शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने टी संता सिंह द्वारा डाली गई जनहित याचिका दायर पर सुनवाई करते हुए ट्रांसजेंडर समुदाय को रक्तदान से रोकने वाली दिशानिर्देशों पर आपत्ति जताते हुए नोटिस जारी किया है। यह जनहित याचिका में रक्तदान गाइडलाइंस के धारा 12 और 51 की संवैधानिकता को चुनौती दी गई है। इस गाइडलाइन के तहत ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को रक्तदान करने से रोक लगा दी गई है।
जनहित याचिका में संविधान की इन धाराओं पर रोक लगाने की मांग की गई
सामाजिक कार्यकर्ता थंगजाम सांता सिंह मणिपुर की रहने वाली हैं। उन्होंने याचिका में संविधान के इस नियम को भेदभाव वाला बताया। इसपर आज सुप्रीम कोर्ट ने सरकार, नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल (एनबीटीसी) और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) से जवाब मांगा।
सांता का कहना है कि वर्ष 2017 में रक्तदान संबंधित गाइडलाइन जारी किए गए। इसमें रक्तदान करने के योग्य लोगों की लिस्ट दी गई है। लिस्ट के सीरियल नंबर 12 में इस बात का जिक्र है कि ट्रांसजेंडर रक्तदान नहीं कर सकते।
ट्रांसजेंडर समुदाय याचिका में इन कानूनों को अनुचित, भेदभावपूर्ण और अवैज्ञानिक बताया गया
याचिकाकर्ता के सीनियर वकील जयना कोठारी ने कोर्ट को बताया कि यह नियम 1980 के दशक में प्रचलित धारणाओं के आधार पर बनाए गए हैं। उस वक्त यह माना जाता था कि ट्रांसजेंडर और समलैंगिक को एचआईवी/एड्स का खतरा अधिक होता है। जब रक्तदान से पहले हर ब्लड डोनर का एचआईवी, हेपटाइटिस और दूसरी संक्रामक बीमारियों का टेस्ट होता है तो इन नियमों की कोई जरूरत नहीं है।
कोर्ट ने रोक से इंकार करते हुए कहा यह चिकित्सा से जुड़ा मामला, जवाब आने के बाद करेंगे फैसला
सीजेआई बोबडे ने कहा कि यह चिकित्सा का मामला है। हम इन मुद्दों को नहीं समझते हैं। हालांकि केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी कर इस मुद्दे में विस्तृत जवाब मांगा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रक्तदाता दिशा-निर्देशों को रोकने से इनकार कर दिया और कहा कि वह इस मुद्दे को समझे बिना आदेश पारित नहीं कर सकता है।
इस मामले में टी संता सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करने वाली चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की बेंच ने सरकार को नोटिस जारी किया। सीजेआई बोबडे की अध्यक्षता में मामले की सुनवाई करने वाली बेंच ने कहा, ‘हमने नोटिस जारी कर दिया है और हम उनका जवाब देखेंगे।’
याचिका में दावा किया गया है कि ये प्रतिबंध ‘‘नकारात्मक रूढ़िवादी मान्यताओं’’ के चलते लगाये गये है
याचिका में कहा गया यह क़ानून उनके साथ भेदभाव है और उन्हें अनुच्छेद 14 के तहत समान गरिमा से वंचित किया जाता है क्योंकि उन्हें सामाजिक भागीदारी और स्वास्थ्य सेवा में ‘‘अयोग्य और कमतर’’ समझा जाता है।
याचिका में कहा गया है, “कोविड-19 संकट को देखते हुए जहां आपातकालीन और वैकल्पिक सर्जरी तथा उपचार के लिए पहले से कहीं अधिक रक्त की आवश्यकता होती है। ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों और महामारी से प्रभावित लोगों के वास्ते जीवनरक्षक रक्त प्राप्त करने के लिए उनके परिवार और समुदाय के सदस्यों पर भरोसा करना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।”