सरकार कर रही हरियाली बढ़ाने का दावा वहीं सरकारी कामों के लिए काटे जा रहे जंगल

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Rahul Gaurav
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सरकार कर रही हरियाली बढ़ाने का दावा वहीं सरकारी कामों के लिए काटे जा रहे जंगल

बिहार सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के वेबसाइट के उद्देश्य में लिखा हुआ हैं कि, बिहार राज्य वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए वनों के सतत प्रबंधन के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को साझा करता है। इसके साथ ही ग्रामीण विकास विभाग, ग्रामीण कार्य विभाग और पर्यावरण विभाग के द्वारा राज्य में हरियाली बढ़ाने के लिए कई योजनाएं को चलाया जा रहा हैं।

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लगाए 700 बचें 70 पौधे

बिहार सरकार, इकोनॉमिक सर्वे में जल जीवन हरियाली मिशन, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, कृषि वानिकी योजना, बम्बू मिशन और नमामी गंगे के माध्यम से बिहार में हरियाली बढ़ाने के दावा कर रहे हैं। इसी योजना के क्रम में ग्रामीण कार्य विभाग के अंदर जल जीवन हरियाली मिशन के तहत ग्रामीण पथों के निर्माण में ग्रीन टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए 4889 किलोमीटर पथों का निर्माण कराया गया है।

इसी योजना के अंतर्गत सुपौल जिला के बभनगामा गांव से एकमा गांव के बीच सड़क के किनारे 2 साल पहले 700 पौधे लगाए गए थे। अभी वर्तमान में 70 पौधे से भी कम लगे हुए हैं। बभनगामा गांव के स्थानीय निवासी शीतल मंडल बताते हैं कि, "गांव के बस्ती वाले रोड के बगल वाला पौधा बचा हुआ है। वही खेत वाले इलाके का पौधा या तो टूट चुका है या मवेशी बर्बाद कर दिया।"

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"हम लोग को मालिक ₹350 प्रतिदिन देता था। पंद्रह दिन लगातार हम लोग वृक्षारोपण किए थें। वृक्षारोपण होने के चार-पांच दिन हम लोग फ्री में पानी पटाएं थें, ग्रामीण होने के नाते सरकार की तरफ से देखभाल के लिए न तो पम्प दिया गया और न ही खाद।" बभनगामा गांव के ही शरद यादव बताते हैं। वो भी पौधा लगाने वाले मजदूर में शामिल थे।

जल जीवन हरियाली मिशन के तहत ही एक और परियोजना चलाया जाता है, जिसका नाम है नमामी गंगे परियोजना! जिसके तहत साल 2021-2022 में गंगा नदी के किनारे 18 फॉरेस्ट डिविजन में 2.50 लाख पौधारोपण किया गया हैं। भागलपुर जिला अंतर्गत चकरामी, नारायणपुर और बीहपुर में भी पौधा लगाया गया था। स्थानीय समाजसेवी और पत्रकार आशीष झा बताते हैं कि, "पौधा लगाने के बाद भी पौधे का देखभाल किया जाता है। ठेकेदार और सरकारी अधिकारी शायद इस बात से अवगत नहीं है। पौधे तो लगाये जाते हैं, लेकिन वे सुरक्षित रहें, इसके लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाये जाते हैं।"

एक तरफ हरियाली बढ़ाने का दावा, दूसरी ओर काटे जा रहे वन

2019 में पर्यावरण एवं वन विभाग के द्वारा राज्य भर में सड़कों के निर्माण और चौड़ीकरण सहित विकास कार्यों के नाम पर पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगा दिया था। अगर विकास के कार्यों के जरिए पेड़ो को हटाना जरूरी हैं तो पेड़ों को स्थानांतरित करने का आदेश निकला था।स्थानान्तरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक पेड़ को पूरी तरह से उखाड़ दिया जाता है और दूसरे स्थान पर लगाया जाता है, बिना काटे।

