पटना के तालाब लुप्त होने की कगार पर, सरकार के पास नहीं है कोई ठोस योजना

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Sujit Srivastava
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जल संकट से पूरी दुनिया के देश जूझ रहे हैं। एक-एक बूंद के लिए लोगों को तरसना न पडे इसके लिए सरकार अपने स्तर पर लोगों को जागरूक कर रही है। दुनिया का कोई ऐसा देश नहीं है जो जल संकट से अछूता नहीं हो। ऐसे में एक ऐसे शहर का भी जिक्र हो जाता है जिसकी पहचान कभी तालाब से होती थी। तालाब भी एक या दो नहीं बल्कि हजार से ज्यादा। लेकिन आज आलम यह है कि खोजने पर भी तालाब नहीं मिलेंगे और जो हैं भी वह दम तोड रहे हैं। शहरीकरण के दौर में पटना के तालाब लुप्त हो रहे हैं इसका साफ असर हमारे इकोसिस्टम पर पड़ रहा है। लेकिन ‘जल, जीवन हरियाली योजना’ चलाने वाले नीतीश कुमार पर्यावरण के नाम पर बस ‘ह्यूमन चेन’ बनवाने का काम करते हैं लेकिन बिहार म्यूजियम बनवाने के लिए सैंकड़ों पेड़ काट देते हैं।

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जानकारों की माने तो पटना शहर की पहचान कभी तालाबों के शहर के रूप में थी। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार इस शहर में करीब एक हजार से ज्यादा हुआ करते थे लेकिन आज हालात यह है कि इनमें से ज्यादातर तालाब गायब हो चुके हैं। ये तालाब शहर की खूबसूरती को तो बढाते ही थे, जल संचय का भी कार्य करते थे। इसके बाद शहरीकरण का दौर हुआ और सारे तालाब एक-एक कर के गायब होने लगे और उन तालाबों की जगह पर इमारते खड़ी हो गईं।

तालाब को भरकर बनया गया पटना एम्स

इस क्षेत्र में जानकारी रखने वालों के अनुसार फुलवारीशरीफ में जिस जगह पर एम्स का निर्माण किया गया है उस जगह पर कभी तालाब हुआ करता था। करीब 35 एकड़ में फैले इस तालाब को भरकर एम्स का निर्माण कर दिया गया। आज की तारीख में तारामंडल, नेताजी सुभाष पार्क, इको पार्क, दरोगा प्रसाद राय रोड में विधायक आवास, खाद्य निगम कार्यालय, बिस्कोमान कॉलोनी, रेलवे सेंट्रल अस्पताल, संदलपुर सहित कई और कॉलोनियां जो बनी हैं, वह सब भी तालाबों को ही भर कर बसाई गई हैं। अब जो कुछ तालाब बचे हैं, वह संकट में हैं। कच्ची तालाब, सचिवालय तालाब, मानिकचंद तालाब और अदालतगंज तालाब  तो आज की तारीख में हैं, लेकिन विलुप्त होने का संकट बरकरार है।

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(तालाब को भरकर बना तारामंडल)

एक समय में अशोक राजपथ और कंकड़बाग पुराना बाइपास के बीच सैदपुर और संदलपुर गांव के बीच करीब 74 एकड़ का जलाशय हुआ करता था। सरकारी दस्तावेजों में इसका जिक्र गोनसागर तालाब के नाम से मिलता है। इस तालाब में सिंघाड़ा (पानी फल) की खेती के साथ ही मछली पालन होता था। शहरी विकास में इस तालाब के आसपास लोगों ने पहले झोपड़ी बनाई फिर कॉलोनी बस गई।

इसी तरह से न्यू बाईपास स्थित नंदलाल छपरा गांव के निकट पांच एकड़ का तालाब था। इस तालाब के आसपास अब गोदाम बन गए हैं। इसके नजदीक ही बहादुरपुर गांव में करीब 18 एकड़ का तालाब था। बहादुरपुर हाउसिंग कॉलोनी बसने के साथ ही यह तालाब दफन हो गया।

कुम्हरार में करीब पांच एकड़ का तालाब मत्स्य विभाग के रिकार्ड में हैं। पहले तो आस-पास के लोगों ने इस तालाब में कूड़ा भरा। इसके बाद झोपड़ी बनाया और मवेशी बांधने लगे। सरकारी उदासीनता का लाभ उठाकर लोगों ने यहां पर पक्के मकान भी बना लिए। जानकारी के अनुसार अब सरकार ने इस जगह पर सदर अंचल कार्यालय भवन निर्माण के लिए पहल की है और अपने अधिकार में ले लिया है। इसी प्रकार बेउर तालाब को नगर निगम कूड़ा डंपिंग यार्ड बना दिया गया है। तालाब से होकर एक आइटीआइ संस्थान के लिए रास्ता का निर्माण चल रहा है।

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(गुलजारबाग तालाब)

वाटर लेवल को मेंटेन करने के लिए तालाब ज़रूरी

IIT खड़गपुर से पढ़े और लगभग 50 सालों से जलाशयों पर अध्ययन करने वाले सीनियर रिसर्चर दिनेश मिश्र बताते हैं,

