साल 2018 में, भारत सरकार ने 'एनीमिया मुक्त भारत'(Anemia Free India) अभियान की शुरुआत की थी. NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं देशभर में 15 से 49 वर्ष की प्रेग्नेंट महिलाओं में एनीमिया की दर 67% पायी गयी है, जो NFHS-4 (2015-16) के समय 58.3% था. वहीं एनीमिया ग्रस्त पुरुषों (15-49 वर्ष) की संख्या 25% और महिलाओं (15-49 वर्ष) की 57% दर्ज की गयी है. किशोर लड़कों (15-19 वर्ष) में 31.1%, किशोर लड़कियों में 59.1% और बच्चों (6-59 महीने) में 67.1% है.
बीते साल (2023-24) के बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने कहा था कि सरकार साल 2047 तक एनीमिया को खत्म करने के लिए एक मिशन के तहत काम करेगी.
‘एनीमिया’ एक ऐसी बीमारी जिसमें पीड़ित व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है. एनीमिया के कारण व्यक्ति को थकान, चिड़चिड़ापन जैसी समस्यायों से गुजरना पड़ता है. देश के अलग-अलग राज्यों में एनीमिया पीड़ित लोगों की संख्या बढ़ने के कारण, सरकार इसके नियंत्रण के लिए एक बार फिर प्रयास में लग गयी है. एनीमिया चार तरह का होता है. पहला- ब्लड लॉस एनीमिया जिसमें शरीर में खून की कमी हो जाती है. दूसरा- विटामिन B12 की कमी से होने वाला एनीमिया जिसमें शरीर में RBC (Red Blood Cells) की कमी हो जाती है. तीसरा- आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया और चौथा होता है सिकल सेल एनीमिया. एनीमिया को नियंत्रित करने के हाल के प्रयासों में केंद्र सरकार अब, आयुर्वेदिक उपचार पद्धति का सहारा लेने वाली है.