साथ ही यह भी आदेश निकला था कि दुर्लभ मामलों में पेड़ों की कटाई की अनुमति वन विभाग की एक उच्च-स्तरीय समिति की मंजूरी के बाद ही दी जाएगी। साथ ही नियम यह भी हैं कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत सरकारी स्वामित्व वाली संपत्तियों को काटने के लिए आदेश पारित करना पड़ेगा।

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वन विभाग के एक बड़े अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि, "आपको जानकर हैरानी होगी कि 2019 से अब तक 122 योजनाओं को पर्यावरण मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया हैं। लेकिन 122 में से सिर्फ छह योजना पर पर्यावरण मंजूरी की जरूरत है। जिसमें केन्द्र सरकार के अनुसार नवादा जिले के रजौली के चटकरी गांव में अभ्रक खनन, RGGVY XIवीं योजना चरण- II और BRGF और वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के भीतर इंटरनेशनल कनवेंशन सेंटर का निर्माण योजना शामिल हैं। वहीं गया जिले एनएच-2 चौड़ीकरण और बांका जिले में रेलवे प्रोजेक्ट में अनुमति देने की कोई जरूरत नहीं थी। जिन प्रोजेक्ट में सघन वनों का गैर वन क्षेत्र में तब्दील किया गया था।"

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव संजय कुमार बताते हैं कि, "121 करोड़ की लागत से बिहार के वानिकी शहर में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के भीतर इंटरनेशनल कनवेंशन सेंटर बनाया जा रहा है। जिसमें 500 सीटों वाले कन्वेंशन सेंटर के साथ ही 102 कमरों का एक गेस्ट हाउस बन रहा है।"

आंकड़ों की सुनिए

जहां एक आंकड़ा सरकार के वृक्षारोपण की महानता को दिखा रहा है वही दूसरा डाटा बिहार में वनों के अपूरणीय क्षति को दर्शाता है। बिहार में 9722 वर्ग किलोमीटर में वन व पेड़ हैं, जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 10.3 प्रतिशत है। जो मुख्य रूप से कैमूर, पश्चिमी चंपारण और रोहतास में फैला हुआ है।

ग्रामीण विकास मंत्रालय के अंतर्गत जल जीवन हरियाली मिशन के तहत सरकार ने 47 लाख पौधे लगाया गया। पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम के जरिए साल 2019-2020 में 1000 हेक्टेयर में 6.95 लाख पौधे और साल 2020-2021 में 1935 हेक्टेयर में 13.06 लाख पौधे लगाया गया। नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय के द्वारा चलाया जा रहा नमामी गंगे परियोजना के तहत साल 2021-2022 में गंगा नदी के किनारे के 18 फॉरेस्ट डिविजन में 2.50 लाख पौधा लगाया गया हैं। यह रिपोर्ट है बिहार सरकार की। अब जानिए बिहार आर्थिक सर्वे की रिपोर्ट क्या कहती है। इस रिपोर्ट के  मुताबिक साल 2016-2017 में 20 प्रोजेक्ट के लिए 51.53 हेक्टेयर वन क्षेत्र, साल 2017-2018 में लगभग 150 हेक्टेयर वन क्षेत्र और 2020-2021 में 432.78 हेक्टेयर वन क्षेत्र यानी पिछले 5 सालों में 1603.8 हेक्टेयर में फैले वनक्षेत्र को विभिन्न सरकारी योजनाओं के लिए गैर वन क्षेत्र में तब्दील कर दिया गया।

विशेषज्ञ की सुनिए

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और पर्यावरणविद साकेत उपाध्याय बताते हैं कि, "सरकार के द्वारा चेक डैम निर्माण के चारों तरफ, रोड के दोनों तरफ वृक्षारोपण का कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है। जो बेहद शानदार योजना है। लेकिन ऐसे पौधे लगाकर हम जंगल के नुकसान की भरपाई बिलकुल नहीं कर पायेंगे। क्योंकि पौधे को जंगल बनने में सालों लग जाते हैं। साथ ही हाल के वर्षों में शहर में हवा की खराब गुणवत्ता का एक कारण पेड़ों की बड़े पैमाने पर कटाई है।"