महिला अधिकारी ने कहा- आज शौचालय मांग रही हो कल कंडोम भी मांगोगी

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महिला एवं बाल विकास निगम द्वारा यूनिसेफ की मदद से सशक्त बेटियां समृद्ध बिहार विषय पर एक दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन किया गया. इस वर्कशॉप में शहर के कई सरकारी स्कूल की छात्राएं पहुंची थीं. कार्यक्रम में सरकारी अधिकारी महिला सशक्तिकरण की बात करने आए थे, लेकिन मौके पर मौजूद महिला एवं बाल विकास निगम की अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक हरजोत कौर ने एक छात्रा के सवाल के पर ऐसा जवाब दिया जिसे सुनकर वहां मौजूद अन्य लोग भी स्तब्ध रह गए.

मिलर स्कूल, पटना से आई एक छात्रा ने जब अपने स्कूल के शौचालय की दुर्दशा बताते हुए लड़कियों के लिए अलग से शौचालय की मांग की तो एमडी व्यवस्था सुधारने का आश्वासन देने के बजाय उल्टे छात्रा से ही पूछने लगी कि

बताओ तुम्हारे घर में अलग से शौचालय है? हर जगह बहुत कुछ मांगोगी तो कैसे चलेगा? आज सेनेटरी पैड्स मांग रही हो कल को निरोध भी मांगोगी.

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शायद एमडी ये भूल गयीं कि ‘बहुत कुछ’ और शौचालय में बहुत अंतर होता है. बच्चियां खाने का सामान या कपड़े नही बल्कि विद्यालय में अपने लिए अलग से शौचालय की मांग कर रही थी. जिस बच्ची ने शौचालय का मुद्दा उठाया था वह कमला नेहरु नगर स्लम कि रहने वाली है. दस हज़ार जनसंख्या वाले इस स्लम में मात्र 12 शौचालय हैं. जिसके इस्तेमाल के लिए 5 रूपए शुल्क लिया जाता है. इस स्लम में रहने वाली कितनी ही लड़कियां आज भी इन्हीं सार्वजनिक शौचालय के भरोसे हैं. वहीं स्लम से स्कूल पढ़ने जाने वाली लड़कियां स्कूल के शौचालय पर निर्भर रहती हैं.

लेकिन बिहार के सरकारी स्कूलों में व्यवस्था की दुर्दशा किसी से छिपी नही है. यहां बच्चों को भवन, शिक्षक, पीने का पानी और शौचालय की भारी कमी है.

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यूनीफाइड डिस्ट्रीक्ट इंफारमेंशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की 2020-21 के रिपोर्ट के अनुसार बिहार में कुल 75,555 सरकारी स्कूल मौजूद है. जिनमे प्राइमरी से लेकर हाईस्कूल तक स्कूल शामिल है.  

यूनीफाइड डिस्ट्रीक्ट इंफारमेंशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की कि रिपोर्ट के अनुसार बिहार के कुल 75,251 स्कूलों में शौचालय कि व्यवस्था है. जिसमे से 74,075 स्कूल में लड़कियों के लिए शौचालय की व्यवस्था है. वहीं 72,993 स्कूलों में लड़कों के लिए शौचालय की व्यवस्था है.

शिक्षा विभाग के आंकड़े देखें तो सिर्फ़ पटना जिले के कुल 4,054  स्कूलों में से 1,154  स्कूल में शौचालय नहीं है. इन 1,154 स्कूलों में से 557 स्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ लड़कियों के लिए है.

वहीं बात अगर पीने के पानी कि जाए तो यूनीफाइड डिस्ट्रीक्ट इंफारमेंशन सिस्टम फॉर एजुकेशन की रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 75,348 (99.73%) सरकारी स्कूल में पीने के पानी कि व्यवस्था है.

सरकार योजनाओं का निर्माण तो करती है लेकिन इसका क्रियान्वयन ज़मीनी स्तर पर देखने को नहीं मिलता है. पटना स्मार्ट सिटी के तहत पटना के छह सरकारी स्कूलों को तकनीकी और भौतिक रूप से स्मार्ट बनाने का काम शुरू किया गया था. जिसके तहत स्कूल में सीमेंट के फर्श की जगह टाइल्स, स्मार्ट बोर्ड, नए बेंच और डेस्क भी लगाया गया है. स्कूल में नये शौचालय का निर्माण भी किया गया है. लेकिन शौचालय की गंदगी देखकर किसी का भी उसमे जाने का मन नहीं करेगा.

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राजकीय कन्या मध्य विद्यालय, तारामंडल भी इन्हीं स्मार्ट स्कूलों में से एक हैं. स्कूल की बिल्डिंग, क्लासरूम, शौचालय सब नए रूप में बनकर तैयार हैं. यहां पढ़ने वाले बच्चे भी इस बदलाव से खुश हैं. लेकिन जब उनसे शौचालय में मौजूद गंदगी के बारे में पूछा गया तो बच्चे जवाब देने में झिझकने लगे.

