“पुलिस बिना किसी जांच के ही ताड़ी में शराब मिलाकर बेचने का केस लगाकर जेल भेज देती है. इस चक्कर में हमारे जैसे लोग जो इसका व्यवसाय करते हैं, उनका जीना मुश्किल हो गया है. हम सभी लोग काफी परेशानी में हैं. इसी झूठे केस के भय से मुजफ्फरपुर में हमने अपने एक साथी को भी खोया है.”

छठ्ठू पासवान उस घटना का जिक्र करते हुए भावुक हो जाते हैं और कहते हैं
“वह खजूर के पेड़ पर चढ़ा हुआ था जिसके विषय में पुलिस को संदेह हुआ. इसके बाद एक्साइज टीम के एक पुलिस अधिकारी ने उसे पेड़ से उतरने को कहा. लेकिन जब वह पेड़ से नहीं उतरा तो पुलिस ने उसके ऊपर पत्थर फेंका. जब पुलिस ने उसके ऊपर पत्थर फेंका तो वह घबराकर गिर गया और फिर पुलिस ने उसके ऊपर लाठी बरसाई जिसके कारण उसकी मौत हो गयी.”
क्या है पूरा मामला?
दरअसल पांच अप्रैल, 2016 को सरकार की ओर से जारी आदेश में पूरे बिहार में पूर्ण रूप से शराबबंदी लागू कर दिया गया. लेकिन साथ में यह भी कहा गया कि ताड़ी के व्यवसाय को लेकर कोई पाबंदी नहीं है. लेकिन बाजार, घनी आबादी, स्कूल, रेलवे स्टेशन, अस्पताल, बस पड़ाव, श्रमिक बस्ती, पेट्रोल पंप जैसे सार्वजनिक स्थानों के 100 मीटर के दायरे में ताड़ी बेचने पर वर्ष 1991 से लगी पाबंदी जारी रहेगी. एससी/एसटी तथा झुग्गी बस्ती और सघन आबादी वाले इलाकों में ताड़ी बिक्री नहीं होगी.
बिहार में पासी समाज की बड़ी आबादी ताड़ी व्यवसाय पर निर्भर है. अखिल भारतीय पासी समाज के 2016 के आंकड़ो के मुताबिक बिहार में इस समाज की आबादी 20 लाख से ज्यादा है. वहीं ताड़ी बेचने के व्यवसाय से 3-4 लाख लोग जुड़े हुए हैं.
ताड़ी बेचने पर लगे इसी रोक के कारण इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को आए दिन आर्थिक परेशानियों का सामना करना पर रहा है. पासी समाज के लोगों का आरोप है कि सरकार ने बिक्री पर रोक तो लगा दिया है लेकिन किसी वैकल्पिक व्यवसाय का साधन नहीं दिया है.
प्रशासन ने रोकने की कोशिश भी की
अपनी इन्ही मांगो को लेकर मंगलवार को पटना के गांधी मैदान में ताड़ी व्यवसाय से जुड़े लोग जुटे. न्यू अखिल भारतीय पासी समाज एवं ताड़ी व्यवसाय से जुड़े के एक हजार से अधिक लोगों ने राजधानी में विधानसभा घेराव के लिए मार्च किया. गांधी मैदान से निकले लोगों को जेपी गोलंबर के पास पुलिस-प्रशासन ने रोकने का प्रयास भी किया.
इसी बीच प्रदर्शन में मौजूद लोगों ने पुलिस पर पथराव कर दिया. इस पथराव में जिला नियंत्रण कक्ष के मजिस्ट्रेट शफीउल्लाह खान समेत करीब एक दर्जन सिपाही घायल व चोटिल हो गए. आक्रामक होती भीड़ को देखते हुए पुलिस प्रशासन पीछे हट गयी.
प्रदर्शनकारी गांधी मैदान से होते हुए डाकबंगला चौराहा पहुंच गए और हंगामा करने लगे. दिन के 12 बजे से शाम 4 बजे तक गांधी मैदान, फेजर रोड से लेकर डाक बंगला चौराहा इन लोगों के कब्जे में रहा.
आंदोलन के नेतृत्वकर्ता न्यू अखिल भारतीय पासी समाज और ताड़ी व्यसाय के बिहार प्रदेश अध्यक्ष नथुनी चौधरी मूर्तिकार ने प्रदर्शनकारियों को शांत कराया इसके बाद इनके पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल को सचिवालय ले जाया गया. जहां उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग में अपनी मांगों से संबंधित पत्र को सौंपा.
