उत्तर प्रदेश ने देश को पहली महिला प्रधानमंत्री, पहली महिला सीएम, पहली महिला गवर्नर और पहली दलित महिला सीएम दिया है.
15 जनवरी 1956 को नई दिल्ली के अस्पताल में एक दलित लड़की का जन्म हुआ. गौतम बुद्ध नगर में डाक कर्मचारियों के तौर पर कार्यरत प्रभुदास और रामरति के घर एक लड़की का जन्म हुआ. यह कोई आम लड़की नहीं बल्कि मौजूदा समय की सबसे बड़ी दलित महिला नेत्री है. गरीब और दलित परिवार में जन्मी यह लड़की देश के सबसे बड़े राज्य में चार बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं. बहन जी के नाम से मशहूर बहुजन समाज पार्टी(बसपा) की अध्यक्ष मायावती यह नाम ही अपने आप में दलित समाज के टैग को पीछे छोड़ ऊपर उठने और बदलाव को दर्शाता है.
67 साल की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को बचपन से ही पढ़ने लिखने का काफी शौक था. वह हमेशा एक आईएएस ऑफिसर बनकर समाज में बदलाव लाना चाहती थी. मगर उनकी जिंदगी में कुछ ऐसे मोड़ आए जहां से उन्होंने राजनीति का दामन थामा और इसके लिए अपने परिवार तक से बगावत कर ली.
मायावती ने पहली बार 3 जून 1995 को यूपी के सीएम पद के शपथ ली थी. देश की पहली दलित महिला सीएम के तौर पर उन्होंने यह पद संभाला. हालांकि उनका पहला कार्यकाल महज 5 महीने का हीं रहा. इसके बाद 21 मार्च 1997 को मायावती ने दूसरी बार यूपी सीएम की शपथ ली और इस बार 7 महीने तक कार्यभार संभाला. उनका तीसरा कार्यकाल 3 मई 2002 से 29 अगस्त 2003 तक रहा और चौथी बार 13 मई 2007 से 2012 तक उन्होंने पहली बार अपना कार्यकाल पूरा किया. लेकिन 2012 में उन्हें समाजवादी पार्टी के सामने हर का सामना करना पड़ा.
मायावती के इस छोटे-छोटे मगर प्रभावी कार्यकाल ने कई महिलाओं और खासकर दलित महिलाओं को राजनीति से जोड़ने में काफी अहम भूमिका निभाई है.
दलित परिवार में जन्मी मायावती ने खुद भी दलितों के साथ होने वाले भेदभाव और उतार-चढ़ाव को देखा था. इसके अलावा लड़का और लड़की के बीच का फर्क भी मायावती ने बचपन में झेला था. मायावती 8 भाई बहन थी, जिसमें से उनके 6 भाइयों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया गया और बहनों को सरकारी स्कूल में डाल दिया गया. मगर इन सबसे मायावती की पढ़ाई पर कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी के कालिंदी कॉलेज की. यहां से बीए करने के बाद 1976 में उन्होंने मेरठ यूनिवर्सिटी से b.ed किया और फिर 1983 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी किया. इसी दौरान वह यूपीएससी की तैयारी भी कर रही थी. तैयारी के दौरान काशीराम के कहने पर मायावती ने अपने आईएएस का सपना छोड़कर राजनीति की ओर कदम बढ़ाया. हालांकि मायावती के सामने उनके पिता ने या तो घर या राजनीति की शर्त रखती जिस पर मायावती ने दलित और पिछड़ों के विकास के लिए राजनीति को चुना.
हालांकि एक दलित महिला का राजनीति में टिके रहना इतना भी आसान नहीं था. देश में पितृसत्तात्मक सोच हर दूसरे इंसान में बसी हुई है, जिस कारण महिलाओं के हर कदम को पीछे खींचने की कोशिश यह समाज करता है. महिलाओं को पीछे धकेलना वालों ने मायावती पर भी उंगलियां उठाई, लेकिन पुरुषवादी मानसिकता पर खुद हावी होते हुए उन्होंने दलितों के लिए खुद को समर्पित कर दिया. फोर्ब्स मैगजीन ने 2008 में मायावती को दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में 59वें स्थान पर रखा था.