शिक्षा दिवस विशेष: क्या बिहार में RTE ठीक से लागू है?

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आमिर अब्बास
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शिक्षा दिवस विशेष: क्या बिहार में RTE ठीक से लागू है?

हमारे देश में ‘शिक्षा का अधिकार’ कानून लागू हुए 12 साल हो चुके हैं. इन बारह सालों के दौरान आरटीई सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने में विफ़ल साबित हुई है. आज भी बड़े पैमाने पर सरकारी स्कूल बुनियादी ढांचागत सुविधाओं, ज़रूरी संसाधन, शिक्षा के लिए माहौल और शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहे हैं. प्राथमिक स्कूलों में बच्चों का नामांकन दर तो बढ़ गया है लेकिन स्कूल में बच्चों को वो स्कूली माहौल आज भी नहीं मिल रहा जहां बच्चे मन लगाकर पढाई कर सकें, जहां उन्हें अगले दिन वापस जाने का मन करे.

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राजधानी पटना में पटना जंक्शन से सटे मीठापुर इलाके में दयानंद मध्य विद्यालय, मीठापुर संचालित किया जाता है. स्कूल दो मंज़िला है, जिसमे पानी और शौचालय की व्यवस्था भी मौजूद है. यहां तक तो कोई समस्या नहीं है. समस्या की शुरुआत तीन साल पहले होती है. जब दयानंद मध्य विद्यालय के भवन में ही आदर्श विद्या निकेतन मध्य विद्यालय, यारपुर का संचालन भी होने लगा. साथ ही यहां एक अन्य विद्यालय सज्जन मध्य विद्यालय का भी संचालन किया जाने लगा.

इस भवन के नौ कमरों में कक्षा एक से लेकर आठवीं तक की पढ़ाई होती है. तीनों स्कूल को इन्हीं कमरों में किसी तरह सामंजस्य बैठाकर संचालित किया जा रहा हैं. लेकिन इस सब का ख़ामियाज़ा बच्चों को उठाना पड़ रहा है.

सज्जन मध्य विद्यालय में सातवीं की छात्रा सुहानी कुमारी बताती हैं

साढ़े बारह बजे से हमारा स्कूल चलता है. मेरे क्लास में छठी, सातवी और आठवीं  की पढ़ाई एक साथ होती है. समझने में बहुत दिक्कत होती है. क्लास में बैठने में भी बहुत दिक्कत होता है. कभी-कभी जब ज़्यादा बच्चे आ जाते हैं तो एक ही बेंच पर चार से पांच लड़कियों को बैठना पड़ता है. 

सुहानी आगे कहती है कि

मुझे और मेरे क्लास के सभी बच्चों को इस साल किताब का भी पैसा नहीं मिला है. हमलोगों ने अपने पैसे से किताबें खरीदी हैं.  

दयानंद मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक मनोज कुमार स्कूल भवन में चल रहे अन्य स्कूलों के संचालन से थोड़ा खीजते हुए दिखते हैं. अन्य स्कूलों के संचालन के कारण उन्हें अपने स्कूल की कक्षाएं दो शिफ्ट में चलानी पर रही है. डेमोक्रेटिक चरखा जब स्कूल पहुंची तो उस वक्त स्कूल में एक शिक्षिका और खुद मनोज कुमार मौजूद थे.

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अन्य दो स्कूलों का संचालन भी इसी भवन में होने से कितनी परेशानी हो रही है. इस पर मनोज कुमार कहते हैं

आधिकारिक रूप से हम इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहते हैं.

वहीं छात्रा सेजल कुमारी का कहना है

क्लास में पढ़ाई करने पर समझ नहीं आता है. घर में मम्मी-पापा को ट्युशन देने के लिए बोले हैं. लेकिन मम्मी बोलती है, पैसा नहीं है.

