बिहार में सातवें चरण में जहानाबाद लोकसभा सीट पर वोटिंग होनी है. 1 जून को इस सीट पर जदयू प्रत्याशी बनाम राजद प्रत्याशी का मुकाबला होने वाला है. जहानाबाद में एक समय पर कांग्रेस और भाकपा का वर्चस्व देखा जा चुका है.
1957 के पहले चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार ने इस सीट पर जीत हासिल की थी. इसके बाद 1967 तक कांग्रेस यहां बनी रही. 1967 के चुनाव में जहानाबाद की जनता ने लगातार दो बार भाकपा को जिताया. 1977 तक भाकपा जहानाबाद में बनी रही. 1977 के बाद भारतीय लोक दल, 1980 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, 1984 से लगातार तीन टर्म 1996 तक फिरसे भाकपा जहानाबाद में बनी. 1996 में लालू यादव की पार्टी राजद ने जहानाबाद में जीत हासिल की, जो दो टर्म तक यहां बने रहने के बाद 1999 के चुनाव में जनता दल यूनाइटेड ने जीत हासिल की. इसके बाद फिर से 2004 के चुनाव में राजद और फिर से 2009 में जदयू की सरकार यहां बनी. 2014 से 2019 के बीच में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी(रालोसपा) ने जहानाबाद में जीत हासिल की, 2019 के चुनाव में जनता दल यूनाइटेड की जहनाबाद में वापसी हुई.
जहानाबाद में कांटे की टक्कर
2019 के चुनाव में जदयू के उम्मीदवार चंदेश्वर प्रसाद ने राजाद उम्मीदवार सुरेंद्र प्रसाद यादव को यहां कड़ी टक्कर दी थी. चंदेश्वर प्रसाद मात्र 1700 वोट से यहां जीत गए थे. इस कांटे की टक्कर में चंदेश्वर प्रसाद को 3,35,584 वोट मिले थे, जबकि राजद उम्मीदवार सुरेंद्र यादव को 3,33,833 वोट मिले थे. इस सीट पर कई चुनाव में आमने-सामने की लड़ाई देखी जा चुकी है.
जहानाबाद से इस बार फिर जदयू ने वर्तमान सांसद चंदेश्वर चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं राजद ने अपने खाते से जहानाबाद के लिए सुरेंद्र प्रसाद यादव को टिकट दिया है. सुरेंद्र प्रसाद यादव 1996 से 1999 तक राजद के लिए यह सीट जीतते रहे थे.
जदयू उम्मीदवार का विरोध
बीते दिनों एनडीए के प्रत्याशी चंदेश्वर चंद्रवंशी जहानाबाद में वोट मांगने पहुंचे थे, जहां कई जगहों पर उन्हें विरोध का सामना करना पड़ा था. लोगों ने कहा कि 5 साल बाद गांव में वोट मांगने के लिए आए है. जहानाबाद की जनता ने सांसद को खूब खरी-खोटी सुनाते हुए कहा की नीतीश सरकार ने युवाओं के लिए कुछ भी नहीं किया है. शिक्षक भर्ती में दूसरे राज्य को मौका देकर वहां के लोगों को भर्ती कर लिया है.
जहानाबाद में 15 लाख से ज्यादा मतदाता है, जहां यादव और भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा मानी जाती है. अब तक के आमने-सामने के मुकाबले में भी यादव और भूमिहार जाति के ही प्रत्याशी जीत दर्ज कराते रहे हैं. हालांकि पिछले चुनाव में जदयू ने अति पिछड़ा समुदाय के उम्मीदवार पर दांव खेला था और जीत हासिल की थी.