पानी में यूरेनियम: बिहार में बढ़ते कैंसर की एक प्रमुख वजह

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बिहार में गंगा के तटीय जिलों के भूगर्भ पानी में आर्सेनिक की अधिकता तो पहले से ही थी. अब रेडियोएक्टिव यूरेनियम भी यहां के पानी में घुलकर राज्य वासियों को बीमार बना रहा है. चिंता वाली बात यह है कि खतरनाक स्तर से भी अधिक मात्रा में पहुंच चुके यूरेनियम युक्त पानी पीने से लोग लगातार गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे हैं लेकिन सरकार सुस्त पड़ी हुई है.

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बिहार के सात जिलों नवादा, नालंदा, शेखपुरा, वैशाली, गोपालगंज, सिवान और सुपौल में भूगर्भ जल में यूरेनियम की मात्रा मानक से अधिक हो गयी है. यह जानकारी महावीर कैंसर संस्थान, पटना और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय, इंग्लैण्ड की टीम द्वारा किए गए हालिया शोध में सामने आयी है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइज़ेशन (WHO) ने भूगर्भ जल में यूरेनियम की मात्रा प्रति दस करोड़ भाग (प्रति दस बिलियन भाग) में 30 यूनिट निर्धारित किया है. जबकि इन जिलों के विभिन्न स्थानों के भूगर्भ जल की जांच में यह 30 यूनिट से अधिक पाई गयी है.

लखीसराय जिला, जो शेखपुरा के काफ़ी करीब है, के नोमा गांव की गुड़िया कुमारी बताती हैं

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शादी के बाद जब मैं इस गांव में आई तब पानी के बारे में पता चला. पानी बहुत ही ख़राब है. उस समय मेरी सास पीने के लिए पानी बाहर से लाती थीं. इधर कुछ साल से नल जल योजना के तहत सप्लाई का पानी आया है. अब हमलोग इसी पानी को पीने के लिए इस्तेमाल करते हैं.

गुड़िया कुमारी तीन बच्चों की मां हैं. पिछले तीन साल से गुड़िया हमेशा पेट संबंधी बीमारी के कारण अस्वस्थ रहती हैं.

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पानी में यूरेनियम और आर्सेनिक होने की आशंका का पता लगने पर गुड़िया कहती हैं

पता नहीं आगे बच्चों का क्या होगा? पिछले साल ही पेट का ऑपरेशन कराया था. लेकिन इस साल फिर से पेट मे दर्द रहने लगा है. डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने फिर से ऑपरेशन की बात कही है. क्या पता इस पानी के कारण ही यह सब हो रहा हो.

राज्य के सभी 38 जिलों के विभिन्न स्थानों के लिय भूगर्भ जल के 271 नमूनों में से 20 में निर्धारित मानक से अधिक यूरेनियम मिला है. भूगर्भ जल के नमूनों में यूरेनियम की अधिकतम मात्रा सुपौल के पास जारिया में 82 पीपीबी पायी गयी है. वहीं नालंदा के बिहारशरीफ के पास माघरा में, वैशाली के पास सेंदुआरी और महनार में मानक से अधिक यूरेनियम पाया गया है. सुपौल में निर्धारित मानक से ढाई गुना से अधिक, नालंदा और वैशाली में दो गुना से अधिक एवं गोपालगंज, सिवान, नवादा, और शेखपुरा में सवा गुना से अधिक पाई गयी है.


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यूरेनियम की मात्रा गोपालगंज और सिवान में प्रति दस करोड़ भाग में 38 यूनिट, नवादा में 42 यूनिट, शेखपुरा में 46 यूनिट, वैशाली में 66 यूनिट, नालंदा में 77 यूनिट पायी गयी है. सबसे अधिक यूरेनियम की मात्रा सुपौल में 82 यूनिट पायी गयी है.

लखीसराय जिले के नोमा गांव के ही पृथ्वीराज की उम्र 30 वर्ष है. पृथ्वी बताते हैं

हमारे गांव में सभी के घर में खारा पानी आता है. हमलोग इस पानी का पीने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. गांव में ही मंदिर के पास चापाकल है सब लोग वहीं से पानी लाकर पीते हैं.

