बिहार में नीतीश सरकार द्वारा कराया जा रहा भूमि सर्वेक्षण सर दर्द बनता हुआ नजर आ रहा है. आम लोगों से लेकर कर्मचारियों और अधिकारियों तक को भूमि सर्वेक्षण में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. जिसमें अब नई मुश्किल एक लिपि को लेकर हो गई है. दरअसल अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को संजोए कैथी लिपि कर्मचारियों को सर दर्द दे रहा है. कभी राज्य में इस लिपि से ही प्रशासनिक और व्यक्तिगत दस्तावेजों को लिखा जाता था. इसके साक्ष्य आज भी मौजूद है.
भूमि से संबंधित कागजों में कैथी लिपि का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता था. मगर इस ऐतिहासिक लिपि का प्रचलन समय के साथ खत्म हो गया. मुगल काल और ब्रिटिश काल में इस लिपि का इस्तेमाल काफ़ी प्रचलन में था. कैथी लिपि में ही सर्वे खतियान, रसीद, बंदोबस्त संबंधी कागजात इत्यादि लिखे जाते थे. भूमि सर्वेक्षण के दौरान अब कर्मचारियों को यह समझने में परेशानी हो रही है.
आज के दौर में काफी कम लोग कैथी पढ़-लिख सकते हैं. अधिकारियों को पुराने दस्तावेजों में कैथी पढ़ने में परेशानी हो रही है, जिस कारण अब भूमि सर्वेक्षण में यह चुनौती बन गया है. इसके लिए सर्वेक्षण में लगे कर्मचारी और अधिकारी जगह-जगह भटक रहे हैं. खबरों के मुताबिक राजधानी पटना में 5 हजार रुपए से अधिक राशि लेकर एक्सपर्ट कैथी दस्तावेजों को ट्रांसलेट कर रहे हैं. मगर इनका अनुवाद कितना सही है इसकी जानकारी अमीनो को भी नहीं है. गलत अनुवाद के कारण भूमि विवाद होने की संभावना बढ़ सकती है. जिस कारण भूमि सर्वेक्षण का काम अटकता हुआ नजर आ रहा है.
इस समस्या को देखते हुए राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के निदेशक के भू अभिलेख एवं परिमाप जय सिंह ने अमीनो और कानूनगो को कैथी लिपि प्रशिक्षण देने का फैसला किया है.
मालूम हो कि बिहार में कैथी लिपि की पढाई मात्र तिलका मांझी विश्वविद्यालय भागलपुर में होती है. यहां इस लिपि में 6 महीने का सर्टिफिकेट कोर्स कराया जाता है. राज्य में 17 से 19 सितंबर तक भू के रिसर्च स्कॉलर अमीनो और कानूनगो को कैथी लिपि प्रशिक्षण देने की शुरुआत करेंगे.