यादव की कहानी बिहार सरकार की खेल और खिलाड़ियों के प्रति उदासीनता को उजागर करने के लिए काफी है. लगभग 55-60 की उम्र में पहुंच चुके गोपाल तैराकी में बिहार को नेशनल स्तर पर कई पदक दिला चुके हैं. 1987 से 1989 तक लगातार तीन सालों तक तीन गोल्ड मेडल सहित आठ पदक जीतने के बाद भी आज गोपाल को चाय की दुकान चलानी पड़ रही है.

हम जब गोपाल प्रसाद यादव से मिलने उनकी चाय की दुकान गए तो, दुकान की दशा देखकर गोपाल यादव की आर्थिक स्थिति का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता था.  दुकान के नाम पर एक छोटा सा ठेला है जो टूटा हुआ है.  

हम गोपाल यादव  के पास गए और उनसे बात करने की कोशिश की. गोपाल यादव उस वक्त दूसरे दुकान में चाय देने गए हुए थे. उधर से आने के बाद गोपाल बतातें हैं कि

अब तो किसी को कुछ बताने की इच्छा ही नहीं होती. पिछले 22 सालों से अपनी बात मीडिया और सरकार को बताते बताते हम थक गए हैं. सरकार ने हम जैसे खिलाड़ियों की कभी कोई सुध ली ही नहीं. मैंने कितने पदक बिहार के लिए जीते और नेशनल स्तर पर बिहार का नाम रौशन किया. लेकिन सरकार ने सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं दिया.

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बड़े खेल प्रतियोगिताओं में बिहार का प्रदर्शन कहीं नहीं 

बिहार से ओलंपिक और पारा ओलंपिक में आज तक मात्र 9 खिलाड़ियों ने ही भाग लिया है. खेलो इंडिया रिपोर्ट के अनुसार टोक्यो ओलंपिक 2020 में बिहार से एक भी खिलाड़ी ने भाग नहीं लिया जबकि हरियाणा से सर्वाधिक 29 और पंजाब से 16 खिलाड़ियों ने भाग लिया था. बास्केट बॉल खिलाड़ी अंकित बताते हैं कि

हमें किसी भी तरह की सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं. जो भी टीम बाहर खेलने जाती है उसमें बहुत पॉलिटिक्स होता है. जैसे उसका बेटा वो है, उसका चाचा वो है, इसी सब वजहों से उन्हें पहले मौका मिल जाता है.

राजश्री एक नेशनल कराटे प्लेयर थे. उन्होंने बिहार के लिए कई स्वर्ण पदक जीता है लेकिन सुविधाओं के अभाव और प्रोत्साहन ना मिलने के कारण उन्होंने खेल को अलविदा कह दिया.

राजश्री बात डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत में कहते हैं

बिहार में खेल को लेकर कभी कोई ढंग से काम नहीं हुआ. हमारे लिए कोई संसाधन नहीं था, सरकार ने कई सारे खिलाड़ियों का भविष्य बर्बाद किया है. हमारे अंदर हुनर है लेकिन हमें कभी अवसर नहीं मिला.

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आने वाले भविष्य में खिलाडियों के लिए बेहतर भविष्य की आशा रखते हुए राजश्री आगे कहते हैं

खेल विश्वविद्यालय बनने से खिलाड़ियों को अवसर मिलेगा और आधुनिक सुविधाएं मिलेंगी. बिहार खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ सकता है. हमें अवसर नहीं मिला लेकिन आशा है की आगे आने वाले युवा खिलाड़ियों को अच्छे अवसर ज़रूर मिलेंगे.

सरकार ने पहल की लेकिन नीयत कितनी साफ़?

स्पोर्ट्स क्लब चलाने और बच्चों को स्पोर्ट्स सिखाने वाले सुमित प्रकाश बताते हैं

बिहार अभी खेल के मामले में अन्य राज्यों से पीछे तो ज़रूर है लेकिन बीते 2 वर्षों में बिहार स्टेट स्पोर्ट अथॉरिटी ने अच्छा काम किया है. खेल विश्वविद्यालय बनने से खिलाड़ियों को काफ़ी फ़ायदा होगा. जो नीचे से उठ कर आते हैं और जिनमें योग्यता है उन्हें एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिलेगा.

बिहार ने हर क्षेत्र में बड़े-बड़े योद्धा दिए हैं. बिहार के खिलाड़ियों में योग्यता की कोई कमी नहीं है. कमी है तो बस सरकार के प्रोत्साहन की. ऐसे कई खिलाड़ी हैं जिन्होंने बिहार में सुविधा नहीं मिलने के कारण दूसरे राज्यों में पलायन किया है. उन्हीं खिलाड़ियों ने पलायन कर वहां से खेला और पदक प्राप्त किया. बिहार सरकार को चाहिए कि सरकार खेल के क्षेत्र में जल्द से जल्द काम करे और खिलाड़ियों को मूल-भूत सुविधाओं से मुहैया कराएं.

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