पटना यूनिवर्सिटी में कैंटीन मौजूद नहीं, पानी पीने के लिए भी जाना पड़ता है बाहर

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पल्लवी कुमारी
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पटना यूनिवर्सिटी में कैंटीन मौजूद नहीं, पानी पीने के लिए भी जाना पड़ता है बाहर

पटना कॉलेज में तीन हज़ार के करीब बच्चे पढ़ते हैं. यहां सुबह सात बजे से दोपहर दो बजे तक कक्षाएं संचालित की जाती हैं. लेकिन अगर इस बीच छात्र, शिक्षक या कॉलेज के अन्य कर्मचारी को भूख लग जाए तो उन्हें खाने के लिए कॉलेज से बाहर का रास्ता देखना होगा. क्योंकि बिहार के विख्यात पटना विश्वविद्यालय के इस कॉलेज में कैंटीन की सुविधा मौजूद नहीं है. यहां तक छात्रों को पीने के पानी के लिए भी इधर-उधर भटकना पड़ता है.

पटना कॉलेज के पूर्ववर्ती छात्र और छात्र नेता नीरज यादव बताते हैं

पूरा कैंपस घूम कर आप देख लीजिये यहां पीने के पानी के लिए आपको एक भी नल नहीं मिलेगा. यदि छात्र को भूख लग जाए तो एक समोसा खाने के लिए भी उन्हें बाहर का रास्ता देखना पड़ेगा. सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के लापरवाही के कारण कॉलेज और कैंटीन का यह हाल हुआ है.     

नीरज बताते हैं

पटना विश्वविद्यालय, पटना कॉलेज और दरभंगा हाउस में साल 2019 से पहले तीन कैंटीन बनाये गये थे. पूर्व कुलपति प्रोफेसर रास बिहारी शर्मा की पहल पर कैंटीन बनाया गया था. उसके बाद एक साल के लिए टेंडर निकाला गया. एक साल कैंटीन अच्छे से चला लेकिन उसके बाद यह बंद हो गया. हमलोगों ने जब इसका कारण पूछा तो विश्वविद्यालय प्रशासन के तरफ से कहा गया कि छात्र खाने के बाद पैसे नहीं देते हैं. इस कारण इसे बंद कर दिया गया है. लेकिन छात्रों पर यह आरोप लगाना गलत है.

कॉलेज में तीन वर्ष पूर्व एक साल के लिए कैंटीन खुला था. लेकिन एक साल बाद वापस कैंटीन बंद हो गया. कैंटीन चालू करने के प्रति विश्वविद्यालय प्रशासन उदासीन बना हुआ है. शुरुआत से ही कैंटीन कभी व्यवस्थित ढंग से संचालित नहीं हो सका.

कैंटीन में केवल चाय, बिस्किट, समोसा ही उपलब्ध कराया गया था. फिलहाल कैंटीन संचालक के द्वारा कैंटीन को बंद कर दिया गया है. वहीं पटना विश्वविद्यालय के कुलपति का कहना है कि तीन साल बाद विश्वविद्यालय में विकास दिखने लगेगा. लेकिन विश्वविद्यालय में अभी तक कैंटीन, बॉयज हॉस्टल की हालत और सीसीटीवी कैमरा तक की सुविधा नहीं है.

यही कारण है की पटना विवि को नैक से ‘बी प्लस’ ग्रेड मिला है और मान्यता 8 अगस्त 2024 तक है. वहीं पटना विश्वविद्यालय से संबंध पटना विमेंस कॉलेज और मगध महिला कॉलेज को छोड़कर अन्य किसी कॉलेज में कैंटीन की सुविधा नहीं है.

पटना कॉलेज के बीएमसी के छात्र आयुष कुमार कहते हैं

मैं पटना में रूम लेकर अकेले रहता हूं. सुबह नाश्ता बनाना संभव नहीं है. सत्तू पीकर कॉलेज आता हूं लेकिन उसके बाद भी भूख लग जाती है. कैंटीन तो है नहीं और क्लास के बीच में बाहर जा खा नहीं सकते हैं. इसलिए क्लास में अपने दोस्तों का लंच खाकर काम चला लेता हूं.