वाटर लेवल को मेंटेन करने में तालाब का अहम रोल होता है। आसपास के कुएं में इनकी ही वजह से वाटर लेवल मेंटेन रहता है। तालाब ही होते थे जो हमारे सारे वाटर सोर्स को रिचार्ज करते थे। यह हमारे नेचुरल वाटर रिसोर्स थे। वह कहते हैं, हमारी जीवन पद्धति में भी इन तालाबों का अहम रोल है। महाभारत तक में इनका जिक्र है। तालाब के कई प्रकार होते हैं। यह एक बार खत्म हो गए तो दुबारा मिलने से रहे। तरक्की करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन तालाब को बचाकर रखा जाता तो वह ज्यादा बेहतर होता।

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(जल विशेषज्ञ दिनेश मिश्र)

तालाबों की दुर्दशा से राजधानी का फेमस अदालतगंज तालाब भी अछूता नहीं रहा। अदालत के कर्मियों के यहां पर बसने के कारण इस इलाके का नाम अदालतगंज पडा था। हालांकि पटना स्मार्ट सिटी में इस तालाब के जिर्णोद्धार को लेकर प्रक्रिया शुरू हुई। यहां पर कई आधुनिक चीजों को स्थापित किया गया। कभी यह तालाब राज्य सरकार के मत्स्य एवं पशुपालन विभाग के लिए राजस्व का अच्छा खासा स्रोत बन गया गया था। यहां हर साल मछली पालन के लिए बंदोबस्ती होती थी। तालाब को स्मार्ट रूप तो दिया गया है लेकिन  इसका इस्तेमाल जल संचय के लिए किस तरह से होगा। यह भविष्य में छुपा हुआ है।

जबतक जरूरत अपनाया फिर छोड़ दिया

दिनेश मिश्र कहते हैं, तालाब पुरातन काल से ही हमारे जीवन का हिस्सा रहे हैं। लेकिन समाज की सोच बदली तो तालाब भी खत्म हो गए। वह कहते हैं, तालाब की यूटिलिटी जैसे जैसे खत्म हुई, इनपर आफत आ गई। जो तालाब शहर में फंसे, वह खत्म हो गए। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं।

मानिकचंद तालाब ऐतिहासिक लेकिन आज लुप्त होने की कगार पर

कोलकाता के एक प्रमुख व्यापारी मानिकचंद करीब 130 साल पहले घूमते हुए पटना के अनिसाबाद गांव पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने आसपास के लोगों को पानी की किल्लत से जूझते देखा था। इसके बाद उन्होंने 1890 में अनिसाबाद मोड़ पर साढ़े दस एकड़ जमीन खरीदकर तालाब व शिव मंदिर का निर्माण कराया। देश को आजादी के बाद 1952 में मानिकचंद तालाब व मंदिर की देखरेख के लिए एक कमेटी बनाई गई। तालाब का पक्कीकरण किया गया। लगभग चार एकड़ में बने मानिकचंद तालाब में 12 घाट बनाए गए हैं। आस्था के फूल और पूजन-हवन सामग्री तालाब में विसर्जन के कारण इसके वजूद पर संकट कायम हो गया है।

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(अदालत गंज तालाब)

जानकारों की माने तो एम्स, सैदपुर हॉस्टल, तारामंडल, रेलवे अस्पताल, सुभाष पार्क सभी तालाबों पर ही बने हैं। इसी प्रकार कई ऐसे भी तालाब हैं जो तत्काल जीर्णोद्धार की बाट जोह रहे हैं। इनमें सोनावां तालाब में जलकुंभी व कचरे की भरमार है वहीं हीरानंदपुर तथा महमदपुर तालाब को जीर्णोद्धार की जरूरत है। इसी प्रकार बहादुरपुर तालाब में दो एकड का अवशेष है जबकि नगला तालाब में मंदिर व आवासीय निर्माण है। कच्ची तालाब में अतिक्रमण जारी है। वहीं मानिकचंद तालाब में गंदगी का ढेर है।

दिनेश मिश्र कहते हैं,

बिहार का ज्यादातार हिस्सा आज जलसंकट से जूझ रहा है। इसमें राजधानी समेत दक्षिण बिहार व उत्तर बिहार के भी कई इलाके हैं। हमें सर्वप्रथम इन तालाबों के संरक्षण व शुद्धता के उपाय के लिये चिन्तित होना होगा। जीवन को बेहतर करने की सोच को विकसित करना होगा और इसके लिए हमें बाजारवाद व भौतिकतावाद को त्यागना होगा तभी हम सब पेयजल के इन स्रोत बचाने में सफल हो सकते हैं। विकास क्या है, इसका सही मतलब हम लोगों को समझने की जरूरत है। वह कहते हैं, समाज की भी जिम्मेदारी होती है कि पेयजल के जिन स्त्रोतों ने हमारी पहचान बनाई। उसके लिए गंभीरता से सोचा जाए।

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(सरकारी दस्तावेज़ में मौजूद पटना में तालाबों की संख्या)

बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार राज्य में पिछले तीन सालों में 5797 तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया है। पटना में जीर्णोद्धार की संख्या सिर्फ 41 है। यानी हर साल औसतन 14 तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया है। जल जीवन हरियाली योजना के आंकड़ों के अनुसार ही पटना में 633 तालाबों में जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। सरकार की पर्यावरण को लेकर उदासीनता समझ से परे है।

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(जीर्णोद्धार किये गए तालाबों की संख्या)

महात्मा गांधी ने कहा था-

पृथ्वी हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है, परंतु पृथ्वी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती है। 

लेकिन बिहार में शहरीकरण और विकास की अंधी दौड़ में पर्यावरण और प्रकृति का मुद्दा हमारे लिए बातचीत का भी विषय नहीं रहा।