"एक से दो प्रिज़्म , एक माइक्रोस्कोप, कुछ लिटमस पेपर, मापने के लिए स्केल और कुछ केमिकल ही यदि सरकार सभी मध्य विद्यालयों में उपलब्ध करा दें, तो हम बच्चों को विज्ञान और गणित की बाते खेल-खेल में समझ सकते हैं. लेकिन अफ़सोस की बात है कि आज़ादी के इतने वर्ष बीतने के बाद भी अभी हमारे बच्चों को स्कूल के लिए भवन, प्रत्येक बच्चे के हाथ में किताब, स्कूल में शौचालय, पीने का साफ़ पानी जैसी प्राथमिक ज़रूरतों के लिए ही जूझना पड़ रहा है. तब यहां प्रयोगशाला और प्रयोगशाला में उपकरण की मांग करना बेमानी लगती है."
यह कहना एक ऐसे शिक्षक का जो अपने विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हैं.
नाम नहीं बताने के शर्त पर शिक्षक आगे कहते हैं
पुराने ज़माने में हमारी मां या दादी बहुत कम पढ़ी-लिखी या ना के बराबर पढ़ी लिखी होती थीं. लेकिन उन्हें फिर भी पता था कि दाल अगर ज़्यादा धो देंगे तो वह गलेगा नहीं. या फिर उसमें बनाते समय शुरुआत में ही तेजपत्ता डाल दो. क्योंकि तेजपत्ता पानी के बॉयलिंग पॉइंट को बढ़ा देता है और दाल अच्छे से गलेगी. ये बातें उन्होंने किताबों में नहीं पढ़ीं है. बल्कि ये चीजें उन्होंने शुरू से अपने आंखों के सामने होते हुए देखा है.
रट्टा मारने से बेहतर है चीज़ों को समझना
रटने से ज़्यादा अपने आंखों के सामने किसी घटना को होते हुए देखने से चीज़ें ज़्यादा समझ में आती है. माध्यमिक कक्षा से ही बच्चों में वैज्ञानिक प्रतिभा का विकास होता है. विज्ञान में रचनात्मक क्षमता वाले बाल वैज्ञानिकों का आधार इन्हीं स्कूलों से बनता है.
लेकिन शिक्षक सिलेबस से ज़्यादा कुछ बताने से कतराते हैं. कुछ एक शिक्षक ही अपने ओर से अत्यधिक कोशिश करते हैं. वहीं दूसरी ओर स्कूल में प्रयोगशाला ही मौजूद नहीं है और जहां मौजूद हैं वहां प्रयोगशालाओं में सामग्री और उपकरण ही उपलब्ध नहीं हैं.
बिहार सरकार के द्वारा मध्य विद्यालय में प्रयोगशाला निर्माण की कोई योजना नहीं है. सरकार द्वारा केवल उच्च विद्यालयों में प्रयोगशाला निर्माण के लिए राशि दिया जाता है. लेकिन उसमे भी केवल गिने चुने स्कूलों की स्थिति ही अच्छी है. कंकड़बाग के राजकीय उच्च विद्यालय के छात्र बताते हैं
हमारे स्कूल में प्रयोगशाला नहीं है. यहां तक हमारे स्कूल का अपना खुद का भवन ही नहीं है. हमने आज तक स्कूल में प्रैक्टिकल की क्लास नहीं की है. क्योंकि होती ही नहीं है. केवल शिक्षक जो किताबों से पढ़ाते हैं हम वही जानते हैं. रही बात प्रैक्टिकल की तो एग्जाम से पहले हम प्रैक्टिकल की किताब खरीद लेते हैं. उससे ही पिछले साल के कुछ प्रश्न तैयार कर लेते हैं.
बच्चों ने कभी प्रयोगशाला देखी ही नहीं है
सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले इन बच्चों ने न कभी परखनली देखी, न कभी प्रिज़्म देखा है, माइक्रोस्कोप को केवल किताबों में देखा, क्लोरोफिल और अमीबा के बारे में केवल किताबों में सुना है. अम्ल नीले रंग के लिटमस पेपर को लाल कर देता है ऐसा बच्चों ने केवल किताबों में पढ़ा है.
और इससे भी ज़्यादा कड़वा सच यह है कि जिन स्कूलों द्वारा कभी प्रैक्टिकल की कक्षाओं का आयोजन नहीं किया गया है उन स्कूलों के बच्चे भी प्रैक्टिकल परीक्षा देते हैं और केवल रटे हुए उत्तर देकर उत्तीर्ण भी हो जाते हैं. और इसमें उन बच्चों की नहीं बल्कि शिक्षा विभाग की विफलता है.
यही वास्तविक स्थिति है बिहार के सरकारी स्कूलों की. कहते हैं किसी भी राष्ट्र और राज्य के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान होता है. जिस राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था जितनी ज़्यादा समृद्ध होती है, वह देश उतनी ही ज़्यादा तरक्की करता है.
