10 सालों से नियुक्ति का इंतज़ार कर रहे उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थी

2013 में ‘उर्दू-बांग्ला’ स्पेशल टीईटी का आयोजन किया गया था. लेकिन गलत प्रश्न पूछे जाने और उसी के आधार पर रिजल्ट जारी किये जाने के कारण अभ्यर्थियों ने इसका विरोध किया.

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पल्लवी कुमारी
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10 सालों से नियुक्ति का इंतज़ार कर रहे उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थी

(सीपीआई माले विधायक महबूब आलम के निवास पर धरना देते अभ्यर्थी)

बिहार में अभी शिक्षक भर्ती का दौर चल रहा है. बिहार के अभ्यर्थियों के साथ-साथ सरकार ने अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों को भी शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में शामिल होने का मौका दिया है. पहले चरण में शिक्षकों के 1 लाख 70 हजार पदों के लिए के लिए जून में आवेदन लिया गया जिसका परीक्षा और रिजल्ट तीन महीने के भीतर जारी कर दिया गया. वहीं दूसरे चरण की आवेदन प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव दोनों ही अपनी-अपनी पीठ थपथपाने में पीछे नहीं रहे हैं. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद ने नियुक्ति पत्र वितरण के दिन मंच से नव नियुक्त शिक्षकों को बधाई देते हुए कहा, “बिहार में चट से फॉर्म भरिए, फट से एग्जाम दीजिए, झट से ज्वाइन कीजिए. मात्र दो महीने में रिजल्ट दिया गया है.”

10 लाख नौकरी देने के अपने वादे में सरकार, शिक्षक नियुक्ति करके अपनी पीठ थपथपा रही है. लेकिन शिक्षक नियुक्ति की आशा लिए पिछले 10 सालों से इंतजार कर रहे ‘उर्दू-बांग्ला’ अभ्यर्थियों के तरफ सरकार की नजर नहीं जा रही है.

आखिरी बार साल 2013 में उर्दू-बांग्ला टीईटी का आयोजन किया गया था. परीक्षा के बाद रिजल्ट का प्रकाशन भी किया गया. लेकिन परीक्षा में गलत प्रश्न पूछे जाने और उसी के आधार पर रिजल्ट जारी किये जाने के कारण अभ्यर्थियों ने इसका विरोध किया.

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अभ्यर्थियों के विरोध के बाद बीएसईबी बोर्ड ने विशेष बोर्ड का गठन कर प्रश्नों की समीक्षा की जिसमें 13 प्रश्न गलत पाए गये थे. समीक्षा बोर्ड के सदस्यों ने त्रुटिपूर्ण प्रश्नों और उत्तरों के बदले अभ्यर्थियों को 13 अंक दिए जाने का फैसला लिया था. लेकिन संशोधित रिजल्ट जारी होने के बाद लगभग 12 हजार अभ्यर्थी असफल घोषित कर दिए गए.

'उर्दू और मुस्लिम' विरोधी हैं महागठबंधन सरकार- हसन रजा

10 सालों से रिजल्ट प्रकाशित करने की मांग कर रहे उर्दू टीईटी अभ्यर्थी 9 नवंबर को माले विधायक महबूब आलम के घर के बाहर जमा हुए. अभ्यर्थियों का कहना है सरकार के सहयोगी दल के नेता होने के बाद भी विधायक ने समाज के लोगों की बात सरकार तक नहीं पहुंचा रहे हैं.

टीईटी अभ्यर्थियों का कहना है कि जब तक एमएलए महबूब आलम नीतीश कुमार से मिलकर इसका समाधान नहीं निकालते है वे लोग यहां से नहीं जाएंगे. अभ्यर्थियों का कहना है उनके बाद आए अभ्यर्थियों को नौकरी दिया जा रहा है लेकिन उर्दू अभ्यर्थी अभी भी रिजल्ट की ही राह देख रहे हैं.

