2008 के परिसीमन के बाद सुपौल लोकसभा सीट अस्तित्व में आया. 2008 के बाद से सुपौल में तीन बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, 2009 के पहले लोकसभा चुनाव में जदयू का इस सीट पर कब्जा बना, जदयू के विश्व मोहन कुमार ने सुपौल सीट पर पार्टी को जीत दिलाई.
इसके बाद दूसरे चुनाव 2014 में कांग्रेस ने सुपौल सीट पर जीत हासिल की. 2014 के चुनाव में देश भर में मोदी लहर थी, कांग्रेस उम्मीदवार रंजीत रंजन ने इस सीट पर जीतकर खूब चर्चाएं बटोरी थी. चुनाव में रंजीत रंजन को 3,32,927 वोट मिले थे, जबकि जदयू के उम्मीदवार को 2,73,255 वोट मिले थे.
2019 के चुनाव में जदयू को मिली जीत
2019 के आम चुनाव में एक बार फिर से सुपौल की जनता ने जदयू को मौका दिया. 2019 में दिलेश्वर कामित ने जदयू को सुपौल सीट वापस दिलाई. दिलेश्वर कामित ने कांग्रेस नेता रंजीत रंजन को ढाई लाख वोटों के अंतर से हराया था. 2019 के सुपौल लोकसभा चुनाव में दिलेश्वर कामित को 5,97,377 वोट मिले थे. तो वहीं रंजीत रंजन को 3,30,524 वोट हासिल हुए थे.
अब तक के तीन चुनाव में किसी भी पार्टी ने लगातार दो बार सुपौल सीट पर अपनी पार्टी को जीत नहीं दिलाया है. सुपौल की जनता शायद विकास की एक तीली की तलाश में हर साल उम्मीदवारों को बदलती और परखती है.
सुपौल इलाका एक तरफ सीमांचल तो दूसरी तरफ नेपाल बॉर्डर से जुड़ा हुआ है. सुपौल जिला बनने के 34 साल गुजारने के बाद भी जिले में केंद्रीय विद्यालय की स्थापना नहीं हो पाई है. और ना ही कोसी स्थाई समाधान के लिए हाई डैम का निर्माण हो पाया है. चुनावी लहर में यह दोनों मुद्दे तेजी से उठते हैं और चुनाव खत्म होते ही मुद्दे दबा दिए जाते है. इस साल के चुनाव में एनडीए ने इस सीट के लिए जदयू उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है.
सुपौल लोकसभा क्षेत्र में 8,10,054 पुरुष वोटर है, महिला मतदाताओं की संख्या इस सीट पर पुरुषों के मुकाबले 70 हजार ज्यादा है. महिला मतदाताओं की संख्या सुपौल लोकसभा में 8,80,537 है. वही थर्ड जेंडर मतदाताओं की संख्या 29 है.