आठवीं क्लास में पढने वाली छात्रा माला का कहना है कि

शौचालय कभी साफ़ रहता है कभी गंदा रहता है. पहले तो इससे भी ज़्यादा ख़राब था. अब तो हमारा स्कूल स्मार्ट हो गया है तो व्यवस्था भी पहले से ज्यादा अच्छा हो गया है.

आठवीं कक्षा की छात्रा अनू का कहना है कि

शौचालय जब गंदा रहता है तो हम इस्तेमाल ही नहीं करते हैं. यदि बहुत ज़रूरी हो जाता है, तभी उसका इस्तेमाल करते हैं. 

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राजकीय कन्या मध्य विद्यालय में लगभग छह सौ बच्चे पढ़ते हैं. स्कूल का नाम कन्या विद्यालय है मगर यहां लड़कियों के साथ-साथ लड़के भी पढ़ते हैं. कक्षा एक से आठवीं तक के इस विद्यालय में बच्चों के लिए छह शौचालय बनाये गए हैं. शौचालय के नए भवन में पानी की व्यवस्था भी मौजूद है लेकिन पानी की निकास की व्यवस्था ही नहीं की गयी है. जिसके कारण शौचालय के अंदर जाने के गेट पर ही पानी जमा हुआ है. शौचालय के अंदर भी गंदगी मौजूद है. इतनी गंदगी देखकर सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्चे इस शौचालय का इस्तेमाल मजबूरी में ही करते होंगे.

शौचालय में मौजूद गंदगी को लेकर जब हमने स्कूल कि प्राचार्य मुन्नी कुमारी से बात की तो उनका कहना है कि

स्मार्ट सिटी के तहत काम कराया जा रहा है. शौचालय में दरवाज़ा भी कुछ दिनों पहले लगाया गया है. स्कूल में इतने बच्चे पढ़ते हैं तो गंदगी हो जाता है. दो दिन पर स्वीपर बुलाकर साफ़ करवाते हैं. पानी जमने का कारण है कि ठेकेदार ने गलत तरीके से नाले पर जाली लगा दिया है जिसके कारण पानी का निकास नहीं हो रहा है. ठेकेदार को बोले हैं इसको जल्द ही ठीक करा लिया जाएगा.

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वहीं बांकीपुर कन्या उच्च विद्यालय में लगभग 25 शौचालय छात्राओं के लिए मौजूद है. इनमे कुछ शौचालय कि स्थिति अच्छी है तो कुछ कि स्थिति सही नहीं है. कुछ शौचालय के दरवाजे भी टूटे हुए हैं और उनमे पानी की व्यवस्था भी मौजूद नहीं है. स्वच्छ विद्यालय अभियान के तहत विद्यालय में शौचालय का निर्माण कराया गया था. लेकिन अब इनमे से अधिकतर की स्थिति जर्जर  है. हाथ मुंह धोने के लिए नल भी लगाया गया था लेकिन उनमे से कुछ नलों से पानी नहीं आता है. जिन नलों से पानी आता है उन नालों के आस-पास पानी जमे होने के कारण बहुत गंदगी हो जमा हो गयी है.   

यहां पढ़ने वाली छात्राओं का कहना है कि शौचालय तो साफ़ रहता है लेकिन इधर कुछ दिनों से काफी गंदगी रहती है. कक्षा बारहवीं में पढ़ने वाली निधि, अहाना, शाज़िया का कहना है कि

शौचालय से अभी बहुत बदबू आती है. इसलिए नहीं जाते हैं. बहुत ज़रूरी होता है तभी जाते हैं. पहले इतना गंदगी नहीं रहती थी. शौचालय तो बहुत सारा है. टीचर के लिए अलग से शौचालय है. स्कूल के आगे वाले हिस्से में मौजूद शौचालय अभी इलेक्शन वालों ने ले लिया है. इसलिए हमलोग स्कूल के पीछे बने शौचालय का इस्तेमाल करते हैं.

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मार्च 2021 में पटना हाईकोर्ट ने तीन सदस्यों कि कमिटी का गठन किया था. जिसमे अर्चना सिन्हा शाही, अनुकृति जयपुरियार और अमृषा श्रीवास्तव को शामिल किया गया था. इस समिति का उद्देश्य स्कूलों में शौचालय के बुनियादी ढांचे की वास्तविकता जानना था. समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इन स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे या तो थे ही नहीं, या फिर फंड की कमी और नियमित सफाईकर्मियों की कमी के कारण बहुत खराब स्थिति में थे. समिती के रिपोर्ट देने के बाद कोर्ट ने कहा

पटना शहर स्मार्ट सिटी में शुमार है और यहां के गर्ल्स स्कूलो में शौचालय नहीं है, जहां शौचालय है तो साफ नहीं है.

स्कूलों में शौचालय कि ऐसी हलात को देखते हुए पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया था कि वो इन स्थानों पर छात्राओं को सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए धन आवंटन और अन्य आवश्यक कार्यवाही के बारे में जवाब दाखिल करें.

लगभग डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी इन सरकारी स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था जस के तस बनी हुई है. सरकारी रवैये के कारण आज भी सरकारी स्कूलों में पढने वाले बच्चों को बुनियादी और आवश्यक सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है. 

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