लेकिन विज्ञान व प्रौद्योगिकी के इस युग में भी बिहार के अधिकतर माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में विज्ञान की प्रयोगशाला ही नहीं है. ऐसे में इन विद्यालयों में अध्ययनरत हजारों विद्यार्थियों को बिना लैब के ही विज्ञान की शिक्षा दी जा रही है.
राज्य में 9,360 उच्च माध्यमिक स्कूल हैं और इनमे से अधिकांश विद्यालय बुनियादी सुविधाओं के लिए ही जूझ रहे हैं.
कुछ स्कूलों की स्थिति बेहतर
हालांकि इस मामले में राजधानी पटना के दो विद्यालय बांकीपुर कन्या उच्च विद्यालय और मिलर उच्च माध्यमिक विद्यालय की स्थिति बाकि सरकारी स्कूलों से बेहतर है.
मिलर उच्च माध्यमिक विद्यालय की स्थापना आज़ादी से पूर्व 1919 में ही हुई है. इतने पुराने इस स्कूल में लड़के और लड़कियों को दोनों को शिक्षा दी जाती है. स्कूल में बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए सारी सुविधाएं मौजूद हैं.
विद्यालय में मौजूद विज्ञान प्रयोगशाला के बारे में प्राचार्य विनय कुमार सिंह बताते हैं
मुझे ठीक-ठीक पता नहीं है लेकिन इस विद्यालय में आज़ादी के पूर्व या उसके तुरंत बाद से ही प्रयोगशाला मौजूद है. प्रयोगशाला में सारे उपकरण मौजूद हैं. साइंस विषय में नामांकित बच्चों को नियमित रूप से प्रयोग की कक्षाएं करायीं जाती हैं.
आईआईटी पटना और शिक्षा विभाग के सहयोग से बन रहा मॉडल साइंस लैब
बिहार सरकार के शिक्षा विभाग ने आईआईटी पटना के साथ एक एमओयू साइन किया है. जिसके तहत राज्य के 50 अनुकरणीय उच्च विद्यालयों (हाई स्कूलों) में मॉडल साइंस लैब स्थापित किया जाएगा. इसके प्रथम चरण में पटना के 7 उच्च विद्यालयों में विज्ञान लैब बनाया जा रहा है.
एक विज्ञान प्रयोगशाला के निर्माण में 15 लाख रुपए का खर्च होने का बजट बनाया गया है. विद्यालय अपने विकास फंड का इस्तेमाल प्रयोगशाला में बन रहे फर्नीचर आदि खरीदने में कर सकते हैं.
पटना में जिन 7 उच्च विद्यालयों में मॉडल लैब का निर्माण होना है उनमे से एक बांकीपुर कन्या उच्च विद्यालय भी है. यहां की प्राचार्य रेणु कुमारी बताती हैं
स्कूल में साइंस विषय के लिए प्रयोगशाला मौजूद है. अभी आईआईटी पटना के सहयोग से केमिस्ट्री की प्रयोगशाला का निर्माण कराया जा रहा है. लैब में फर्नीचर का काम हो रहा है. लैब बनने के बाद छात्राओं को इसका लाभ मिलेगा.
बांकीपुर कन्या उच्च विद्यालय में नवमीं की छात्रा अंजली कुमारी का कहना है
हमारे स्कूल प्रैक्टिकल क्लास नियमित तौर पर कराया जाता है. थ्योरी पढ़ने के बाद प्रैक्टिकल करने पर चीज़ें ज़्यादा अच्छे से समझ में आता है. अब तो और अच्छा लैब बन रहा है जहां आईआईटी के शिक्षक भी पढ़ाने आयेंगे.
मध्य विद्यालयों में नहीं मिला है प्रयोगशाला के लिए विज्ञान किट
आपको बता दें कि प्रारंभिक विद्यालयों में प्रयोगशाला के लिए सरकार राशि तो नहीं देती लेकिन उन्हें प्रयोगशाला की किट जरूर मुहैया करा देती है लेकिन यह किट भी सरकार नियमित रूप से नहीं देती है.
पटना के राजकीय कन्या मध्य विद्यालय तारामंडल में एनजीओ के मदद से नटखट लैब का स्थापना किया गया है. सरकार के तरफ़ से कोई किट मुहैया नहीं कराया गया है. बच्चों को इस लैब में विज्ञान की छोटी-छोटी बताते सिखाई जातीं हैं. लैब का संचालन एनजीओ कर्मी और स्कूल के एक शिक्षक नृपेन्द्र कुमार के द्वारा किया जा रहा है.
पटना के राजकीय कन्या मध्य विद्यालय, अदालतगंज के प्राचार्य असीम कुमार मिश्रा बताते हैं
अभी पूरे बिहार में किसी भी मध्य विद्यालय को प्रयोगशाला के लिए फंड नहीं मिला है. जब मिलेगा तो हमारे स्कूल को भी मिल जाएगा