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एक जिला एक उत्पाद योजना से किसको मिल रहा फ़ायेदा?

संगम बेकरी के मालिक हैं ज़ाहिद एक जिला एक उत्पाद में मिलने वाली वित्तीय मदद के बारे में बताते हुए कहते हैं

    सरकार के द्वारा किसी भी प्रकार का सहयोग नहीं मिलता है. व्यवसाई अपना नफे और नुकसान के लिए खुद ही ज़िम्मेदार होते हैं.

एक जिला एक उत्पाद योजना का मुख्य उद्देश्य स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा देने से है. यह योजना केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक सराहनीय योजना है जिससे युवा को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी और उनका आर्थिक विकास भी हो सकेगा. हम सभी जानते हैं कि भारत अपनी विविधता के लिए जाना जाता है और ऐसी विविधता को ना केवल संरक्षण की आवश्यक है बल्कि इसे देश-दुनिया में एक अलग पहचान दिलाना भी बेहद ज़रूरी है.

केंद्र सरकार ने भारत के 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को मिलाकर इनके जिलों की एक सूची तैयार की है जिसके तहत अब किसी राज्य के जिलो के सभी छोटे-बड़े उद्योगों को प्रोत्साहित कर एक अलग पहचान दिलाना है. इसी के तहत बिहार के भी कई जिलों को सूची में शामिल किया गया है.


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एक उदाहरण से आपको इस योजना का महत्त्व समझाते हैं. शायद ही हमें इस बात की जानकारी होगी कि मखाना का उत्पादन केवल पूरे विश्व में केवल बिहार के कुछ क्षेत्रों में ही होता है और इसकी खेती बेहद परिश्रम से भरी है.

इसके अलावा यह बात भी बहुत लोगों को मालूम नहीं होगी कि जो पान पूरे भारतवर्ष में बहुत प्रसिद्ध है और जो पत्ता पान में इस्तेमाल होता वह दरअसल बिहार के ही मगही पान का पत्ता है.

इसके अलावा जैसे भागलपुर का सिल्क, जर्दालू आम और कतरनी चूड़ा, गया का तिलकुट, लखीसराय का सिंदूर और दाल, जमुई का आलू और टमाटर, मुजफ्फरपुर की शाही लीची बेहद प्रसिद्ध है. तो इसकी पहचान को एक सीमित क्षेत्र तक ना रहकर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का काम इस योजना के तहत सरकार कर रही है.

अब आप समझ गए होंगे की वैसे उद्योग जो केवल अपने क्षेत्र तक सीमित रह गए हैं. उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाकर उनकी एक अलग पहचान बनाने के पीछे एक सफ़ल प्रयास है. पिछले वर्ष हमने देखा कि कोरोना महामारी की वजह से अलग-अलग राज्यों से लोगों को पलायन करना पड़ा और यह पलायन की संख्या छोटी नहीं थी.

सरकार एक जिला एक उत्पाद के माध्यम से रोज़गार की तलाश में होने वाले हर साल के पलायन पर भी अंकुश लगाना चाहती है. इससे युवा अपने क्षेत्र से संबंधित उद्योग के साथ जुड़कर अपने लिए रोज़गार के नए अवसर तलाश पाएंगे.

इस योजना के तहत ना केवल सरकार क्षेत्रीय उद्यम को बढ़ावा देगी बल्कि उसे वित्तीय सहायता भी प्रदान करेगी साथ ही 25 लाख लोगों को रोज़गार के अवसर भी उपलब्ध करवाने का लक्ष्य है.

इस योजना की जो सबसे अच्छी बात है कि इसके तहत युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण भी दिया जाएगा ताकि उन्हें अपने शहरों को छोड़कर रोज़गार के लिए बाहर न जाना पड़े, वह उस तकनीक का इस्तेमाल कर अपने शहर और क्षेत्र में उद्यम की शुरुआत कर सकें.

ख़ासकर बिहार जैसे राज्य में जहां कोई उद्यम या कोई क्षेत्रीय उत्पाद जो उसी क्षेत्र तक सीमित होकर रह जाता है, यह योजना बिहार जैसे राज्यों के लिए बेहद लाभकारी है. केन्द्र सरकार ने एक जिला एक उत्पाद के तहत बिहार के 38 जिलों के उत्पाद को मंज़ूरी दे दी है.