लगभग तीन सौ घर वाले इस गांव के हर घर में पीने के लिए पानी नहीं है. केवल संपन्न परिवार ने ही ज्यादा गहराई पर बोरिंग कराया हैं. बाकी लोग कुछ साल पहले पहुंचे नल-जल योजना के नल पर निर्भर हैं. पृथ्वीराज बताते हैं

30 फ़ीट पर बोरिंग कराने पर पानी अच्छा नहीं आता है. 110 या 130 फ़ीट पर बोरिंग कराने पर ही पीने लायक पानी आता है.   

जिलों में बढ़े कैंसर के मरीज़

जिन जिलों में पानी में यूरेनियम की मात्रा बढ़ी है वहां कैंसर के मरीज़ों की संख्या भी बढ़ी है. मुज़फ्फ़रपुर, सारण, पटना, भोजपुर और वैशाली में कैंसर मरीजों की संख्या करीब 4 फ़ीसदी (2700 मरीज़) हैं. समस्तीपुर, बेगूसराय, नालंदा और गया में करीब 1200 कैंसर के मरीज़ हैं. पूर्वी चंपारण, सिवान, मधुबनी, दरभंगा और भागलपुर में करीब 900 मरीज़ (2 से 3 फ़ीसदी) मौजूद हैं. बक्सर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, नवादा लखीसराय, मुंगेर, जमुई, बांका, खगड़िया, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, अररिया, पूर्णिया, कटिहार, सीतामढ़ी, गोपालगंज और औरंगाबाद में करीब 600 मरीज़ पाए गए हैं. वहीं पश्चिमी चंपारण, किशनगंज, कैमूर, शेखपुरा और शिवहर में 1 फीसदी के करीब कैंसर के मरीज़ पाए गए हैं.    

लखीसराय से लगभग 18 किलोमीटर दूर बड़हिया से लगे इन्दुपुर गांव के राजीव कुमार बताते हैं

2015 में मेरी मां का कैंसर के कारण देहांत हो गया. तब डॉक्टर ने बताया था कि पानी के कारण ही उन्हें यह बीमारी हुई थी. लेकिन मेरे याद से मां कभी बीमार नहीं हुई थी. कभी कभार बस केवल बुखार-सर्दी ही हुआ था. लेकिन 2014 के नवंबर में उनके कैंसर (लास्ट स्टेज) का पता चला और जनवरी 2015 में उनकी मौत भी हो गयी. गांव में मेरी मां के आलावा दो तीन और लोगों की मौत कैंसर के कारण हुई है. अब उनके कैंसर का कारण क्या है मुझे नहीं पता. लेकिन मां की मौत के बाद से हमलोग पीने के पानी को लेकर ज़्यादा सतर्क हो गए हैं.

बिहार में भूगर्भ पानी पर किए गए रिसर्च टीम का हिस्सा रहे महावीर कैंसर संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार बताते हैं कि

शोध में एक और बात सामने आई है कि आर्सेनिक की अधिकता वाले इलाकों में यूरेनियम की मात्रा कम है. वहीं जिन इलाकों में आर्सेनिक कम है वहां यूरेनियम की मात्रा अधिक पाया गया है. ये दोनों रसायन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है.

बिहार के जल पुरुष के माने जाने वाले एमपी सिन्हा से जिलों में यूरेनियम बढ़ने को लेकर डेमोक्रेटिक चरखा ने बात की. एमपी सिन्हा ने बताया

जिन जिलों में यूरेनियम की मात्रा बढ़ी है उन जिलों में लोगों को यूरेनियम जैसे घातक तत्वों के बारे में जागरूक किया जाए. जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम हैं वो वाटर प्यूरीफ़ायर का इस्तेमाल ज़रूर करें. इसके अलावा प्रत्येक जिले के हर पंचायत में लोगों की सभा करनी चाहिए एवं पेयजल संकट से उन्हें अवगत कराया जाना चाहिए ताकि वहां के लोगों में पानी को उबालकर पीने की आदत आए.