आंदोलन में भाग लेने वाले धर्मेन्द्र चौधरी सिमराव गांव के छापा पंचायत से हैं. इनका नाम है धर्मेंद्र चौधरी. उन्होंने बताया कि
“ताड़ी व्यसाय के बिहार प्रदेश अध्यक्ष नथुनी चौधरी के नेतृत्व में 5 सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल सचिवालय में अपनी मांग को लेकर गया है. सचिवालय के तरफ से यह आश्वासन मिला कि यह बात मुख्यमंत्री तक पहुंचाई जाएगी.”
वहीं आंदोलन में शामिल भोला चौधरी का कहना है कि
“सरकार ताड़ी पर लगाए गए रोक को जल्द से जल्द हटाए. अन्यथा यह आंदोलन एक उग्र रूप ले सकता है और इसकी जिम्मेदारी भी सरकार की होगी. हम लोगों को जितना सहना था हमने सह लिया लेकिन अब पानी सर के ऊपर जा चुका है.”

क्या है पासी समाज के लोगों की मांग
आंदोलन कर रहे लोगों की मांग है कि
- सरकार सबसे पहले पूरे राज्य में नीरा खरीदने का प्रबंध करें. साथ ही ताड़ी बेचने पर लगी रोक को हटाए.
- पुलिस प्रशासन और मद्य निषेध पासी समाज के लोगों को प्रताड़ित करना बंद करे. अकसर पुलिस ताड़ी में मिलावट कि बात कहकर जेल भेजते हैं, इसपर रोक लगे.
- ताड़ी मिलावट केस में जिन्हें पकड़ा गया, उन्हें जल्द से जल्द छोड़ा जाए.
- ताड़ के पेड़ से गिरकर जिनकी मौत हुई है, उन्हें मुआवजा दिया जाए.
- 2016 से अब तक जितने लोगों को नीरा टैंपर में जेल भेजा गया, उन्हें छोड़ा जाए. साथ ही मिलावटी ताड़ी बनाने मे जिन्हें गिरफ्तार किया गया है उसकी दोबारा जांच की जाए.
- ताड़, खजूर कारोबार को कृषि का दर्जा दिया जाए. ताड़ी का व्यवसाय करने वाले को मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत 1 लाख रूपया दिया जाए.
पुलिस के भय के कारण एक ताड़ी उतारने वाले व्यक्ति की मौत का मामला इस वर्ष सामने आया था जिसके बाद लोगों ने काफी हंगामा भी किया था. सड़क को भी जाम कर दिया गया था. जिसके बाद प्रशासन को काफी मशक्कत के बाद आश्वासन देकर जाम से छुटकारा मिल पाया था.
दरअसल मुजफ्फरपुर में एक व्यक्ति जो खजूर के पेड़ पर चढ़ा हुआ था उसके विषय में पुलिस को संदेह हुआ. इसके बाद एक्साइज टीम के एक पुलिस अधिकारी ने उसे पेड़ से उतरने को कहा. लेकिन जब वह व्यक्ति पेड़ से नहीं उतरा तो पुलिस ने उस पर पत्थर फेंके.
हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि वह व्यक्ति पुलिस को देखने के बाद बहुत सहम गया था और डर के कारण काफी घबरा रहा था. जब पुलिस ने उसके ऊपर पत्थर फेंके तो वह घबराकर गिर गया और फिर पुलिस ने उसके ऊपर लाठी बरसाई. हालांकि वहीं कुछ अन्य लोगों का यह भी कहना है कि पुलिस के द्वारा उस व्यक्ति पर किसी भी तरह का पत्थर नहीं फेंका गया था.
वह व्यक्ति डर कर नीचे गिर गया और उसकी मौत हो गई. जिसके बाद पुलिस प्रशासन और सरकार की तरफ से उसे आकस्मिक निधन के तहत 4 लाख रुपए देने की बात कही गयी थी.
वहीं मालाबार से प्रदर्शन में हिस्सा लेने आए प्रहलाद चौधरी का कहना है कि
“हम इस मांग के साथ आज यहां से वापस लौटेंगे कि पुलिस प्रशासन द्वारा हमारे पासी समुदाय के जितने भी लोगों को जेल में बंद किया गया है, उन्हें जल्द-से-जल्द छोड़ा जाए और उन्हें बिना किसी अपराध के पकड़े जाने के एवज़ में सरकार उनके परिवार को मुआवजा भी दे. तभी जाकर उनके साथ न्याय हो पाएगा.”
