बिहार में पर्यटक स्थल भी इतने चर्चा में नहीं रहते जितनी यहां की राजनीति रहती है. बिहार की राजनीति ठंड के दिनों में भी अपनी खबरों से सियासी गर्माहट पैदा कर सकती है. नीतीश सरकार आए दिनों अपने पार्टी के जोड़-तोड़ और बयानों की वजह से सुर्खियां बटोरती है. बीते दिन ही जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के इस्तीफ़े की खबर ने राज्य भर में सभी को चौका कर रख दिया था.
ललन सिंह के इस्तीफे की खबर पर बीजेपी ने खूब खबरें बनाई थी, जिस पर जदयू ने बाद में खंडन करते हुए इस्तीफे को गलत बताया था. इसी बीच बुधवार को एक बार फिर से पार्टी में नई हलचल देखने को मिली है. 27 दिसंबर को अचानक ही पूर्व सांसद आनंद मोहन अपनी पत्नी लवली आनंद के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने के लिए पहुंचे. सीएम आवास पर आनंद मोहन के पहुंचने पर जदयू में उनके शामिल होने की चर्चा तेज हो गई है.
हालांकि यह चर्चा बीते कई महीनो से चल रही थी कि आनंद मोहन जदयू कोटे से चुनाव लड़ सकते हैं. जब से आनंद मोहन की रिहाई हुई है तब से ही नीतीश कुमार के साथ आनंद मोहन के जुड़ने की बात कही जा रही है.
कई मौकों पर आनंद मोहन और सीएम नीतीश कुमार दिखे एकसाथ
आनंद मोहन पहले बिहार के कोसी क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं. जेल से इस साल निकलने के बाद कई मौकों पर आनंद मोहन और सीएम को एकसाथ देखा गया है. 27 अक्टूबर को भी नीतीश कुमार आनंद मोहन के स्वर्गीय दादा राम बहादुर सिंह और चाचा पद्मानंद सिंह की मूर्ति का अनावरण मूर्ति के अनावरण कार्यक्रम में पहुंचे थे.
आनंद मोहन के बड़े बेटे अंशुमन आनंद ने पहले बयान दिया था कि उनके भाई चेतन आनंद आरजेडी से विधायक है और राजद के ही बन के रहेंगे. मां लवली आनंद भी राजद में ही रहेगी और बात रही पिता आनंद मोहन की तो वह बाद में देखा जाएगा कि क्या होता है.
सीएम नीतीश कुमार से मिलने के बाद मीडिया से बातचीत करने के दौरान आनंद मोहन ने कहा कि बैठक के सियासी मायने ना निकल जाए. सीएम से उनका पुराना संबंध है. मीडिया ने आनंद मोहन से पूछा कि क्या वजह जदयू में शामिल होंगे? जिस पर उन्होंने कहा कि यह अभी तय नहीं है चुनाव लड़ने के लिए ही वह राजनीति में हैं.
मालूम हो की 29 दिसंबर को जदयू की कार्यकारिणी बैठक होने वाली है. इस बैठक के पहले आनंद मोहन और नीतीश कुमार की यह मुलाकात को बहुत ही अहम माना जा रहा है.
आनंद मोहन को तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया था. जिसके बाद उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. लेकिन बिहार सरकार ने कानून में कुछ फेरबदल कर उन्हें रिहा करा लिया था. कहा गया था कि नीतीश कुमार का इन कानून में बदलाव के पीछे बहुत बड़ा हाथ रहा है.