माले विधायक महबूब आलम के घर के बाहर प्रदर्शन कर रहे उर्दू टीईटी अभ्यर्थी हसन रजा डेमोक्रेटिक चरखा को बताते हैं “10 सालों से उर्दू-बांग्ला अभ्यर्थी दर्जनों प्रदर्शन कर चुके हैं. उन पर कई बार लाठियां भी बरसायी गयी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उर्दू विरोधी और मुस्लिम विरोधी काम कर रहे हैं. एक रिजल्ट के लिए पूरे बिहार के 12 हजार उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थी तरस गये हैं. शिक्षा विभाग ने रिजल्ट जारी करने के लिए लेटर भी निकाला लेकिन उस लेटर को निकले भी तीन-चार साल हो गये हैं.” 

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अभ्यर्थियों का कहना है, सरकार उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थियों के साथ धोखा कर रही है. हसन कहते हैं “उर्दू-बांग्ला टीईटी अभ्यर्थियों की उम्र खत्म हो रही है, वे डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं. कितनी लड़कियों की शादी टूट गयी है. कितने अभ्यर्थी पढ़ाई छोड़ चुके हैं. सरकार से केवल आश्वासन मिलता है.”

स्पेशल टीईटी में कटऑफ कम किये जाने की मांग

अभ्यर्थियों की मांग है कि उर्दू टीईटी परीक्षा में कटऑफ 60% से घटाकर 50% कर दिया जाए. बिहार शिक्षा विभाग ने भी साल 2018 में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर उर्दू शिक्षक अर्हता योग्यता के लिए निर्धारित 60% प्राप्तांक में 5% छूट देने की मांग की थी. केंद्र से मंजूरी मिलने पर 55% अंक लाने वाले उर्दू शिक्षक अभ्यर्थी भी परीक्षा पास कर सकते हैं.

राज्य में उर्दू शिक्षकों के लगभग 15 हज़ार पद रिक्त हैं. आखिरी बार साल 2013 में हुई उर्दू स्पेशल टीईटी में कटऑफ प्रतिशत ज़्यादा होने के कारण कम संख्या में अभ्यर्थी परीक्षा पास कर सके थे.

अभ्यर्थी हसन रजा कहते हैं “नीतीश कुमार खुद को अल्पसंख्यको का हितैषी बताते हैं. लेकिन हमारे साथ कितना भेदभाव हो रहा है इसको ऐसे समझिए. एसटीईटी का रिजल्ट जारी 50% पर जारी किया जाता है जबकि उर्दू टीईटी का रिजल्ट 60% पर निकाला जाता है यह भेदभाव क्यों?

उर्दू अभ्यर्थी शमा परवीन कहतीं हैं “हम लोग की जिंदगी बदहाल हो गई है. हमारा सब्र टूट रहा है. कितने लोग इस रिजल्ट के इंतजार में कब्र तक पहुंच गये हैं. परिवार की स्थिति दयनीय हो गयी है. अल्पसंख्यक और उर्दू पढ़ना हमारे लिए गुनाह बन गया है.”

उर्दू बांग्ला अभ्यर्थियों की जिंदगी काफी मुश्किल हो चुकी है

उर्दू शिक्षकों के हजारों पद रिक्त

इसी साल जनवरी महीने में शिक्षा मंत्री डॉ. चंद्रशेखर ने उर्दू, फारसी और अरबी शिक्षकों के लिए एसटीईटी आयोजित करने का निर्देश दिया था. लेकिन इस निर्देश को बीते भी नौ महीने हो चुके हैं.

शिक्षा विभाग के अनुसार राज्य में उर्दू विषय के लिए कक्षा एक से पांच तक 30,032 पद स्वीकृत हैं जिसमें से 11,166 पद खाली हैं. कक्षा छह से आठ तक के लिए 3,794 पद स्वीकृत हैं जिसमें से 1,637 पद रिक्त हैं.

माध्यमिक विद्यालयों में उर्दू विषय में 2,088, फारसी में 600 और अरबी में 300 पद रिक्त हैं. उच्च माध्यमिक विद्यालयों में उर्दू के 2,000, फारसी के 400 और अरबी के 200 पद रिक्त हैं. माध्यमिक एवं उच्च माध्यमिक विद्यालयों में उर्दू, फारसी एवं अरबी विषयों को मिलाकर लगभग 5,500 पद रिक्त हैं.

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