क्या शादी का फ़ैसला पुरुषों के वोट से लिया जाना चाहिए?

एक बॉलीवुड अभिनेत्री ने अपने पसंद के लड़के से शादी की है, उससे प्रधान पुरुषों को कितना रोष है. बिहार की बेटी के अपनी पसंद से मुस्लिम समाज में शादी करने पर कई तरह के हेट कमेंट्स मिल रहे है.

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बिहार में जबरन शादी

शादी का फ़ैसला पुरुष प्रधान के बिना नहीं

मैं महीने के 40 हजार अपनी जॉब से कमाती हूं, जिसमें से कुछ पैसे घर खर्च के लिए देती हूं, तो कुछ को सेविंग में डालती हूं. कुछ पैसे बचते हैं उसे कपड़े, खाने-पीने और साज-सजावट की चीजों को खरीदने में लगाती हूं. हालांकि मेरी मां इस पर बहुत गुस्सा करती है. वह कहती हैं कि यह फालतू खर्च है, इन पैसों को बचाओ आगे काम आएंगे. मां की बात सुनकर मैं भी ऐसा सोचती हूं, लेकिन आखिर में खरीदी लेती हूं. हालांकि मेरे पैसों पर घर वाले अपना अधिकार नहीं जमाते, वह बस आगे की जिंदगी के लिए पैसे बचाना सीखना चाहते हैं.

मैं जिस राज्य से हूं वहां आज भी लड़कियों और महिलाओं को इतनी फाइनेंशियल इंडिपेंडेंस नहीं दी जाती है. शादी के बाद भी महिलाओं को अपने पति के पैसे पर ही पूरी जिंदगी गुजारने को कहा जाता है. शादी के बाद विदाई के समय मां हाथ में कुछ पैसे तो जरूर देती है,‌लेकिन धीरे-धीरे वह रेत की तरह हाथों से फिसल जाते हैं. पैसे खत्म होने के बाद पति की तरफ हाथ फैलाना पड़ता है. हालांकि इस हाथ फैलाने को हमारे समाज में हक के पैसे भी कहते हैं. पैसों के अलावा हमारे राज्य में हर छोटी चीज के लिए लड़कियों और महिलाओं को एक आज्ञा की जरूरत पड़ती है. अमूमन यह देखा जाता है कि जिन परिवार में पिता का साया नहीं रहता है, वहां लड़की की मां ससुर, भसूर, जमाई, बेटा या मायके के आदमी पर बड़े फैसलों के लिए निर्भर रहती है. जिन परिवारों में पिता मौजूद होते हैं, वहां भी मां कहती है कि पिता जी से बिना पूछे मैं कुछ नहीं कह सकती. मानो बोलने की चाभी हर जगह मर्दों के हाथ में थमाई गई हो.

देश में अभी भी पुरुषों का वर्चस्व

फैसला लेने की चाभी जब-तक प्रधान पुरुष के पास हो, तब एक महिला के किसी भी फैसले पर सवाल उठाया जाता है. यह सवाल उसके पढ़ाई के फैसले से ताल्लुक रख सकता है, खाने पीने के पसंद पर निर्भर कर सकता है, कपड़े पहनने, बाहर जाने, दोस्त बनाने, गाने सुनने और किस समय क्या करने पर भी उठने लगता है. और अगर इसी में महिला अपनी पसंद से शादी कर ले तब तो मानो प्रधान पुरुष का रोम-रोम जल जाता है.

बीते दिन ही पुरुष प्रधान इस देश में बॉलीवुड की एक बड़ी अभिनेत्री ने अपने मन से शादी कर ली. इस बॉलीवुड अभिनेत्री का बिहार से भी ताल्लुक है. बिहार की बेटी के अपनी पसंद से मुस्लिम समाज में शादी करना प्रधान पुरुष को नहीं पच रहा है. प्रधान पुरुष का मानना है कि बिहार की बेटी ने इस शादी से राज्य का नाम खराब किया है.

सोशल मीडिया पर इस बड़ी अभिनेत्री को बिहार में आने से रोकने के लिए मानो एक अभियान चलाया जा रहा है. तरह-तरह के पोस्टर, बैनर, ट्वीट्स और हेट कमेंट अभिनेत्री के खिलाफ ऐसी सजाए जा रहे हैं, मानो तोहफा हो. शादीकी फोटो के कमेंट में सौभाग्यवती भव, सदा खुश रहो, दोनों की जोड़ी बरकरार रहे जैसे कमेंट चुनिंदा लोगों के ही मिलेंगे. इनकी जगह आपको लव जिहाद, बिहार आने पर बैन लगा देना चाहिए, शॉट गन अब खामोश क्यों, देश में मोहब्बत के नाम पर मजहबी साजिश, हिंदू धर्म को कमजोर करने की एक और कोशिश,घर का नाम रामायण से बदलकर कुरान कर ले, जैसे कमेंट्स की भरमार देखने मिलेगी. इन कमेंट्स को देखकर ही आप अंदाजा लगा लेंगे कि दूसरों की जिंदगी से हमारे पुरुष प्रधान समाज को कितना लगाव है.

शादी करवाने के लिए वोटिंग

एक अभिनेत्री जिसने मेहनत कर बिहार का नाम इंडस्ट्री में रोशन किया है. एक अभिनेत्री जो संभवत अपने पति से ज्यादा कामाती है, उससे लोगों को कितनी चिढ़ है. अभिनेत्री जिसके पिता ने उसे अपने फैसले लेने से नहीं रोका और हमेशा उसके साथ खड़े रहे इससे लोगों में गुस्सा है. एक अभिनेत्री जिसने अपने पसंद के लड़के से शादी की है, उससे प्रधान पुरुषों को कितना रोष है.

मुझे लगता है कि अभिनेत्री को अपने शादी के लिए लड़के का नाम और फोटो डालकर सोशल मीडिया पर वोट कराना चाहिए था. इस पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों के वोट के आधार पर महिलाओं को शादी करनी चाहिए, पुरुषों के वोट के आधार पर महिलाओं को कपड़े पहनने चाहिए, पुरुषों के वोट के आधार पर महिलाओं को खाना खाना चाहिए, इनके वोट के आधार पर ही पढ़ाई करनी चाहिए, इनके वोट के आधार पर ही खिलखिला कर हंसने की आजादी होनी चाहिए, यह कहे तो एक लड़की का जन्म होना चाहिए और कई बार तो यह कहे तभी उसकी सांसे थम जानी चाहिए.

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