“हम हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं, मर जायेंगे लेकिन मुल्क से अलग नहीं होंगे”- NRC पर बंजारों की टिप्पणी

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आमिर अब्बास
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“हम हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं, मर जायेंगे लेकिन मुल्क से अलग नहीं होंगे”- NRC पर बंजारों की टिप्पणी


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सब कोई कह रहा है कि हमको नागरिकता साबित करने के लिए ज़मीन का कागज़ दिखाना पड़ेगा. हमारे बाप-दादा ने हमें कोई ऐसा कागज़ नहीं दिया है. हम लखनऊ ने काम करने के लिए बिहार आये हैं. 4 महीने हुए हैं. अब दूसरे जगह जायेंगे. ऐसे में हमारा कोई एक ठिकाना ही नहीं है.शहज़ादी (बंजारा समुदाय से एक महिला)

11 दिसम्बर 2019 को संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया जिसमें पकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से साल 2014 से पहले आये हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन और इसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता दी जायेगी. गृह मंत्री अमित शाह ने ये बयान दिया कि नागरिकता कानून के बाद NRC यानी एक नागरिक रजिस्टर तैयार किया जाएगा. अभी तक केंद्र सरकार की ओर से कोई मसौदा तैयार नहीं हुआ है जो NRC पर ये बता पाए कि जिन लोगों का नाम रजिस्टर में नहीं आएगा उनका क्या किया जाएगा? या, NRC के लिए कौन से कागज़ात चाहिए होंगे.

असम में साल 2019 में NRC की प्रकिया की गयी थी. 31 अगस्त 2019 को प्रकाशित एनआरसी की सूची में 1,906,657 लोगों के नाम नहीं आए थे और जिनमें 5.56 लाख हिंदू एवं 11 लाख मुस्लिम लोग थे. राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार कुल 33,027,661 आवेदकों में से 31,121,004 लोगों के नाम ही शामिल किए गए थे. ग़ौरतलब है कि असम सरकार ने अगस्त 2019 की सूची को सही नहीं माना था. गृह मंत्री अमित शाह ने एक न्यूज़ चैनल में इंटरव्यू देते हुए ये जानकारी दी थी कि NRC के लिए वोटर आईडी और आधार कार्ड को पुख्ता सबूत नहीं माना जाएगा. गृह मंत्री के इस बयान के बाद से ही ये बात कही जाने लगी कि जिन लोगों के पास कोई पुश्तैनी ज़मीन नहीं है वो अपनी नागरिकता कैसे साबित कर पायेंगे?

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असम में जब NRC लागू किया गया तब वहां अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 24 मार्च 1971 के बाद के ज़मीन के कागज़, इलेक्टोरल लिस्ट में नाम, LIC डॉक्यूमेंट, पासपोर्ट, 1951 NRC लिस्ट, जैसे 14 कागज़ातों के ज़रिये नागरिकता साबित की जा सकती थी.

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NRC की प्रक्रिया की बात अगर सिर्फ़ बिहार के परिपेक्ष्य में करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में भूमिहीनों की संख्या 65% है. बिहार में भूमिहीनों की संख्या देश के औसत से अधिक है. बिहार में बंजारों की संख्या 35 लाख के आसपास है. इसी बंजारे समुदाय में से एक व्यक्ति हैं अली. अली मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) के मूल निवासी हैं. वो अलग-अलग मौसम में अलग-अलग प्रदेशों में रहते हैं. दिवाली के बाद हर साल अली और उनके समुदाय के लगभग 25 परिवार पटना आते हैं और नौसा (फुलवारी शरीफ़) के पास बसते हैं. यहां पर वो आर्टिफ़ीशियल फूल बनाने और बेचने का काम करते हैं. अली की मासिक आय लगभग 3000 रूपए होती है जिसमें वो किसी तरह गुज़र बसर करते हैं. कमोबेश यही स्थिति हर बंजारे परिवार की है. अली के पास आधार कार्ड और वोटर आईडी भी मौजूद है लेकिन जब गृह मंत्री ने बयान दिया कि NRC में ये कागज़ात मायने नहीं रखते तो अली की परेशानी बढ़ गयी है. अली कहते हैं-



हम किसी तरह तो अपनी ज़िन्दगी गुज़र बसर कर रहे हैं. हम किसी एक जगह रहते नहीं हैं इसलिए सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिल पाता है. अब हमें कहा जा रहा है कि हम ये साबित करें कि हम हिन्दुस्तानी हैं या नहीं. हमारे पुरखे यहीं दफ़न हुए हैं. हम हिन्दुस्तानी मुसलमान हैं, मर जायेंगे और यहीं की मिट्टी में मिल जायेंगे लेकिन वतन नहीं छोड़ेंगे.अली

लेकिन सवाल ये है कि NRC और CAA को लेकर सरकार ने कोई मसौदा नहीं दिया है और ना ही देश में साल 2019-20 जैसा एंटी CAA प्रोटेस्ट हो रहा है. तो फिर मुस्लिम समुदाय के बीच में NRC पर बातचीत फिर से कैसे शुरू हो गयी है. दरअसल देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बार-बार CAA पर बात रखते हुए कहा है कि

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कोरोना का दौर जैसे ही ख़त्म होगा CAA और NRC पर पूरे देश में काम शुरू होगा.

इसी बयानबाज़ी का असर बिहार के मुस्लिम समुदाय में देखने को मिल रहा है.