आरटीई के तहत बच्चों को दिए गए हैं क़ानूनी अधिकार

आरटीई के तहत बच्चों 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा दिए जाने का प्रावधान है. साथ ही इसके तहत सभी स्कूलों में बच्चों को सीखने के लिए प्रभावकारी वातावरण बनाने का भी नियम बनाया गया है. जिसके लिए सबसे पहले बुनियादी ढांचें का होना आवश्यक है.

आरटीई में यह सुनिश्चित किया गया है कि प्राथमिक स्तर पर प्रत्येक 60 बच्चों पर दो प्रशिक्षित शिक्षक उपलब्ध हो. शिक्षकों की संख्या बच्चों की संख्या के आधार पर होनी चाहिए ना कि ग्रेड के आधार पर. साथ ही शिक्षक नियमों जैसे- शिक्षकों को नियमित और सही समय पर स्कूल आना, पाठ्यक्रम के निर्देशों को पूरा करना, बच्चों में नवीन क्रियाओं एवं नवीन विचारों को उत्पन्न करने जैसे प्रयास आदि का पालन होना भी आवश्यक है.

आदर्श विद्या निकेतन, यारपुर स्कूल में 250 के करीब बच्चे नामांकित हैं और इन बच्चों को पढ़ाने के लिए केवल पांच शिक्षक मौजूद है. जो निर्धारित मानक से कम है.

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यहां पढ़ाने वाले शिक्षक कहते हैं

यहां 250 के करीब बच्चे नामांकित है लेकिन अभी छठ की छुट्टी के बाद मात्र 70 से 75 छात्र ही आ रहे हैं. अन्य दिनों में 90 के करीब बच्चे आते हैं. हमारे विद्यालय का ख़ुद का भवन नहीं है इसलिए परेशानी होती है. यहां से पहले हमारा विद्यालय किराए के मकान में यारपुर में था. किसी कारण से उस मकान को तोड़ा जाने लगा तब हमे यहां शिफ्ट किया गया.

क्या स्कूल के भवन निर्माण के लिए विद्यालय द्वारा आवेदन नहीं दिया गया है? इसपर शिक्षक कहते हैं

भवन निर्माण के लिए पैसा तो मिल चुका है, लेकिन जगह का आवंटन नहीं हुआ है. ऐसे में उस फण्ड का इस्तेमाल कैसे संभव है.

वहीं राज्य सरकारों कि यह ज़िम्मेदारी है कि वह बच्चों को सीखने में बेहतर बनाने के लिए शिक्षकों को पर्याप्त सहयोग सुनिश्चित करें. साथ ही समुदाय और नागरिक समाज स्कूल प्रबंध समितियों (एसएमसी) के साथ निष्पक्ष तरीके से सामंजस्य बैठाकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करें. लेकिन अभी भी बिहार सरकार इसमें विफ़ल रही है.

लेकिन स्कूल भवन नहीं होने के कारण केवल छात्रों को ही नहीं बल्कि शिक्षकों को भी परेशानी होती है. आदर्श विद्या निकेतन की शिक्षिका इंदु बताती हैं

हमारा स्कूल मॉर्निंग शिफ्ट का है. सुबह समय पर स्कूल पहुंचने के लिए कभी-कभी सुबह का नाश्ता किए बिना भी स्कूल आना पड़ता है. उस दिन यह समस्या होती है की भूख लगे होने के बावजूद हमे लंच तक इंतजार करना होता है ताकि हम नाश्ता कर सकें. हमारे स्कूल में कमरों की कमी है. मात्र दो कमरों में हम पहली से लेकर आठवीं तक की पढ़ाई करवाते हैं. ऑफिस या स्टाफ़ रूम नहीं होने के कारण हमे बच्चों के सामने बैठकर ही ऑफिस का काम करना पड़ता है.

