बिहार में चल रहे जमीन सर्वेक्षण पर पटना हाईकोर्ट के वकीलों ने सवाल खड़ा किया है. भूमि सर्वेक्षण की प्रक्रिया पर पटना हाईकोर्ट के दो वकीलों ने गंभीर आरोप लगाए हैं. हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा और कृष्णा प्रसाद सिंह ने कहा कि जमीन सर्वे के नाम पर लोगों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है. जमीन मालिकों से कागजात मांगे जा रहे हैं, जबकि सरकार के पास खुद जमीन के कागजात उपलब्ध नहीं है.
वकीलों ने कहा कि कैडेस्ट्रेल और रिविजनल सर्वे के बाद देश आजाद होने पर जमींदारों ने जमीन का रिटर्न दाखिल किया था. उसमें जमीन किसके पास है, उसका ब्योरा है. मगर आज कई जिलों के जमींदारों के रिटर्न उपलब्ध नहीं है. कई प्रखंड में जमाबंदी रजिस्टर-दो का पन्ना फटा या गायब है. सरकार को सबसे पहले जमींदारों के रिटर्न को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि लोगों को पता चला सके की 1950 में जमीन किसके पास थी.
वकीलों ने आगे बताया कि अभी रिविजनल सर्वे के बाद तैयार खतियान को आधार माना जा रहा है, जबकि रिविजनल सर्वे के बाद जमीन की बिक्री हो चुकी है और खतियान में नाम के आधार पर लोग जमीन पर अपना दावा कर रहे हैं. जिस जमीन पर दवा हो रहा है उसे पूर्वजों ने बेच दिया है. साथ ही जो लोग अपने गांव में नहीं रहते हैं उनके जमीन को अगल-बगल के भू मालिकों ने भी कब्जा कर लिया है. ऐसे में सरकार के जमीन के एरियल सर्वे में वास्तविक जमीन के बजाय कब्जे की जमीन दिखाई देगी.
रिविजनल सर्वे के दौरान बना नक्शा जमीन की मापी पर कुछ और होगी. सरकार जो जमीन सर्वे वर्तमान में चल रही है, यह जल्दबाजी में उठाया गया कदम है. इसे तुरंत बंद कर देना चाहिए. सरकार को पहले कर्मचारियों के जरिए राजस्व रिकॉर्ड जिसमें खतियान, वंशावली, रजिस्टर-दो और जमीन राजस्व रसीद है, उसे अपडेट करना चाहिए. उसके बाद भूमि सर्वेक्षण करना चाहिए.