बिहार सरकार ने बेगूसराय के घरों में नल तो लगा दिया है लेकिन पानी देना भूल गयी है

ये कहना है बेगूसराय के राटन पंचायत की फुलिया देवी का. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट करके ये दावा किया था कि उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले बिहार में 2% लोगों के घर में नल था लेकिन अब 95% लोगों के घर में नल की सुविधा उपलब्ध है. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बेगूसराय में 510969 घरों में से 383390 घरों में नल-जल योजना का लाभ पहुंच चुका है

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"इंसान के लिए सबसे ज़रूरी होता है खाना-पानी, पहनने के लिए कपड़ा और सिर पर छत. सरकार कपड़ा और छत तो छीन चुकी है, लॉकडाउन में खाना भी चला गया और हम गरीबों को तो पानी भी नसीब नहीं है"

ये कहना है बेगूसराय के राटन पंचायत की फुलिया देवी का. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ट्वीट करके ये दावा किया था कि उनके मुख्यमंत्री बनने से पहले बिहार में 2% लोगों के घर में नल था लेकिन अब 95% लोगों के घर में नल की सुविधा उपलब्ध है. जल जीवन मिशन के आंकड़ों के मुताबिक बेगूसराय में 510969 घरों में से 383390 घरों में नल-जल योजना का लाभ पहुंच चुका है. ‘नल-जल योजना‘ मुख्यमंत्री के सात निश्चय योजना में सबसे प्रमुख मानी गयी है. इसका उद्देश्य था राज्य के सभी घरों में साफ़ पीने का पानी पहुंचाना.

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नल लगा है लेकिन इसमें पानी नहीं आता है.
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27 सितंबर 2016 में इस योजना की शुरुआत की गयी थी. इस योजना के तहत 4291 ग्राम पंचायत में नल लगाने का लक्ष्य था. इस योजना को पूरा करने के लिए ₹8373.54 करोड़ रूपए भी ख़र्च किये गए हैं. साल 2018-19 में 71.16 लाख घरों में साफ़ पानी पहुंचाने का लक्ष्य था जिसमें से सिर्फ़ 26.39 लाख घरों में ही पानी पहुंचाया जा सका. लेकिन इन सभी के बाद भी लोगों को नल का पानी मिलना तो दूर साफ़ पीने का पानी भी नसीब नहीं हो रहा है.

बेगूसराय के कटरमाला दक्षिण में ₹33.45 लाख की लागत से 6 जून 2020 को 10,000 लीटर की टंकी लगायी. इस टंकी पर 200 से अधिक घर पीने के पानी के लिए आश्रित हैं. लेकिन इस टंकी में कभी भी पीने का पानी भरा ही नहीं जाता है. पंप चालक प्रफुल्ल कुमार का कहना है

"टंकी में हमेशा पानी नहीं रहता है. इसमें हफ्ता में 1-2 दिन ही पानी भरा जाता है. हमको तो सिर्फ़ चालक हैं, हमको ऊपर से जो आदेश आता है हम वही करते हैं"

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पंप चालक प्रफुल्ल कुमार

इन 1-2 दिनों में भी जो पानी ग्रामीणों को मिलता है वो भी पीने लायक नहीं रहता है. इस पानी में आयरन की मात्रा ज़्यादा होने के कारण पानी का रंग भी पीला हो जाता है और उसका स्वाद भी काफ़ी ख़राब होता है. डॉ शुभम सिंह देश में पानी में आयरन और आर्सेनिक की मात्रा और उसके दुष्प्रभाव पर ग्रामीणों को जागरूक करते हैं. डॉ शुभम बताते हैं

"पूरे देश में बिहार दूसरा सबसे बड़ा राज्य है जहां पानी में सबसे अधिक आयरन की मात्रा है. अगर पानी में 10 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक आयरन पाया जाता है तो वो इंसानी शरीर को काफ़ी नुकसान पहुंचा सकता है. अगर पानी में 0.3 मिलीग्राम प्रति लीटर आयरन मिला दिया जाए तो पानी का रंग हल्का भूरा होने लगता है. लेकिन बेगूसराय का कटरमाला किशनगंज का पोठिया, राटन, समस्तीपुर का रोसेरा, इन इलाकों में पानी में आयरन की संख्या 15 मिलीग्राम प्रति लीटर पायी जाती है"

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आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण अस्वच्छ पानी

पानी में आयरन और आर्सेनिक अधिक होने के चलते नल-जल योजना में प्रभावित इलाकों में फ़िल्टर की व्यवस्था की गयी है. लेकिन ठेकेदार और पंप चालक की लापरवाही के कारण टंकी में फ़िल्टर को अभी तक फिट ही नहीं किया गया है जिस वजह से लोगों के पास आयरन युक्त पानी ही पहुंचता है. आयरन युक्त पानी के कारण लगभग 150 से अधिक लोगों को पेट में पथरी की शिकायत हो चुकी है जिसमें से 50 से अधिक लोगों का ऑपरेशन करना पड़ा.