बिहार में अधिकांश लोग ऐसे हैं जिनके पास जन्म प्रमाण पत्र मौजूद नहीं है. इस चुनावी बयानबाज़ी के बाद पटना कलेक्टरी में लोग अपने जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का काम करने लगे हैं. पटना कलेक्ट्री में महेश राम लगभग 20 सालों से जन्म प्रमाण पत्र बनवाने का काम कर रहे हैं. महेश राम डेमोक्रेटिक चरखा से बात करने के दौरान बताते हैं-

जिस समय NRC का हल्ला हुआ था उस समय हर दिन हज़ारों की संख्या में लोग जन्म प्रमाण पत्र बनवाते थे. और उसमें से 90% लोग मियां जी ही होते थे. अभी लगभग 15-20 दिन से फिर से वही स्थिति है. सब चुनाव की वजह से हो रहा है. चुनाव के बाद फिर सब भूल जायेंगे.

नसीमा ख़ातून भी अपने जन्म प्रमाण पत्र को बनवाने के लिए 1 हफ्ते से हर दिन कलेक्ट्री आती हैं. जब नसीमा ख़ातून से पूछा जाता है कि वो NRC के ‘डर’ से वो जन्म प्रमाण पत्र क्यों बनवा रही हैं तो उसपर नसीमा कहती हैं-

2 साल से NRC का हल्ला हो रहा है कि लागू करेंगे. अभी फिर से सब कोई कह रहा है कि NRC आने वाला है. अब अगर NRC अचानक किसी दिन लागू हो गया तो फिर क्या करेंगे. हमारे पास तो सिर्फ़ आधार कार्ड और वोटर आईडी ही है जिसे सरकार ने पहले ही कह दिया है कि वो मानेंगे नहीं और इसके अलावा हमारे पास कोई कागज़ नहीं है.

दरअसल यही डर का माहौल पिछले दो सालों से अल्पसंख्यक समुदाय में बना हुआ है. इस डर की वजह जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने बिहार से कदवा (कटिहार) के विधायक डॉ. शकील अहमद खां से बातचीत की. डॉ. शकील अहमद खां ने साल 2020 में जन गण मन यात्रा की थी और पूरे बिहार में एंटी CAA और NRC प्रोटेस्ट को लीड किया था. डॉ. शकील अहमद खां ने अल्पसंख्यक समुदाय में डर की मुद्दे पर कहा

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देखिये, डर का माहौल इस वजह से है क्योंकि देश की जनता को सरकार की बात पर भरोसा नहीं रहा. CAA और NRC  के मुद्दे पर आप सरकार के बयानों को देखिये. कई तरह की बातें बोली गयी हैं जिससे एक ख़ास समुदाय को टारगेट किया गया है. ऐसे भी सरकार के पास रोज़गार जैसे मुद्दों पर बात करने के लिए कुछ बचा नहीं है इसलिए बार-बार CAA का मुद्दा लाया जा रहा है.

पूरे देश में एंटी CAA के कई प्रोटेस्ट हुए और उनमें कई गिरफ्तारियां भी हुईं. शहज़ादी, जो बंजारा समुदाय से आती हैं, उनसे इन प्रोटेस्ट के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया-

हम नहीं जान रहे हैं कोई कोई हमारे हक की लड़ाई कर रहा है. अगर लोग सड़क पर हमारे लिए हैं तो हम भी उनके साथ जुड़ेंगे. ऐसे भी सरकार के लिए हमारा कोई वजूद नहीं है. लेकिन हम उम्मीद करेंगे कि सरकार हमारे नागरिकता पर सवाल उठा कर हमें इस तरह से शर्मिंदा ना करे.

एंटी CAA प्रोटेस्ट के बारे में अधिक जानकारी देते हुए डॉ. शकील अहमद खां कहते हैं

हमारी सीधी मांग है कि इस तरह के कानून को, जो समाज को बांटने का काम करे, उसे रद्द कर देना चाहिए. लेकिन हां, अगर ज़ख्म कुरेदे जायेंगे तो देश में एक व्यापक आंदोलन होगा. शाहीन बाग़ में जिस तरीके से महिलाओं ने आंदोलन का नेतृत्व किया उससे सरकार को ये बात साफ़ समझ में आ गयी कि इस आंदोलन का स्वरुप काफ़ी बड़ा है और सरकार को इसे लेकर झुकना ही पड़ेगा.

CAA और NRC को लेकर सरकार और राईट विंग आइडियोलॉजी की तरफ़ से ये कहा जा रहा है कि इससे हिन्दुस्तान में रहने वाले किसी भी मुसलमान को किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन ग्राउंड में हिन्दुत्ववादी संगठनों में यही बात हो रही है कि CAA हिन्दू राष्ट्र बनाने की ओर एक नया कदम है. हिन्दू महासभा से जुड़े राजेंद्र त्यागी ने डेमोक्रेटिक चरखा से कहा

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हिन्दुओं का कोई देश ही नहीं है. अगर मुसलमानों को धर्म के आधार पर उनका देश मिल सकता है तो हिन्दुओं को क्यों नहीं? अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में जितने अल्पसंख्यक सताए जा रहे हैं उनका मूल राष्ट्र तो भारत ही है. CAA से हम हिन्दुओं को और उनके साथ जैन, बौद्ध, इसाई, पारसी और सिखों को भारत में जगह देंगे.