झारखंड के पारंपरिक वाद्ययंत्र मांदर को जल्द ही ज्योग्राफिकल इंडिकेशन(GI) टैग मिलने जा रहा है. मांदर को GI टैग दिलाने के लिए गुमला जिला प्रशासन की ओर से चेन्नई के ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री सेंटर में आवेदन दिया गया है. इसे गुमला के तत्कालीन डीसी सुशांत गौरव ने 2023 में कवायद शुरू की थी. मौजूदा डीसी कर्ण सत्यार्थी इस आवेदन की मॉनीटरिंग कर रहे हैं. मांदर को GI टैग मिलने के बाद इसपर झारखंड का एकाधिकार हो जाएगा.
दरअसल मांदर झारखंड में ही बनाया और बजाया जाता है. इसका इस्तेमाल राज्य में पूजा-पाठ, शादी-विवाह या खुशी के मौके पर किया जाता है .झारखंड के गुमला के रायडीह प्रखंड के जर्जटा गांव में दो दर्जन से अधिक परिवार मांदर बनाने का काम करते हैं. यह एक ऐसा इकलौता वाद्ययंत्र है जिसका जैसा दूसरा कोई भी वाद्ययंत्र किसी देश या प्रदेश में मौजूद नहीं है. इसे बनाने में तीन से आठ दिन का समय लग जाता है. इससे निकलने वाली मधुर आवाज के लिए कई परिवारों की मेहनत लगती है.
मांदर में इस्तेमाल होने वाले सभी उपकरण गुमला के पठारी क्षेत्र में पाए जाते हैं, जिसमें खोल, शंख नदी की मिट्टी से तैयार होता है. चमड़े को चाती के ऊपर वाले रंग जिससे टंग की आवाज निकलती है, इसे महिलाएं अपने हाथों से पीसकर बनाती है. इसके अलावा मांदर में लगने वाली तिरी, बाधी, टाना, पोरा, डोरा, ढिसना, खरन इत्यादि चीज हाथों से बनाई जाती है. इस तरह से मांदर पूरी तरह से स्थानीय संसाधनों और पारंपरिक तरीकों से बनाया जाता है.
गुमला के तत्कालीन डीसी कर्ण सत्यार्थी ने मांदर को GI टैग मिलने पर कहा कई मानकों में अब मांदर खरा उतरा है. उम्मीद है कि इस इस साल GI टैग मिल जाएगा.