साफ़ पानी नहीं मिलने के कारण महिलाओं को बूढ़ी गंडक नदी से पानी भरना पड़ता है. हरिराम पासवान एक दिहाड़ी मज़दूर हैं. सुबह 6 बजे उन्हें लेबर चौक पर काम की तलाश में जाना पड़ता है. हरिराम पासवान की पत्नी गर्भवती हैं, जिस वजह से वो नदी से पानी नहीं ला सकती हैं. हरिराम पासवान बताते हैं,

"हमारे घर के दरवाज़े पर सरकार ने नल  लगा दिया है लेकिन उस नल से पानी ही नहीं आता है. गांव की सभी महिलायें सुबह ही  जाकर पानी भरने का काम करती हैं. उसके बाद एक बाद और दोपहर में भी जाती हैं. जब हमारी पत्नी गर्भवती नहीं थी तो वो पानी भरने जाती थी लेकिन अभी उसको हम पानी भरने नहीं जाने देते हैं. पिछले साल भी हमारी पत्नी गर्भवती हुई थी लेकिन पानी भरने के क्रम में गर्भ में ही बच्चे की मौत हो गयी. इस बार हम नहीं चाहते हैं कि कुछ ऐसी अनहोनी हो इसलिए हम सुबह में ही जाकर पानी भर देते हैं. लेकिन एक बार काम पर चले जाते हैं तो फिर पानी लाने के लिए शाम तक का इंतज़ार करना पड़ता है. अगर आप लोग पटना में जाकर बड़े साहब लोगों को बोलेंगे तो शायद हमारे घर में भी पानी आने लगे"

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फ़िल्टर सिस्टम कभी ऑन ही नहीं रहता है

नल-जल योजना के लागू होने से पहले इन इलाकों में पानी के लिए लोग नदी और कुएं पर आश्रित थे. मौसम बदलने और नदी-कुएं के पानी सूखने के कारण इन इलाकों से प्राकृतिक पानी भी काफ़ी कम हो चुका है. सरकार ने ना सिर्फ़ नल-जल बल्कि कुएं के जीर्णोद्धार के लिए भी काफ़ी पैसे ख़र्च किये हैं. कटरमाला दक्षिण में मुखिया द्वारा कुएं में पानी भरने और उसके जीर्णोद्धार के लिए साल 2021 के 6 महीनों में ₹11 लाख 34 हज़ार ख़र्च किया जा चुका है.

साल 2020 में 30 कुएं के जीर्णोद्धार के लिए ₹24 लाख ख़र्च किये गए लेकिन ग्रामीणों के अनुसार किसी भी कुएं का जीर्णोद्धार नहीं हुआ है. ठीक इसी तरह राटन पंचायत में 20 कुएं का जीर्णोद्धार में ₹20 लाख और पोखर के लिए ₹3 लाख रूपए मुखिया द्वारा ख़र्च किये जा चुके हैं लेकिन इनमें से किसी में भी काम नहीं किया गया है.

डॉक्टर अर्जुन पासवान, बेगूसराय के हसनपुर बागर में एक ग्रामीण चिकित्सक हैं, बताते हैं

"हमारे पास अधिकांश केस पेट में दर्द का आता है. इसकी वजह सिर्फ़ एक ही है गंदा पानी पीना. मुखिया और राज्य सरकार ने हसनपुर बागर में वादा किया था साफ़ पानी देने का और इसके लिए मुखिया फण्ड से 15 वार्ड में कुआं जीर्णोद्धार के लिए ₹20 लाख रूपए ख़र्च किये गए लेकिन एक भी कुआं में साफ़ पानी नहीं है. अधिकांश कुएं सूखे हुए हैं"

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रोड पर कटा हुआ नल का पाइप

बेगूसराय के ही राटन पंचायत में सभी घरों में ‘कागज़’ पर नल-जल योजना पूरी हो चुकी है लेकिन वहां पर अधिकांश घरों में नल लगा ही नहीं है. कुछ घरों में नल लगा है तो नल का पाइप मेन सप्लाई से नहीं जोड़ा गया है इस वजह से नल में पानी ही नहीं आता है. डेमोक्रेटिक चरखा के ग्रामीण पत्रकार अनुज कुमार का घर भी राटन पंचायत में है. अनुज कुमार के घर में भी नल नहीं लगा हुआ है. उनकी मां बिनीता देवी बताती हैं

"नल सरकार ने लगाया है ही नहीं. इसके लिए हम लोग आज भी चापाकल का गंदा पानी पीते हैं. हमलोग कई बार मुखिया को बोले नल लगवाने के लिए तो कहें कि लगेगा नल. लेकिन कब लगेगा? साफ़ पानी के लिए हमलोग को 2-3 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है. हमारी मांग है सरकार से कि जल्द से जल्द नल लगवाएं"

ऐसे में जब बिहार में गांवों में लोगों के पास पीने का साफ़ पानी नहीं है तो फिर विकास की बात बेमानी सी लगती है. बिहार सरकार ने नल जल योजना से जुड़ी शिकायतों के लिए 18001231121 टोल फ़्री नंबर भी जारी किया था. डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने इस नंबर पर 3 दिनों तक कॉल किया लेकिन किसी ने फ़ोन नहीं उठाया.

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