आज चुनाव आयोग लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान करेगा, इसी के साथ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीखों का भी आज ऐलान हो जाएगा. इसी बीच चुनावी मौसम में सबसे ज्यादा चुनाव आयोग और आचार संहिता की चर्चा हो रही है.
आज हम जानेंगे कि चुनाव आयोग के चुनावी तारीख ऐलान करने के बाद जो आचार संहिता लागू होती है, वह दरअसल क्या है?
दरअसल चुनाव आने के साथ ही सभी राजनीतिक पार्टियां सक्रिय हो जाती हैं. पार्टियों को अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए लगातार घोषणाओं, योजनाओं को लाना, पोस्टर लगवाना, पार्टी का प्रचार करना यह सब करना रहता है. आचार संहिता या मोरल कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होने से इनमें से कुछ चीजों पर प्रतिबन्ध लग जाता है.
आचार संहिता पूरे देश भर में लागू
देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग द्वारा कुछ नियम बनाए जाते हैं, इन नियमों को आचार संहिता कहते हैं. लोकसभा, विधानसभा चुनाव के दौरान सभी पार्टियों के नेताओं और सरकारों को आचार संहिता का खास तौर पर पालन करना होता है. आचार संहिता चुनाव आयोग द्वारा चुनावी तारीखों के घोषणा के बाद से ही लागू हो जाती है और जब तक चुनाव प्रक्रिया खत्म नहीं होती तब तक यह लागू रहती है.
लोकसभा चुनाव के दौरान आचार संहिता पूरे देश भर में लागू होती है, जबकि विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य स्तर पर आचार संहिता का पालन किया जाता है. और उपचुनाव के दौरान यह केवल संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत लागू होते हैं. आचार संहिता के दौरान इस बात पर गौर किया जाता है कि चुनाव की प्रक्रिया के दौरान राजनीतिक दल, उम्मीदवार और सत्ता में रहने वाले दलों को चुनाव प्रचार बैठके और जुलूस आयोजित करने के दौरान गतिविधियों और कामकाज के आचरण कैसे रखना है.
इस दौरान यह भी ध्यान में रखा जाता है कि चुनाव प्रचार के लिए धार्मिक स्थानों जैसे मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरुद्वारा या अन्य पूजा स्थलों पर जाने की मनाही रहता है. इसके अलावा वोट बैंक को साधने के लिए जाति या सांप्रदायिक भावनाओं की अपील नहीं की जा सकती है. साथ ही चुनाव प्रचार के दौरान कोई भी पार्टी या उम्मीदवार ऐसे किसी
मतदान केंद्र के 100 मीटर के दायरे में प्रचार पर रोक
मतदाताओं को रिश्वत देना, डराना-धमकाना, मतदान केंद्र से 100 मीटर की दूरी के भीतर प्रचार प्रसार करना अपराधिक गतिविधि में गिना जाता है. इसके अलावा चुनाव के 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार, सार्वजनिक सभाएं सभी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है.
आचार संहिता लागू होने के बाद राजनीतिक पार्टियां अपने दल के उम्मीदवार की कोई भी यात्रा को चुनावी प्रचार से नहीं जोड़ सकता है. नेता या उम्मीदवार प्रचार के लिए सरकारी गाड़ी या फिर सरकारी बंगले का इस्तेमाल नहीं कर सकता है. इसके अलावा चुनाव प्रचार के दौरान आधिकारिक मशीनरी या कर्मियों का भी उपयोग नहीं कर सकता है. पार्टी के उम्मीदवार के लिए आधिकारिक विमान, वाहन या किसी परिवहन का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए अधिकारियों, कर्मियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग पर भी चुनाव प्रक्रिया खत्म होने तक प्रतिबंध रहता है. किसी भी सरकारी योजना का उद्घाटन, घोषणा पर भी प्रतिबन्ध रहता है. पार्टी की उपलब्धियों के विज्ञापन पर भी खर्च नहीं किया जा सकते हैं.
आचार संहिता को न मानने वालों के खिलाफ कानूनी उल्लंघन का आरोप लगता है. इसका उल्लंघन करने पर शख्स या पार्टी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही या बर्खास्तगी भी हो सकती है.
आचार संहिता को किसी भी कानून के अंतर्गत नहीं रखा गया है बल्कि यह सभी राजनीतिक दलों के सहमति से बनाया गया है. 1962 के लोकसभा चुनाव में पहली बार आचार संहिता को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों ने माना था.