क्या है स्कूल प्रबंधन समितियां (एसएमसी)

स्कूल स्थानीय अधिकरण, अधिकारियों, माता-पिता, अभिभावकों और शिक्षकों को मिलाकर स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी) का निर्माण किया जाता है. ये एसएमसी स्कूल के विकास के लिए योजनाएं बनाती है और सरकार द्वारा दिए गए अनुदान का इस्तेमाल करती है. साथ ही पूरे स्कूल के वातावरण को भी नियंत्रित करता है.

आरटीई में यह प्रावधान है कि ‘एसएमसी’ में वंचित तबकों से आने वाले बच्चों के माता-पिता और 50 फ़ीसदी महिलाएं होनी चाहिए. इस तरह से इस समुदाय की भागीदारी लड़कियों और लड़कों के लिए अलग-अलग शौचालय, बच्चों के स्वास्थ्य, पीने के लिए स्वच्छ पानी, स्कूल कैंपस में स्वच्छता जैसे मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान के ज़रिए पूरे स्कूल के वातावरण को बच्चों के विकास के लिए सहायक बनाने को सुनिश्चित करना है.

‘शिक्षा का अधिकार’ कानून का अस्तित्व में आना निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक कदम था. इस कानून के द्वारा पहली बार 6 से 14  साल के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार हासिल हो सका. लेकिन इस कानून की भी अपनी सीमाएं रही हैं जैसे 6 वर्ष से कम और 14 वर्ष से अधिक आयु समूह के बच्चों को इस कानून के दायरे से बाहर रखना, शिक्षा की गुणवत्ता पर पर्याप्त जोड़ नहीं देना और प्राइवेट स्कूल में 25 प्रतिशत आरक्षण के साथ प्राइवेट स्कूलों की तरफ भगदड़ में और तेज़ी लाना.

वहीं पटना में ऐसे कई स्कूल है जहां केवल दो या तीन कमरों में तीन से चार स्कूल चलाए जा रहे हैं. बिहार में सरकारी स्कूलों के भवन या तो है ही नहीं या फिर जो हैं भी वह जर्जर स्थिति में हैं. 

मीठापुर इलाके के कन्या मध्य विद्यालय करबिगहिया विद्यालय में तीन कमरे हैं. तीन कमरे वाले इस स्कूल में चार अन्य स्कूल संचालित हैं. यहां कन्या प्राथमिक विद्यालय चांदपुर बेला, प्राथमिक विद्यालय जयप्रकाश नगर, बालक मध्य विद्यालय करबिगहिया और न्यू सिन्हा मॉर्डन मध्य विद्यालय पुरनदरपुर का संचालन हो रहा है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति द्वारा फ़रवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर चिंता ज़ाहिर की गयी थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि अभी तक देश के 56% सरकारी स्कूलों में ही बिजली की व्यवस्था हो सकी है.

इसी प्रकार से देश में 57% से भी कम स्कूलों में खेलकूद का मैदान मौजूद है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया था की देश में एक लाख से ज्यादा सरकारी स्कूल एकल शिक्षकों के भरोसे चल रहे हैं.

शिक्षा बजट में वृद्धि लेकिन जमीन पर हकीकत कुछ और  

बिहार सरकार ने साल 2022-23 के बजट में 39,191.87 करोड़ रुपए शिक्षा के मद के लिए दिया है. जो की पुरे बजट का 16.5 फ़ीसदी है. बिहार के अधिकतर सरकारी स्कूलों के भवन जर्जर हो गए हैं, लेकिन इसे लेकर कोई योजना नहीं बनाई गई है.

केवल शिक्षकों की नियुक्ति करने से शिक्षा व्यवस्था में सुधार नहीं हो सकता है. क्या सरकार इस बात को नहीं समझ रही है? कोरोना ने यह बता दिया है कि अब ऑफलाइन शिक्षा से अधिक ऑनलाइन पढ़ाई का स्ट्रक्चर खड़ा करना होगा. लेकिन जब सरकारी स्कूलों के भवन ही नहीं होंगे तो बाकि सुविधाओं की बात करना ही बेमानी है.