इनमें शामिल है अररिया का मखाना, अरवल की दाल, औरंगाबाद के स्ट्रॉबेरी, बांका का कतरनी चावल, बेगूसराय का मिर्च संबंधी उत्पाद, भागलपुर का जर्दालू आम, भोजपुर की पारंपरिक मिठाई जैसे कोरमा, बक्सर का बतीसा और पापड़ी, दरभंगा का मखाना, पूर्वी चंपारण का लीची संबंधी उत्पाद, गया का शीशम,  गोपालगंज का पपीता, जमुई का कटहल, जहानाबाद की दाल जैसे बेसन और सत्तू, कैमूर का चावल संबंधित उत्पाद जैसे पोहा आदि, कटिहार का मखाना, खगड़िया का केला संबंधी उत्पाद, किशनगंज का अनारस संबंधी उत्पाद, लखीसराय का टमाटर संबंधित उत्पाद, मधेपुरा का आम, मधुबनी का मखाना, मुंगेर का चावल संबंधित उत्पाद जैसे पोहा और मुरमुरा, मुजफ्फरपुर के लींची, नालंदा का आलू, नवादा का पान, पटना का बेकरी प्रोडक्ट उत्पाद, पूर्णिया का मक्का, रोहतास का चावल संबंधित उत्पाद जैसे पोहा और मुरमुरा, सहरसा का मखाना, समस्तीपुर की हल्दी, सारण का आलू संबंधित उत्पाद, शेखपुरा का प्याज़ संबंधित उत्पाद, शिवहर का केला संबंधित उत्पाद, सीतामढ़ी का लींची संबंधित उत्पाद, सिवान का मेंथा(पुदीना), सुपौल का मखाना, वैशाली का शहद, पश्चिमी चंपारण का अनानास संबंधित उत्पाद.

व्यापारियों को नहीं मिल रही कोई सहायता

वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट कितनी सफ़ल योजना है और इसके द्वारा स्थानीय दुकानदारों को सरकार द्वारा कितना सहयोग दिया जा रहा है, यह जानने के लिए हमने वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट के तहत पटना के बेकरी प्रोडक्ट के कुछ दुकानदारों से बात करने की कोशिश की.मदीना बेकरी के मालिक ने वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट के ऊपर बात करते हुए बताया कि

    सरकार “वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट” के तहत प्रोत्साहित करने के लिए लोन तो देती है. लेकिन उस लोन का इंटरेस्ट एक मध्यमवर्गीय परिवार के द्वारा चुका पाना बेहद मुश्किल हो जाता है.

वही ज़ीनत बेकरी के मालिक ने हमें बताया कि

  सरकार इस तरह के वादों से केवल अपने और अपने लिए काम करने वाले अधिकारियों को सुविधाएं देती है.

सरकार के पास उपलब्ध नहीं है डेटा

हमने जब इस विषय पर बिहार सरकार के उद्योग विभाग के विशेष सचिव दिलीप कुमार से बात की तो उन्होंने कहा की

   सरकार ने कितने लोगों की सहायता की है, इसका डाटा तो हमारे पास नहीं है और इसके लिए हमें अलग से कोई फंड भी सरकार की ओर से नहीं मिला.

वन डिस्टिक वन प्रोडक्ट सरकार के द्वारा चलाई गई एक बेहद सराहनीय योजना है लेकिन बिहार के अधिकारी जब यह कहें कि हमारे पास ना तो डाटा है और ना फंड तब यह प्रश्न उठना बेहद लाज़मी है कि सरकार अगर इस योजना के तहत लोगों की मदद भी करना चाहे तब वह पैसे कहां से लाएगी अगर उसके पास फंड ना हो तो?

सही मायनों में यह योजना तभी सफ़ल है जब केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार और राज्य सरकार से लेकर उनके निचले पदाधिकारियों तक सभी सक्रिय रूप से इसे सफ़ल बनाने के ऊपर कार्य करें.

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