बिहार के शेक्सपियर ने अपने नाटकों को जिया, लेकिन राज्य में एक भी नाट्य विश्वविद्यालय नहीं

क्षेत्रीय नाटककारों में भिखारी ठाकुर का नाम काफ़ी ऊंचा है. भोजपुरी भाषा के विकास में अपना योगदान देने के कारण भिखारी ठाकुर को ‘भोजपुरी के शेक्सपीयर’ की उपाधि दी जाती है.

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राज्य में एक भी नाट्य विश्वविद्यालय नहीं

राज्य में एक भी नाट्य विश्वविद्यालय नहीं

क्षेत्रीय नाटककारों में भिखारी ठाकुर का नाम काफ़ी ऊंचा है. भोजपुरी भाषा के विकास में अपना योगदान देने के कारण भिखारी ठाकुर को ‘भोजपुरी के शेक्सपीयर’ की उपाधि दी जाती है.

भिखारी ठाकुर ने क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी में सामाजिक कुरीतियों को नाटकों और गीतों के माध्यम से लोगों के सामने प्रस्तुत किया था. समाज में महिलाओं की स्थिति के ऊपर बिदेशिया, बेटी-बेचवा और बिधवा-विलाप जैसे नाटक उन्होंने लिखे थे. वहीं परिवार में बुजुर्गों की स्थिति पर कटाक्ष करते हुए भिखारी ठाकुर ने ‘बूढ़शाला के बयान’ में बुढ़ापे में होने वाली समस्याओं का उल्लेख किया था. उस समय बूढ़शाला (ओल्ड एज होम) की मांग करना उनकी दूरदर्शिता का परिचायक था. इसके अलावा उन्होंने जातिवाद के ऊपर ‘चौवर्ण पदवी’ और ‘नाई बहार’ जैसे नाटक लिखे जो वर्ण व्यवस्था के कारण हो रहे शोषण को प्रदर्शित करते हैं.

नाट्यकला को सामाजिक स्वीकार्यता नहीं मिलने के कारण आजतक यह आजीविका का श्रोत नहीं बन सका. नाट्य विद्यालय की स्थापना होने से इस क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित हो सकते हैं.

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