Loksabha Election 2024: जानिए चुनाव में पार्टियां कितना खर्च करती हैं? जमानत जब्त होना क्या है?

Loksabha Election 2024: हमारे देश में हर एक चुनाव में भले ही वह पंचायत, राष्ट्रपति उम्मीदवार, प्रधानमंत्री या फिर मुख्यमंत्री सभी के लिए तय सीमा के अंदर ही पार्टियों को पैसा खर्च करने की इजाजत है.

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जमानत जब्त होना

जमानत जब्त होना

लोकसभा चुनाव 2024 की दौड़ भाग में राजनीतिक पार्टियों का आना-जाना सभी राज्यों में लगा हुआ है. तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने दल को जीताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते हुए जनसभा और रैलियों को आयोजित कर रही है. लेकिन क्या कभी इन रैलियों, जनसभाओं या बड़े स्तर के प्रचार को देखकर आपको यह ख्याल आता है कि इन सब में कितना पैसा लगता होगा? क्या आपने कभी सोचा है कि इन चुनाव में कितने पैसे एक पार्टी खर्च कर सकती है? कहा जाता है कि चुनाव में पार्टियां अंधाधुन पैसा बहाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे देश में चुनाव में पैसा खर्च करने के लिए भी एक सीमा बनाई गई है? 

जी हां, हमारे देश में हर एक चुनाव में भले ही वह पंचायत स्तर का हो, राष्ट्रपति उम्मीदवार का, प्रधानमंत्री का या फिर मुख्यमंत्री सभी के लिए तय सीमा के अंदर ही पार्टियों को पैसा खर्च करने की इजाजत है.

चुनाव में पार्टियां कितना खर्च करती हैं

लोकसभा चुनाव 2024 की घोषणा के बाद चुनाव आयोग ने यह भी तय कर लिया था कि राज्य स्तर पर पार्टियां कितने पैसे चुनाव में खर्च कर सकती हैं. सांसद चुनाव लड़ रहे छोटे राज्यों के लिए किसी भी प्रत्याशी को 75 लाख रुपए खर्च करने और बड़े राज्यों को 95 लाख रुपए तक खर्च करने की इजाजत दी गई है. इसके साथ ही जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, वहां उम्मीदवार 40 लाख रुपए तक खर्च कर सकते हैं. इन खर्चों में चाय, पानी से लेकर बैठक, जुलूस, रैली, विज्ञापन, पोस्टर और वाहनों का भी खर्च शामिल है. 

चुनाव आयोग उम्मीदवार के लिए चुनाव के दौरान अधिकतम खर्च सीमा तय करता है, इससे चुनाव में धन और बल दोनों पर ही आयोग काबू रखता है. आयोग के मुताबिक नामांकन के साथ ही खर्च की गणना की शुरुआत हो जाती है. नियम के अनुसार एक डायरी में उम्मीदवार को अपने हर दिन के खर्चों को लिखना पड़ता है और चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आयोग को पूरे खर्च का ब्योरा देना होता है. 

चुनाव में खर्च करने की सीमा घटती-बढ़ती रहती है, यह सीमा मुद्रास्फीति सूचकांक के सहारे बनाई जाती है. सूचकांक में देखा जाता है कि बीते वर्ष किन सेवाओं और वस्तुओं के मूल्यों में बढ़त हुई थी. इसके आधार पर ही चुनाव आयोग उम्मीदवारों को चुनाव में खर्च करने की सीमा तैयार करता है. यह सीमा बड़े और छोटे राज्यों के लिए अलग-अलग तैयार की जाती है.

1951 में देश में पहली बार आम चुनाव हुए जिस दौरान उम्मीदवारों को चुनाव में 25,000 रुपए ख़र्च करने थे. इसके बाद 1971 के आम चुनाव में 25,000 से बढ़कर 35,000 रुपए किया गया, जो साल 1977 तक बरकरार रहा. 1977 के बाद जरूरत के हिसाब से इन खर्चों में बढ़ोतरी की गई और 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान 25 लाख रुपए तक पहुंच गई. 2011 के आम चुनाव में अलग-अलग राज्यों के लिए खर्च की सीमा 22 लाख रुपए से 40 लाख रुपए तय की गई थी. वही 2014 के आम चुनाव में यह सीमा बढ़ाकर 54 लाख रुपए से 70 लाख रुपए तक पहुंच गई. 2020 में चुनाव आयोग ने खर्च की समीक्षा के लिए कमेटी बनाई, जिसने 70 लाख रुपए से 95 लाख रुपए तक चुनावी खर्च की रिपोर्ट सौंपी.

जमानत जब्त होना क्या होता है?

अब बात करते हैं जमानत जब्त होने की. चुनाव के बाद कई बार आपने सुना होगा कि उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. जमानत जब्त होना क्या होता है और इसके क्या मायने हैं? 

दरअसल उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के लिए चुनाव आयोग को निर्धारित राशि का भुगतान करना होता है, जिसे जमानत राशि के नाम पर जाना जाता है. 

चुनाव में अगर कोई उम्मीदवार किसी सीट पर निर्धारित वोट नहीं ला पता तो उसकी जमानत राशि आयोग जब्त कर लेता है. जमानत राशि हर चुनाव के लिए अलग-अलग तय है, जैसे लोकसभा चुनाव के लिए सामान्य उम्मीदवार को 25,000 रुपए और एससी-एसटी उम्मीदवार को 12,500 रुपए की जमानत राशि जमा कराना होता है.

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक जब कोई उम्मीदवार किसी सीट पर हुए मतदान में 1/6 यानी 16.66% वोट नहीं ला पाता, तो चुनाव आयोग उसकी जमानत राशि को जब्त कर लेता है. उदाहरण के तौर पर किसी सीट पर 10,000 वोट पड़े और वहां के एक उम्मीदवार को 1,666 से कम वोट मिले हैं, तो उस एक उम्मीदवार की जमानत जब्त हो जाएगी. वही जिस उम्मीदवार को 16.66% से ज्यादा वोट मिले हैं, उसकी जमानत राशि चुनाव आयोग लौटा देगा. इसके साथ ही अगर किसी उम्मीदवार का नामांकन रद्द हो जाता है या फिर उम्मीदवार अपना नाम वापस ले लेता है, तो उस स्थिति में भी जमानत राशि वापस हो जाती है.

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