एमपी सिन्हा का कहना है कि

सरकार को प्रभावित जिलों में वाटर ट्रीटमेंट का कार्य शुरू करना चाहिए. साथ ही सामाजिक स्तर पर भी जागरूकता अभियान शुरू किया जाना चाहिए. क्योंकि यह समस्या साल-दर-साल बढ़ती ही जा रही है”  

यूरेनियम युक्त पानी पीने से होती है घातक बीमारियां  

यूरेनियम युक्त पानी से होने वाले नुकसान के बारे में सिन्हा का कहना है कि

इस पानी को पीने से कैंसर, लीवर, किडनी से संबंधित बीमारी होने के साथ-साथ समय से पूर्व प्रसव और नवजात शिशुओं के हाथ-पैर जन्मजात टेढ़े होने जैसी बीमारियां भी होती हैं.

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पानी को उबालकर पीने की सलाह अक्सर डॉक्टर देते हैं जिसे पानी में मौजूद कीटाणु और रसायन दूर हो जाते है. लेकिन एमपी सिन्हा ने यूरेनियम युक्त पानी के लिए इस विधि को सही नहीं मानते हैं. सिन्हा बताते हैं

यूरेनियम युक्त पानी को उबालना ठीक नहीं है. यूरेनियम युक्त पानी को उबालने से इसके प्रतिकूल प्रभाव बढ़ सकते हैं. हालांकि पानी को उबालने के बाद छानने से इसके कुछ फ़ायदे हो सकते हैं. यूरेनियम से छुटकारा पाने के लिए आजकल उपयोग में आने वाले एडवांस फ़िल्टर उपयुक्त है.

यूरेनियम रेडियोएक्टिव है इसीलिए यह मानव शरीर में मौजूद डीएनए को भी प्रभावित करता है. यदि यह किसी भी वजह से पुरुष या महिला के शरीर में पहुंच जाता है तो उनके शरीर में प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल सकता है. भविष्य में उनके बच्चे भी विकृत हो सकते है. यूरेनियम एक रेडियोएक्टिव पदार्थ है जो शरीर के अंदर जाने पर पाचन तंत्र और कोशिकाओं में जमने लगता है. परमाणु रिएक्टर के तौर पर इस्तेमाल होने वाले इस खतरनाक तत्व के पानी में मौजूदगी की वजह से सामान्य तौर पर लिवर और किडनी तो क्षतिग्रस्त होती ही हैं, लंबे समय तक जमने के बाद यह कैंसर में तब्दील हो जाता है जो लाइलाज है. साथ ही लगातार यूरेनियम युक्त पानी पीने वाले लोगों की पाचन क्षमता भी होने लगती है जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी नष्ट हो जाती है. ऐसे में कई गंभीर बीमारियां चपेट में ले लेती हैं.

डॉ. अरुण कुमार ने हमें बताया कि

बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हाल के दौर में कैंसर के मरीज़ों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है. इसकी वजह पानी में यूरेनियम और आर्सेनिक की मौजूदगी ही है. इसके अलावा अस्पतालों में ऐसे मरीज़ों की संख्या भी बढ़ती जा रही है जिन्हें लिवर, किडनी और पाचन संबंधी अन्य बीमारियां हो रही हैं.

पानी में रेडियोएक्टिव तत्व यूरेनियम मिलने का कारण क्या है? इस पर अरुण कुमार कहते हैं कि यह अभी शोध का विषय है. इसपर हम इंडो-जापान प्रोजेक्ट के तहत काम कर रहे हैं. हम यह भी पता लगाने कि कोशिश कर रहे हैं कि क्या मिट्टी में भी यूरेनियम मौजूद है? क्योंकि यदि ऐसा है तो एक समय के बाद मिट्टी से यूरेनियम हमारे अनाज में भी पहुंच सकता है जो हमारे लिए हानिकारक है.

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