मंगलवार को लोकसभा के शीतकालीन सत्र में एक देश एक चुनाव विधेयक पेश किया गया. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बिल को लोकसभा में पेश किया. इस बिल के पेश होने के बाद कांग्रेस, टीएमसी, सपा समेत कई दलों ने अपना विरोध दर्ज कराना शुरू किया है. तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन बिल कोई चुनाव सुधार नहीं है. बल्कि यह एक व्यक्ति की महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए लाया गया है. सपा सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा कि आखिर इस बिल को लाने की क्या आवश्यकता है. यह तानाशाही थोपने की कोशिश है.
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बिल का विरोध करते हुए कहा कि ‘एक’ की भावना तानाशाही की ओर ले जाने वाली है. देश में तानाशाही आएगी और संघीय लोकतंत्र के लिए रास्ता बंद हो जाएगा.
लोकसभा में भाजपा को जनता दल यूनाइटेड का समर्थन मिला. जदयू के नेता संजय कुमार झा ने कहा कि यह बिल जरूरी है. विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एकसाथ होने चाहिए, पंचायत के चुनाव अलग से होने चाहिए. उन्होंने आगे कहा कि इस देश में जब चुनाव की शुरुआत हुई थी, तब एक साथ ही चुनाव होते थे. यह कोई नई बात नहीं है. अलग-अलग चुनाव 1967 में शुरू हुए, जब कांग्रेस ने कई राज्यों में राष्ट्रपति शासन थोप दिया. अलग-अलग चुनाव होने से बड़े पैमाने पर खर्च होता है.
इस बिल को लेकर कांग्रेस ने कहा कि यह संघीय ढांचे के खिलाफ है और संविधान की आत्मा पर चोट है. बिल के कारण कई सरकारों को हटाना पड़ेगा और विधानसभाएं भंग होंगी.
सदन में अपना दल, अकाली दल, जदयू समेत कई दलों के नेता ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया है. बिल पेश करते हुए केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय ने कहा कि आजादी के बाद से चुनाव आयोग लोकसभा विधानसभा के 400 से ज्यादा चुनाव करा चुका है. अब हम एक देश एक चुनाव का कॉन्सेप्ट चलाने जा रहे हैं. इसका रोड मैप एक हाई लेवल कमेटी बना चुकी है. इस बिल के आने से प्रशासनिक क्षमता बढ़ेगी, चुनाव संबंधी खर्चों में कमी आएगी और नीतिगत निरंतरता को बढ़ावा मिलेगा.
बता दें कि एक देश एक चुनाव पर विचार करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमेटी का गठन हुआ था. कमेटी ने 191 दिनों में स्टेकहोल्डर और एक्सपर्ट से चर्चा के बाद 14 मार्च 2024 को रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी.