मिड डे मील : क्या एक ध्वस्त हो रही प्रणाली को बचा पाएगी सरकार ?

जन जागरण शक्ति संगठन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 20 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मिल का बजट अपर्याप्त है, खासकर अंडे का बजट कम आता है. कई जगहों पर अंडे का ब्राह्मणवादी विरोध भी होता रहा है.

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नाजिश महताब
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मिड डे मील

मध्याह्न भोजन योजना की शुरुआत 1925 में मद्रास हुई थी. 1980 के मध्य तक तीन अन्य राज्यों गुजरात, केरला और तमिलनाडु तथा केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी में व्यापक रूप से अपने स्वयं के संसाधनों से प्राथमिक स्तर पर पढ़ने वाले बच्चों के लिए पका पकाया मध्याह्न भोजन योजना लागू किया गया.

2007 में इस योजना को बिहार के सभी 38 जिलों में लागू किया गया

बिहार सरकार द्वारा 18 दिसंबर 2004 को अधिसूचित अधिसूचना के तहत 2005 में बिहार के सभी प्राथमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना शुरू की गई. वर्ष 2007 08 में इस योजना को बिहार के सभी 38 जिलों में लागू किया गया. 2020 के अनुसार बिहार के प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित 1,44,16,688 बच्चों तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों में नामांकित 43,37,317 बच्चों को मध्याह्न भोजन का लाभ मिला. मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश पका पकाया भोजन उपलध कराने के अलावा बच्चों में पौष्टिकता के स्तर को बढ़ाना और मनोवैज्ञानिक लाभ भी पहुंचना था. लेकिन सरकारी स्कूलों में मिलने वाला मिड डे मील को लेकर शिकायतें बढ़ती जा रही है.

2 मई 2024 को बिहार के धनरूआ के चंदापर प्राथमिक विद्यालय में मध्याह्न भोजन योजना में घटिया सामग्री की आपूर्ति को लेकर विवाद हुआ. स्थानीय लोगों और विद्यार्थियों ने हंगामा किया और गंभीर आरोप लगाए. उनका कहना है कि बच्चों को कीड़े लगे दाल और घटिया चावल खिलाया जा रहा है, जिससे उनकी जान जोखिम में है. रसोइया ने भी प्रभारी पर आरोप लगाया कि उन्हें खराब सामग्री दी जाती है और मना करने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती.

जुलाई 2024 में  मिड डे मील में गड़बड़ करने के आरोप में 18 प्रधानाध्यापकों के खिलाफ कार्रवाई की गई. राज्य के 8 जिलों में मिड डे मील की गुणवत्ता में गड़बड़ी मिली है. इन सभी प्रधानाध्यापकों के खिलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई होगी.

गया के पंचानपुर के सरकारी स्कूल उर्दू मध्य विद्यालय में मिड डे मील को लेकर कई शिकायतें रही है. उर्दू मध्य विद्यालय में मिड डे मील कभी बच्चों को मिलता है तो कभी मिलता है नहीं. बच्चे डर से इसकी शिकायत नहीं करते हैं.

जब हमने यहां पढ़ने वाले बच्चों से बात की तो उन्होंने चौकाने वाला सच बताया.

मोनू ( बदला हुआ नाम) कक्षा 5 के विद्यार्थी हैं. वो इसी स्कूल में पढ़ते हैं. जब हमने उनसे मिड डे मील के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया किस्कूल में मिड डे मील कभी मिलता है तो कभी नहीं मिलता है. जब मन करे तो खाना बनता है वरना नहीं बनता है. अंडा भी हमें नहीं मिलता है. इसकी शिकायत जब टीचर से करता हूं तो वो भी डांट देते हैं. वहीं खाना भी बहुत ख़राब होता है. कभी कभी लगता है की खाना कच्चा है.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत का फिसलता रैंक

2021 के Global hunger index में भारत का रैंक 101 था वहीं 2022 के Global hunger index में भारत ka रैंक फिसल कर 107 हो गया , 2023 में भारत का रैंक 111 रहा. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार , देश भर के कई राज्यों में बाल कुपोषण की स्थिति उलट गई है और उसका स्तर बदतर होता जा रहा है. भारत दुनिया के लगभग 30% अविकसित बच्चों और पाँच वर्ष से कम आयु के लगभग 50% गंभीर रूप से कमज़ोर बच्चों का घर है.

20% स्कूलों में मिड डे मिल का बजट अपर्याप्त

जन जागरण शक्ति संगठन की रिपोर्ट के अनुसार राज्य के 20 प्रतिशत स्कूलों में मिड डे मिल का बजट अपर्याप्त है, खासकर अंडे का बजट कम आता है. कई जगहों पर अंडे का ब्राह्मणवादी विरोध भी होता रहा है.

जन जागरण शक्ति संगठन के आशीष बताते हैं किस्कूलों में मिड डे मिल में बच्चों को अंडा देना कई बार एक समस्या बन चुकी है. कई स्कूल धार्मिक पक्ष रखते हैं लेकिन बच्चों को अंडा चाहिए. पैसे के आभाव में बच्चें को बिस्कुट नहीं दिया जा रहा है.

मध्याह्न भोजन के क्या है नियम

नियमों के तहत, प्रति बच्चा प्रति दिन 4.97 रुपये (प्राथमिक कक्षा) और 7.45 रुपये (उच्च प्राथमिक) का आवंटन विधानमंडल वाले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 अनुपात में और पूर्वोत्तर राज्यों के साथ 90:10 अनुपात में साझा किया जाता है.

क्या कहता हैं ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2021

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट-2021: हाल ही में जारी ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट (जीएनआर, 2021) के अनुसार , भारत ने एनीमिया और चाइल्डहुड वेस्टिंग पर कोई प्रगति नहीं की है.

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट (GNR) के मुताबिक, भारत में भूख की समस्या बढ़ रही है. साल 2019 में यह 14 प्रतिशत थी, जो 2020 में बढ़कर 15.3 प्रतिशत होने की संभावना थी.

पंचानपुर उर्दू मध्य विद्यालय में पढ़ने वाली रोशनी से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया किस्कूल का मिड डे मील बहुत ख़राब है. शिकायत करने पर हमें धमकी दी जाती है. चार्ट के हिसाब से भी खाना नहीं मिलता. एक बार मील का खाना खा कर मेरी दोस्त की तबीयत बहुत ख़राब हो गई थी. उसे फूड पॉइजनिंग हो गई थी. स्कूल हमें अच्छा खाना दे बस यही चाहते हैं हम.

जब हमने स्कूल के प्रधानध्यापक से इस बारे में बात करने की कोशिश की तो उन्होंने हमसे बात नहीं किया. अब सोचने वाली बात ये है की बच्चे जो इस देश के भविष्य हैं उनके न्यूट्रीशन के लिए मिड डे मील लाया गया था लेकिन स्कूल के बच्चों को मिड डे मील का लाभ ही नहीं मिल रहा , जिसके कारण बच्चों में कुपोषण जैसे हालात पैदा हो रहें हैं.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के अनुसार बिहार में 48.3 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं।राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2015-2016 के अनुसार, बिहार में 48.3% बच्चे अविकसित थे, 20.8% कमजोर थे, और 43.9% कम वजन के थे. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) 2019-2020 के अनुसार, भारत में पांच साल से कम उम्र के 37.9% बच्चे अविकसित हैं, 20.8% कमजोर हैं, और 35.7% कम वजन वाले हैं.

आंकड़ों में अभी भी कमी नहीं आई है. बिहार में कुपोषण की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और इसपर सरकार का ध्यान नहीं है. सरकार को चाहिए की सरकार सरकार स्कूल में मिलने वाले मिड डे मील पर ख़ास ध्यान दे.

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