ड्रग्स के मामले: बंटी (बदला हुआ नाम), जिसकी उम्र महज़ 17 साल की होगी, सालों से इनहेलेंट का नशा कर रहा है. हाथ में बड़ा सा झोला, शरीर पर फटी सी शर्ट और दूसरे हाथ में रूमाल. उसी रुमाल में मौजूद है इनहेलेंट नशा. बंटी से जब हमने बात की तो उसने कहा
मैं यहीं मंदिर के पास रहता हूं, मेरे माता पिता नहीं हैं और मैं कूड़ा चुनता हूं और भीख भी मांगता हूं.
बंटी आगे बताता है कि
मैं कूड़ा बेच कर और भीख मांग कर दिन का 200 रूपया कमा लेता हूं और डॉयल्यूटर (इनहेलेंट) पर 100 रूपया खर्च हो जाता है. हमें आदत हो गई है अब नशे करने की. हम नशा नहीं करते हैं तो तबियत ख़राब हो जाती है और करें भी तो क्या हम पर कोई ध्यान भी तो नहीं देता. बस ये भगवान के सहारे हैं भगवान के घर से खाना आ जाता है.
आंकड़ों के अनुसार बिहार में 16,933 लोग हैं तो ड्रग्स को अपने शरीर के अंदर इंजेक्ट करते हैं. पटना जंक्शन के महावीर मंदिर के पास लोगों को भीड़ रहती है जो इनहेलेंट का इस्तेमाल करते हैं.
शराबबंदी के बाद बढ़े ड्रग्स के मामले
01 अप्रैल 2016 को नीतीश कुमार ने बिहार में शराबबंदी की घोषणा की. शराबबंदी को 7 साल बीत चुके हैं. लेकिन बिहार में आज भी शराब आपको आसानी से मिल जाएगा. 7 साल से बिहार सरकार पूरी तरह से शराब बंद करने में नाकाम रही है. हालांकि अब सूखा नशा काफ़ी तेज़ी से बढ़ता जा रहा है. इसका सबूत कई बार पकड़े गए गांजा और ड्रग्स की बड़ी खेप के ज़रिए मिल चुकी है.
लगातार पटना में ब्राउन शुगर, स्मैक, गांजा, हेरोइन और कोडीन युक्त कफ सिरप पुलिस के हाथ लग रहे हैं. प्रतिबंधित पदार्थों की बिक्री पर लगाम लगाने के लिए पुलिस, उत्पाद विभाग, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो और आर्थिक अपराध विभाग इकाई तो करती है लेकिन अंकुश लगाने में कामयाब नहीं हो पा रही है.
अज़हर खान (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि
मैं 12वीं क्लास में फ़ेल हो गया था और मेरे पिता ने मुझे काम पर लगा दिया. मैं थोड़ा तनाव में रहने लगा. तभी मैंने नशा शुरू किया. पहले दोस्तों के साथ सिगरेट पीना, धीरे-धीरे मैंने गांजा का सेवन शुरू किया. कुछ समय तो ऐसा ही चला फिर एक दोस्त ने मुझे ब्राउन शुगर लाकर दिया मैंने उसे ट्राई किया तो मुझे अजीब सा लगा फिर मुझे ब्राउन शुगर का लत लग गयी.
अज़हर खान आगे बताते हैं कि
मुझे पता है कि ये मेरे सेहत के लिए कितना हानिकारक है. लेकिन मुझे इसके बिना अब ज़िंदगी जीने का मन नहीं करता. पैसे नहीं होते हैं तो घर में छोटी मोटी चोरी कर लेता हूं. मात्र 150 - 200 रुपए में एक ग्राम ब्राउन शुगर मिल जाता है.
युवा वर्ग में नशे के अधिक मामले
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के रिपोर्ट के अनुसार 10-75 वर्ष के आयु समूह के लोग 14.6% अल्कोहल, 2.83% कैनबिस और 2.1% ओपिओइड्स का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि 2004 के रिपोर्ट के अनुसार ओपिओइड्स का सेवन करने वालों की संख्या तब मात्र 0.7% थी.
अगर बात करें कैनबिस का सेवन करने वालों की तो 10-17 वर्ष के आयु समूह की अनुमानित संख्या 20 लाख है. वहीं वर्ष 18-75 के आयु समूह की अनुमानित संख्या 2 करोड़ 90 लाख से अधिक है.
