वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 1 फरवरी 2023 को केंद्रीय बजट 2023-24 की घोषणा की गई. केंद्रीय बजट 2023-24 में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 86,175 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो 2022-23 में आवंटित की गई 76,370 करोड़ रुपये की राशि की तुलना में लगभग 4% अधिक है.
बजट में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग को आवंटित 89,155 करोड़ रुपये में से 86,175 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जबकि 2,980 करोड़ रुपये स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को आवंटित किए हैं.
आयुष मंत्रालय के लिए बजट आवंटन 28% की वृद्धि के साथ 2,845.75 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 3,647.50 करोड़ रुपये कर दिया है.
चालू वित्त वर्ष में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग पर खर्च किया गया बजट 76,370 करोड़ रुपये है जबकि स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के लिए 2,775 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं.
किन योजनाओं को मिली है बढ़ोतरी?
केंद्र प्रायोजित योजनाओं में जिन दो योजनाओं को बजट में बढ़ोतरी मिली है, वो हैं प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन (PMABHIM) और राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन. इसके आलावा अधिकांश अन्य योजनाओं में कोई खास वृद्धि नहीं की गई है.
पीएमएबीएचआईएम (PMABHIM) ‘स्वास्थ्य’ योजना को आगामी वित्तीय वर्ष में 645.86 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. जबकि पिछले वर्ष इस योजना के लिए संशोधित बजट 281.68 करोड़ रुपये आवंटित था.
प्रधानमंत्री आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना ‘मिशन’ के लिए 4200 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं जबकि पिछले वर्ष इसके लिए 1885.45 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत 2023 के केंद्रीय बजट में राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन के लिए 341 करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया गया है, जो वित्त वर्ष 2022 में खर्च किए 140 करोड़ रुपये के दोगुने से अधिक है.
हालांकि सरकार ने कोविड-19 टीकाकरण के लिए इस वर्ष कोई धनराशि आवंटित नहीं किया है. इसके अतिरिक्त, केंद्र की प्रमुख स्वास्थ्य बीमा योजना, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, जिसके तहत लगभग 50 करोड़ भारतीयों को 5 लाख रुपये तक का कैशलेस इलाज अस्पताल में भर्ती होने पर मिलता है, को वित्त वर्ष 2023-24 में 7,200 करोड़ रुपये आवंटित किए जाएंगे, जो कि पिछले वर्ष के 6,412 करोड़ रुपये के मौजूदा खर्च से मामूली अधिक है.
फार्मा उद्योग के लिए कितनी मदद?
वित्तमंत्री सीतारमण ने फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री को लेकर एक और अहम ऐलान किया. सीतारामण ने बजट के दौरान कहा
उत्कृष्टता केंद्रों के माध्यम से फार्मास्यूटिकल्स में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए एक नया कार्यक्रम शुरू किया जाएगा. हम विशिष्ट प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में अनुसंधान और विकास में निवेश करने के लिए उद्योग को भी प्रोत्साहित करेंगे.
सीतारमण ने आगे कहा कि
देश में 157 नए नर्सिंग कॉलेज स्थापित किए जाएंगे. साथ ही कुछ भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) की प्रयोगशालाएं निजी शोधकर्ताओं के लिए खोली जाएंगी.
फार्मास्यूटिकल विभाग के लिए राशि आवंटन में बड़ी बढ़ोतरी इस वर्ष की गई है. सरकार का कहना है कि फार्मास्यूटिकल उद्योग के विकास के लिए इसमें वृद्धि की गई है. इस मद में पिछले वर्ष के 100 करोड़ रुपये के सापेक्ष इस वर्ष 1,250 करोड़ रुपये का आवंटन प्रस्तावित है. इस मद के तहत, सबसे बड़ी राशि ‘बल्क ड्रग पार्कों का प्रचार’ (900 करोड़ रुपये) और मेडिकल डिवाइस पार्कों का प्रचार (200 करोड़ रुपये) में गई है.
दवाओं या चिकित्सा उपकरणों का निर्माण लागत मुख्य रूप से कच्चा माल पर निर्भर करता है. इनके कारण ही उत्पादन लागत बढता या घटता है. इसी उत्पादन लागत को कम करने के लिए इस मद में आवंटन बढ़ाया गया है.
इन दोनों योजनाओं को 2020 में लॉन्च किया गया था. इस बढ़ोतरी का दवा उद्योग ने स्वागत किया है.
सिकल सेल एनीमिया कम करने के लिए क्या कदम उठाये जायेंगे?
सीतारमण ने अपने बजट भाषण में 2047 तक ‘सिकल सेल’ एनीमिया को कम करने के लिए एक विशेष मिशन शुरू करने की घोषणा की है. जनजातीय क्षेत्रों, केंद्रीय मंत्रालयों और राज्य सरकारों के सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से इसे दूर करने का लक्ष्य रखा गया है. जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, यह अनुवांशिक बीमारी जनजाति समुदाय के सदस्यों के बीच व्यापक है. आंकड़ों के अनुसार अनुसूचित जनजातियों में जन्म लेने वाले 86 बच्चों में एक बच्चा इससे पीड़ित है.
इस मिशन द्वारा जागरूकता अभियान, प्रभावित जनजातीय क्षेत्रों के 0-40 वर्ष आयु वर्ग के 7 करोड़ लोगों की सार्वभौमिक जांच की जाएगी.
सिकल सेल एनीमिया से निपटने के लिए इस वर्ष कितना खर्च किया जाएगा, यह बताने के लिए बजट दस्तावेजों में कोई विशिष्ट मद नहीं है. हालांकि, स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का एक हिस्सा होगा.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन विभिन्न कार्यक्रमों के प्रबंधन की एक सामूहिक योजना जिसमें केंद्र 60% योगदान देता है और शेष राज्य सरकारों द्वारा वहन किया जाता है. इस मिशन के बारे में अधिक जानकारी अभी उपलब्ध नहीं है.
क्या पहले के वादे पूरे हो पाए हैं?
यहां यह ध्यान देने वाली बात है की इससे पहले भी केंद्र सरकार ने कई अन्य बीमारियों को खत्म करने के लिए समय सीमा निर्धारित किये जिसे समय पर पूरा नहीं किया जा सका है. कालाजार (उन्मूलन समय सीमा 2020) और फाइलेरिया (2017) ऐसे ही दो उदाहरण हैं. अब, उनकी समय सीमा क्रमशः 2023 और 2030 के लिए संशोधित की गई है. भारत 2025 तक तपेदिक को खत्म करने की भी योजना बना रहा है.
केंद्र के तृतीयक देखभाल कार्यक्रम के तहत, सभी प्रमुख गैर-संचारी रोग, जो भारत में बढ़ रहे हैं, को सम्मिलित (cover) करने का लक्ष्य रखा गया है. केंद्र सरकार कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य देखभाल, राष्ट्रीय अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम, टेलीमेडिसिन, मानसिक स्वास्थ्य और तम्बाकू नियंत्रण के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए राज्यों को धन हस्तांतरित करती है. इसका बजट 500 करोड़ रुपये से घटाकर 289 करोड़ रुपये कर दिया गया.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए बजट जो राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM) का एक संयुक्त कार्यक्रम है जो स्वास्थ्य मंत्रालय की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है. केंद्र सरकार के ‘अम्ब्रेला स्कीम’ खासकर बच्चों और महिलाओं के लिए सुरक्षा और सशक्तिकरण के लिए बनाया गया है. इस योजना में पिछले साल के 37,159 करोड़ रुपये आवंटन से घटकर इस साल 36,785 करोड़ रुपये हो गया.