जोखिम और मेहनत वाला काम है ताड़ी उतारना
ताड़ी उतारने का काम बहुत जोखिम भरा होता है. ये लोग 50 फीट ऊंचे ताड़ के पेड़ पर सुबह-शाम चढ़ते उतरते हैं और ताड़ी जमा करके अलग-अलग दाम पर बेचते हैं.
ताड़ी व्यवसाय से जुड़े वीरेंद्र चौधरी बताते हैं
“हमलोग 200 रुपए की दर से ताड़ के पेड़ को सालाना किराए पर लेते हैं. जिसमे से केवल चार महीने ही रस निकलता है. इन चार महीनों में पहले 70-80 हजार कमा लेते थे. जो हमारे बाल बच्चों की पढाई लिखाई से लेकर शादी वगैरह या किसी दूसरे काम में लगता था. लेकिन जब से सरकार ने इसकी बिक्री पर रोक लगाया है तबसे किराए पर लिए गए पेड़ का किराया भी नहीं निकलना मुश्किल हो गया है.”
ताड़ी की बिक्री पर रोक लगाए जाने के बाद से सरकार ने नीरा की बिक्री को प्रोत्साहित करने का निर्णय लिया था. नीरा ताड़ के पेड़ से उतारे गए उस रस को कहते हैं जो सूर्योदय से पहले इकट्ठा किया जाता है. इसमें शराब (alcohol) की मात्रा बहुत कम होती है. सरकार ने इसे बिहार खादी ग्रामउद्योग के जरिए बेचने का फैसला था.
लेकिन पासी समाज के लोगों का कहना है नीरा की खरीदारी केवल कागज पर ही हो रहा है. इस कार्य से जुड़े लोगों को काफ़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
भोला चौधरी का कहना है
“सरकार के पास नीरा के खरीद के लिए कोई ठोस नियम नही है. पासी समाज का नीतीश कुमार पर भरोसा रहा है. लेकिन उनकी सरकार में हमारे समाज के लोगों को झूठे केस में जेल भेजा जा रहा है.”

साल 2017 में सरकार ने लाया बिहार नीरा बिक्री अधिनियम
18 मार्च, 2017 को बिहार सरकार ने नीरा (ताड़ का खमीर मुक्त रस) को बेचने संबंधी नियम बनाये थे. इस नियम के तहत नारियल, खजूर या ताड़ के अन्य किस्म के पेड़ों से उतारे गए रस को बेचने संबंधी नियम बनाये गए हैं.
जिसके तहत ताड़ के पेड़ों से उतारे गए रस को उतारने वाला व्यक्ति इसका उपयोग मादक द्रव्य या शराब बनाने में नही करेंगे. बल्कि इन रसों को सरकार द्वारा अधिकृत संस्था या व्यक्ति को बेचेंगे.
इस कानून के आने के बाद इस व्यवसाय से जुड़ा कोई भी व्यक्ति जो नीरा बेचने को इच्छुक हैं, को पहले अपने जिले या कस्बे के उत्पाद एवं मद्य निषेध अधिकारी से अनुमति लेना आवश्यक होगा. अनुमति लेने के लिए व्यक्ति को पेड़ के स्वामित्व और उसकी जुड़ी जानकारी देनी होगी.
साथ ही यह अनुबंध भी जमा करना होगा कि पेड़ से प्राप्त रस का उपयोग वे शराब बनाने में नही करेंगे. यह अनुबंध मौसमी, मासिक अथवा वार्षिक हो सकता है.
ताड़ी बनाने वाले लोगों का कहना है कि ताड़ी की तुलना शराब से करके पुलिस जबरन उनके साथ दुर्व्यवहार करती है. ताड़ी का व्यवसाय करने वालों का कहना है की ताड़ी बेचना की परंपरा से बिहार में वर्षों से रही है.
लेकिन जबसे सरकार ने इसकी बिक्री पर रोक लगाया है उनके परंपरागत व्यसाय पर चोट पहुंचा है. विकल्प के तौर पर नीरा खरीद का नियम बनाया है लेकिन सरकार को एक बार नीरा योजना को लेकर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और इसे सामान्य कृषि कार्य के तरह शामिल करना की ओर प्रयास करना चाहिए.
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