जमुई में पहले चरण में चुनाव होने वाले हैं. 19 अप्रैल को जमुई में वोटिंग होनी है. बिहार का जमुई लोकसभा सीट एक आरक्षित सीट है, यहा खासकर यादव, पासवान और राजपूतों का गढ़ रहा है. जमुई से चिराग कुमार पासवान लोक जनशक्ति पार्टी से 2019 में भारी मतों से जीते थे.
2019 के लोकसभा चुनाव में जमुई सीट के लिए 11 प्रत्याशीचुनावी मैदान में उतरे थे. 5,28,771 यानी करीब 55.76% वोट लोजपा के चिराग पासवान को मिले थे. राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से भूदेव चौधरी को 2,87,716 वोट पड़े थे यानी करीब 30.3 4%. वही नोटा पर 39,450 वोट पड़े थे, बहुजन समाज पार्टी के उपेंद्र रविदास को 31,598 वोट पड़े थे और निर्दलीय उम्मीदवार सुभाष पासवान को 16,701 वोट मिले थे.
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा की ओर से जमुई सांसद चिराग पासवान को हाजीपुर संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ने को हरी झंडी मिली है. लेकिन चिराग पासवान का एक हिस्सा अब भी जमुई सीट पर अटका हुआ है. पिछले दो चुनाव के नतीजे को देखिए तो लोजपा का इस सीट पर खासा दबदबा रहा है. इस बार के चुनाव में यह हॉट सीट के रूप में बनती हुई नजर आ रही है. दरअसल चिराग पासवान और उनके चाचा पशुपति पारस के बीच जमुई और हाजीपुर सीट को लेकर तनातनी देखने को मिल रही है.
खुद को पीएम मोदी का हनुमान बताने वाले चिराग पासवान ने इस बार जमुई को दो-दो सांसदों के मिलने की बात कही है. इसके पहले रामविलास पासवान ने भी इसी तरह की बात कही थी. रामविलास पासवान ने कहा था कि जमुई की जनता मेरे बेटे को चुनकर लोकसभा भेजें. जीत के बाद मैं और मेरे बेटे के रूप में जमुई को दो-दो सांसद मिल जाएगा.
चिराग पासवान के इस बयान के बाद से यह साफ होता हुआ नजर आ रहा है कि चिराग पासवान का कोई करीबी जमुई लोकसभा सीट से चुनाव लड़ सकता है. हालांकि अभी तक इसके लिए किसी भी नाम पर चर्चा नहीं हो रही है.
ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 19 अप्रैल को जहां जमुई में लोकसभा चुनाव हैं, तो वही एक महीने के बाद हाजीपुर में 20 मई को पांचवें चरण में लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग होगी. इस 1 महीने के फासले में चिराग पासवान दोनों जगहो पर आराम से अपने पार्टी के लिए कैंपेनिंग कर सकते हैं.
21 फरवरी 1991 को जमुई बिहार का एक नया जिला बनकर उभरा था. झारखंड से सटे इस जिले की आबादी 17,60,405 है, जिसमें पुरुषों की संख्या 9,16,064 है और महिलाओं की संख्या 8,44,341 है. वहीं जिले में दलित समुदाय के वोटर सबसे अधिक है. ओबीसी और सामान्य जाति के मतदाता भी चुनाव के नतीजों की भूमिका तय करने में अहम योगदान देते हैं. मुस्लिम मतदाताओं की भी संख्या जिले में अधिक है.