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पटना – बिहार की प्रतिष्ठित पटना यूनिवर्सिटी का केंद्रीय पुस्तकालय, जो हजारों छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए ज्ञान का प्रमुख स्रोत है, गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है। स्टाफ की आउटसोर्सिंग, संसाधनों का सही उपयोग न होना, बुनियादी ढांचे की कमी और सुरक्षा समस्याएं इस पुस्तकालय को कमजोर कर रही हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि मास कम्युनिकेशन विभाग से जुड़ी एक भी किताब पुस्तकालय में उपलब्ध नहीं है। सवाल उठता है कि अगर एक विभाग की किताबें नहीं हैं, तो और कितनी पुस्तकें गायब हैं? क्या अन्य विषयों के छात्रों को भी वही समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं?
पुस्तकालय में स्थायी भर्ती क्यों नहीं?
केंद्रीय पुस्तकालय के अधिकतर कर्मचारी आउटसोर्सिंग के तहत काम कर रहे हैं, जिनका वेतन मात्र ₹11,000 प्रति माह है।
स्थायी भर्ती की कमी के कारण:
यूनिवर्सिटी प्रशासन की लापरवाही – कई वर्षों से कोई स्थायी भर्ती नहीं हुई।
वेतन असमानता – आउटसोर्स कर्मचारी कम वेतन और बिना सुविधाओं के काम कर रहे हैं।
नौकरी की अस्थिरता – ठेके पर रखे गए कर्मचारी किसी भी समय हटाए जा सकते हैं।
प्रशासनिक सुस्ती – स्थायी भर्ती की दिशा में कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया।
एक कर्मचारी ने बताया, "हम दिनभर किताबें संभालते हैं, डिजिटल रिकॉर्ड मैनेज करते हैं और छात्रों की मदद करते हैं, लेकिन हमें भविष्य की कोई सुरक्षा नहीं है।"
NAAC और UGC की भूमिका पर सवाल
NAAC और UGC विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं। लेकिन क्या पटना यूनिवर्सिटी का पुस्तकालय इनके मानकों पर खरा उतरता है?
NAAC के दिशानिर्देशों के अनुसार, किसी भी विश्वविद्यालय में पर्याप्त संख्या में स्थायी स्टाफ होना चाहिए।
UGC के अनुसार, पुस्तकालयों में हर विषय की किताबें उपलब्ध होनी चाहिए, लेकिन मास कम्युनिकेशन विभाग से जुड़ी एक भी किताब यहां मौजूद नहीं है।
छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए डिजिटल संसाधन और शारीरिक किताबें दोनों का सही प्रबंधन आवश्यक है।
किताबों की भारी कमी: छात्रों के लिए एक बड़ी समस्या
मास कम्युनिकेशन विभाग की किताबें उपलब्ध नहीं
पत्रकारिता और जनसंचार (Mass Communication) विभाग के छात्रों के लिए यह पुस्तकालय पूरी तरह से अप्रासंगिक हो गया है, क्योंकि इस विषय की एक भी किताब उपलब्ध नहीं है।
“हमें पढ़ाई के लिए बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है। अगर यूनिवर्सिटी खुद हमारी जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती, तो यह उच्च शिक्षा संस्थान किसलिए है?” – एक छात्र की प्रतिक्रिया
अन्य विषयों की किताबों की उपलब्धता पर सवाल
अगर मास कम्युनिकेशन की किताबें नहीं हैं, तो और कितने विषयों की किताबें गायब हैं? क्या प्रशासन ने कभी इसकी जांच की है?
संसाधनों का सही उपयोग न होना
पटना यूनिवर्सिटी के पुस्तकालय में J-Gate, DELNET और अन्य डिजिटल संसाधन हैं, लेकिन इनका उपयोग कम हो रहा है।
इसके पीछे मुख्य कारण:
जानकारी की कमी – छात्रों को डिजिटल संसाधनों की जानकारी नहीं दी जाती।
तकनीकी समस्याएं – धीमी इंटरनेट स्पीड के कारण ऑनलाइन रिसर्च करना मुश्किल हो जाता है।
स्टाफ की कमी – उचित मार्गदर्शन देने के लिए प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं।
“हमें कई रिसर्च पेपर और डिजिटल जर्नल्स की जरूरत होती है, लेकिन हमें इनका उपयोग करने की प्रक्रिया नहीं बताई जाती,” – एक पीजी छात्र।
बुनियादी ढांचे की समस्याएं
बैठने की समुचित व्यवस्था नहीं – पुस्तकालय में सीमित सीटिंग एरिया होने के कारण छात्रों को जगह नहीं मिलती।
पुरानी और क्षतिग्रस्त किताबें – कई किताबें उपयोग लायक नहीं हैं, लेकिन उन्हें बदला नहीं गया है।
अपर्याप्त समय सीमा – पुस्तकालय जल्दी बंद हो जाता है, जिससे छात्रों को अध्ययन करने में दिक्कत होती है।
समाधान क्या है?
1. स्थायी भर्ती की जाए
यूनिवर्सिटी को जल्द से जल्द स्थायी कर्मचारियों की नियुक्ति करनी चाहिए।
2. NAAC और UGC को हस्तक्षेप करना चाहिए
इन संस्थानों को जांच करनी चाहिए कि पुस्तकालय में मानकों के अनुसार सुविधाएं दी जा रही हैं या नहीं।
3. विषयों के अनुसार किताबों की उपलब्धता सुनिश्चित हो
विशेष रूप से मास कम्युनिकेशन और अन्य विषयों की किताबों की कमी को तुरंत पूरा किया जाए।
4. डिजिटल संसाधनों की सही जानकारी दी जाए
छात्रों को डिजिटल रिसर्च टूल्स का सही उपयोग सिखाने के लिए सेमिनार और वर्कशॉप कराई जानी चाहिए।
5. बुनियादी ढांचे में सुधार हो
बैठने की उचित व्यवस्था की जाए
इंटरनेट स्पीड बढ़ाई जाए
पुस्तकालय के समय को बढ़ाया जाए
6. सुरक्षा सुनिश्चित की जाए
सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं
सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएं
बाहरी लोगों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जाए
क्या प्रशासन इस मुद्दे को गंभीरता से लेगा?
पटना यूनिवर्सिटी का केंद्रीय पुस्तकालय हजारों छात्रों के लिए ज्ञान का केंद्र है। लेकिन आउटसोर्सिंग, संसाधनों की अनदेखी, मास कम्युनिकेशन और अन्य विषयों की किताबों की भारी कमी, सुरक्षा समस्याएं और बुनियादी ढांचे की कमी इसे निष्प्रभावी बना रहे हैं।
क्या पटना यूनिवर्सिटी प्रशासन, NAAC और UGC इन समस्याओं का समाधान निकालेंगे, या फिर यह मुद्दा फाइलों में दबकर रह जाएगा?
छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों को अब जवाब चाहिए!