साल 1960 में स्थापित पटना डेंटल कॉलेज बिहार के पुराने मेडिकल कॉलेज में से एक है जहां दंत चिकित्सा में पढ़ाई कराई जाती है. लेकिन यह राज्य की बदहाली ही है कि 50 वर्ष से अधिक होने के बाद भी इस कॉलेज में डेंटल विषय में पीजी की पढ़ाई नहीं होती है.
छह साल पहले पीजी की पढ़ाई शुरू करने के लिए अधिसूचना भी जारी की गयी थी लेकिन उसके बाद फाइलों में दब कर रह गयी. जबकि पीजी विषयों की पढ़ाई के लिए कॉलेज में प्रोफेसर की नियुक्ति की जा चुकी है.
दंत चिकित्सा के पीजी विषय में उच्च शिक्षा की व्यवस्था नहीं होने के कारण राज्य के छात्रों को नुकसान उठाना पड़ रहा है. स्नातक की पढ़ाई पूर्ण होने के बाद छात्र उच्च शिक्षा के लिए राज्य के बाहर जाने को मजबूर हैं. जिससे राज्य दंत चिकित्सा के क्षेत्र में पिछड़ रहा है.
छात्रों को नुकसान
राज्य के सबसे पुराने डेंटल कॉलेज अस्पताल में पीजी की पढ़ाई नहीं होने का नुकसान राज्य के स्थानीय छात्रों पर पड़ रहा है. बाहरी राज्यों के कॉलेज में नामांकन लेने से छात्रों के ऊपर शैक्षणिक और आर्थिक दबाव बढ़ता है.
पटना डेंटल कॉलेज से बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) विषय की पढ़ाई कर रही नवादा जिले की रहने वाली काजल (बदला हुआ नाम) पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए चिंतित हैं. काजल बीडीएस तृतीय वर्ष की छात्रा है. कॉलेज में पीजी की सुविधा नहीं होने पर कहती हैं “मैं अभी थर्ड ईयर में हूं. अगर फाइनल ईयर आने तक कॉलेज को पीजी में सीट मिल जाती है तो हमलोग को बाहर नहीं जाना पड़ेगा."
काजल यहां छात्रों को स्टेट कॉलेज में मिलने वाले आरक्षण का भी जिक्र करती हैं. काजल कहती हैं “हमलोगों को बाहर के कॉलेज में एडमिशन लेने से कोई दिक्कत नहीं है. क्योंकि आज भी हमलोग अपने घर से दूर हैं. लेकिन स्टेट के कॉलेज में उस स्टेट के छात्रों को कोटा मिलता है जो अन्य राज्यों में जाने पर नहीं मिलेगा. इसलिए रैंक के लिए चिंता लगी रहती है.”
पटना डेंटल कॉलेज में बीडीएस विषय में 40 सीटें हैं. लेकिन छात्रों का कहना है कि बाद के सालों में आधी सीटें खाली हो जाती हैं. जिन छात्रों का नामांकन एमबीबीएस में हो जाता है वे सीटें छोड़ देते हैं.
नौ विषय में बैचलर और एक में पीजी
पटना डेंटल कॉलेज में दंत चिकित्सा विषय के सभी नौ विभागों में बैचलर की डिग्री दी जाती है. जिसमें एंडोडोंटिस्ट, ऑर्थोडॉन्टिस्ट और डेंटोफेशियल ऑर्थोपेडिस्ट, पेरियोडोंटिस्ट, प्रोस्थोडोन्टिस्ट, ओरल पैथोलॉजी, ओरल मेडिसिन और रेडियोलॉजी, डेंटल मैटेरियल्स, डेंटल एनाटॉमी, ओरल हिस्टोलॉजी और कम्युनिटी डेंटिस्ट्री शामिल है.
वहीं जब इन विषयों में पोस्ट ग्रेजुएशन की बात आती है तो छात्रों को निराशा हाथ लगती है. कॉलेज में केवल प्रोस्थोडोन्टिस्ट विषय में पीजी की सुविधा उपलब्ध है. लेकिन इस विषय में नामांकन के लिए मात्र दो सीटें स्वीकृत की गई है. जिसमें में से एक केंद्रीय कोटा के लिए आरक्षित है.
पटना डेंटल कॉलेज के प्राचार्य डॉ तनुज कुमार सरकार से कॉलेज की गरिमा के लिए पीजी विषयों में पढ़ाई शुरू करने की पहल करने की बात करते हैं. डॉ तनुज कुमार कहते हैं “पटना डेंटल कॉलेज देश के सबसे पुराने पांच डेंटल कॉलेज में से एक है. इसके साथ खुले दिल्ली और लखनऊ के डेंटल कॉलेज में सभी नौ विषयों में पीजी की पढ़ाई वर्षों से हो रही है.”
कुछ वर्षो पहले सरकार द्वारा किये गए पहल पर तनुज कुमार कहते हैं “कॉलेज में प्रोफ़ेसर की नियुक्ति की गई है. लेकिन पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी. सरकार को दोबारा पीजी की पढ़ाई शुरू कराना चाहिए."
पटना डेंटल कॉलेज में पहले क्लीनिकल पैथोलॉजी और प्रोस्थोडोंटिस्ट विषय में पीजी की पढ़ाई होती थी, लेकिन वर्ष 2001 में क्लीनिकल पैथोलॉजी में पीजी की पढ़ाई बंद हो गई.
2018 में 25 पदों का हुआ था सृजन
बिहार सरकार द्वारा साल 2018 में पटना डेंटल कॉलेज में पीजी की पढ़ाई शुरू करने की अधिसूचना जारी की गई थी. इसके तहत 25 नए शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों के सृजन की स्वीकृति मिली थी. जिसमें तीन फ्रोफेसर और 10 रीडर के पद स्वीकृत किये गए थे. सरकार के इस प्रस्ताव पर कैबिनेट और वित्त विभाग की भी मुहर लग चुकी थी. लेकिन परिणाम में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आया.
कोविड महामारी के बाद स्वीकृत पदों पर कुछ फ्रोफेसर की नियुक्ति की गई थी. लेकिन नियुक्ति के दो साल बाद भी पढ़ाई शुरू नहीं हो सकी.
नालंदा के रहुई में डेंटल कॉलेज खुलने से पहले तह पटना डेंटल कॉलेज राज्य का एकमात्र सरकारी डेंटल कॉलेज था. लेकिन इसके बावजूद यह सरकारी उपेक्षा का शिकार बना रहा है. सरकार ने कॉलेज की शैक्षणिक एवं आधारभूत संरचना के विकास के लिए जरुरी कदम नहीं उठाए. जिसके कारण हर गुजरते साल के साथ इसकी स्थिति खराब होती चली गई.
डेंटल काउंसिल आफ इंडिया द्वारा शिक्षकों एवं आधारभूत संरचना को लेकर तय किए गए निर्धारित मानक को पूरा नहीं करने के कारण वर्ष 2014 और 2015 के सत्र में कॉलेज को नामांकन की अनुमति नहीं मिली थी. वहीं कॉलेज में लेक्चरर के 14, रीडर के 12 और प्रोफेसर के 6 पद स्वीकृत है. लेकिन इन पदों पर 1988 के बाद एक भी स्थाई शिक्षकों की नियुक्ति नहीं की गई है.