वहीं अगर बात नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों की तो 10-17 वर्ष के आयु समूह की अनुमानित संख्या 40 लाख है. वर्ष 18-75 के आयु समूह की अनुमानित संख्या 1 करोड़ 80 लाख से अधिक है.
देश भर इनहेलेंट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या 0.7% है. जिसमें से पुरुषों की संख्या 1.34% है और पूरे संख्या में 10- 17 वर्ष के आयु समूह के 1.17% लोग इनहेलेंट का इस्तेमाल करते हैं. वहीं बिहार में 0.8% लोग इनहेलेंट का इस्तेमाल करते हैं. आंकड़ों के अनुसार बिहार में 16,933 लोग हैं तो ड्रग्स को अपने शरीर के अंदर इंजेक्ट करते हैं.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के नेशनल सर्वे ऑन एक्सटेंट एंड पैटर्न ऑफ़ सब्सटेंस यूज़ इन इंडिया के रिपोर्ट ने अनुसार चरस/गांजा के वर्तमान उपयोग की व्यापकता (10-75 वर्ष) बिहार में 1.1 % है देश का 1.2% है.
“हमें युवाओं को नशे की लत से बाहर निकालना होगा”: स्वपन मजूमदार
बिहार वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन, राज्य में नशे के ख़िलाफ़ लगातार अभियान चलाता है. बिहार वॉलंटरी हेल्थ एसोसिएशन के निदेशक स्वप्न मजूमदार से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया
बिहार में युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है और एक ऐसे तबके के युवा हैं जिनका आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है ऐसे में वो घर को छोड़ कर काम पर लग जाते हैं और कुछ बाल मज़दूरी भी करते हैं ऐसे में उनका सर्कल वैसा हो जाता है.
मजूमदार आगे बताते हैं कि
सरकार को चाहिए कि वो ख़ास कार्यक्रम शुरू करे और कोशिश करे की युवाओं को इसके चंगुल से बाहर निकाले. क्योंकि युवाओं से ही देश या राज्य चलता है. अगर युवा गलत राह पर रहेंगे तो देश और राज्य का विकास नहीं हो सकता है. वहीं सरकार वार्ड पार्षदों को अपने वार्ड में इस चीज़ को लेकर काम करवा सकती है.
ड्रग्स को रोकने के लिए क्या सरकारी कदम उठाये गए हैं
भारत के युवाओं में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की समस्या का समाधान करने के लिए, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने अगस्त 2020 से 272 जिलों में नशा मुक्त भारत अभियान (एनएमबीए) शुरू किया है.
अभियान के हिस्से के रूप में, महिलाओं, बच्चों, शैक्षणिक संस्थानों, नागरिक समाज संगठनों आदि जैसे हितधारकों की भागीदारी पर विशेष जोर दिया गया है जो पदार्थ के उपयोग से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो सकते हैं.
अब तक ज़मीनी स्तर पर की गई विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से 11.99 करोड़ से अधिक लोग पहुंच चुके हैं. लगभग 4,000 से अधिक युवा मंडल, एनवाईकेएस और एनएसएस स्वयंसेवक, युवा क्लब भी इस अभियान से जुड़े हुए हैं.
आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं, एएनएम, महिला मंडलों और महिला एसएचजी के माध्यम से एक बड़े समुदाय तक पहुंचने में 2.05+ करोड़ महिलाओं का योगदान भी महत्वपूर्ण रहा है.
देश भर में अब तक 1.19 लाख से अधिक शैक्षणिक संस्थानों ने अभियान के तहत छात्रों और युवाओं को मादक द्रव्यों के उपयोग पर शिक्षित करने के लिए गतिविधियां आयोजित की हैं.
फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर हैंडल बनाकर और उन पर दैनिक अपडेट साझा करके अभियान के संदेश को ऑनलाइन फैलाने के लिए सोशल मीडिया का प्रभावी ढंग से उपयोग किया गया है.
जिलों और मास्टर स्वयंसेवकों द्वारा वास्तविक समय के आधार पर जमीन पर होने वाली गतिविधियों के डेटा को कैप्चर करने के लिए एक एंड्रॉइड आधारित मोबाइल एप्लिकेशन विकसित किया गया है. इस ऐप को Google Play Store पर रखा गया है.
बिहार सरकार द्वारा कई सारे कार्यक्रम चलाए जा रहें हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर कोई काम होता नहीं दिख रहा है. पटना से तक़रीबन सारे बस्तियों में नशीले पदार्थों का इस्तेमाल युवा कर रहें हैं. लेकिन उन पर सरकार का कोई ध्यान नहीं है.