नीरज आगे कहते हैं

मेरा कहना है जब प्रिंसिपल अपनी सुरक्षा के लिए गार्ड और बाउंसर रख सकते है तो क्या कैंटीन में एक गार्ड नहीं रखा जा सकता है. अगर विश्विद्यालय प्रशासन पहल करके कैंटीन संचालन के लिए टेंडर निकालता तो कैंटीन बंद नहीं होता. कैंटीन के साथ-साथ बॉयज़ कॉमन रूम का हाल भी बदहाल है. वहां ना तो मैग्जीन आता है और ना ही पेपर. वहीं छात्रावास की हालत भी ख़राब है.

वहीं पटना साइंस कॉलेज में अभी कुछ दिनों पहले ही नया कैंटीन बनाया गया है. पुराना कैंटीन कोविड के बाद से बंद पड़ा है. वहीं कॉलेज में हाल ही बने कैंटीन को 10 से 15 दिनों में शुरू किए जाने की बात छात्र नेताओं द्वारा कहा जा रहा है.

पटना साइंस कॉलेज के फर्स्ट ईयर कि छात्राओं का कहना हैं हमलोगों ने आज तक कॉलेज का कैंटीन खुला नहीं देखा है, जबकि कॉलेज में दो-दो कैंटीन है. हमारे सीनियर कहते हैं ये कैंटीन ना खुला है और ना ही कभी खुलेगा.

पटना कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि

हमलोग और मेरे जैसे कितने ही छात्र बहुत दूर से आते हैं. सुबह-सुबह नाश्ता नहीं करके आ पाते हैं. लेकिन यहां कैंटीन नहीं है. अगर बाहर खाने जाते हैं तो क्लास छूट जाता है. कॉलेज प्रशासन को चाहिए की कॉलेज में कैंटीन को फिर से शुरू किया जाए.

वहीं पटना साइंस कॉलेज में पढ़ने वाले छात्र सौरव कुमार पटना सिटी से आते है और बताते हैं

मैं पटना सिटी में रूम लेकर रहता हूं. मेरा क्लास सुबह में रहता है. सुबह नाश्ता नहीं बना पता हूं. इस कारण भूखे आना पड़ता है. और कॉलेज में खाने की कोई व्यवस्था नहीं है. क्लास के बाद कॉलेज से बाहर जाकर कुछ खाने का इंतज़ाम होता है.

कोविड के बाद कॉलेज तो खुल गए लेकिन कॉलेज में संचालित कैंटीन आज तक नहीं खुले हैं. छात्र भूखे पेट पढ़ाई करने को मजबूर हैं. लेकिन कॉलेज और विश्विद्यालय प्रशासन इसपर कोई कदम उठाने को तैयार नहीं है.

हमने जब पटना कॉलेज के प्रिंसिपल से कैंटीन बंद होने का कारण पूछा तो पटना कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर डॉ अशोक कुमार का कहना है

मेरे कॉलेज में प्रिंसिपल बनने के बहुत पहले ही कैंटीन बंद हो चुका था. लेकिन मैं प्रयास कर रहा हूं कि आने वाले दो-तीन महीनों में इसका संचालन शुरू हो जाए. और कैंटीन बंद होने का कारण तो सभी जानते हैं. अगर कांट्रेक्टर को घाटा होगा तो इसका संचालन कैसे संभव है? छात्रों को भी सहयोग करना होगा. अगर छात्र कैंटीन में फ्री में मांगेंगे तो हम या कॉलेज प्रशासन कहां से देंगें.

वहीं पटना विश्वविद्यालय चुनाव के दौरान भी कैंटीन का मुद्दा ज़ोरों से उठा है. लेकिन कोई भी पदाधिकारी इस पर ठोस बात कर पाने में असफ़ल है.