साल 2014 में केंद्र सरकार ने ‘नमामि गंगे’ नाम से अपनी एक महत्वकांक्षी योजना की शुरुआत की. इसका मकसद गंगा में फैल रहे प्रदूषण को ख़त्म कर उसे स्वच्छ बनाना था. शुरुआत में इसके लिए 20 हज़ार करोड़ रूपए ख़र्च करने की बात कही गयी थी और बाद में इसे वर्ल्ड बैंक की ओर से भी राशि दी गयी थी. इसके लिए सबसे अधिक ध्यान गंगा में शहरों के नाले से गिरने वाले कचरे को रोकने पर था.
लेकिन ख़राब मिशनरी की वजह से नमामि गंगे प्रोजेक्ट का मकसद पूरा ही नहीं हो सका. यहां तक की बिहार सरकार को आवंटित की जा रही राशि भी लापरवाही की वजह से ख़र्च ही नहीं की गयी. हाल में आई नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में बिहार सरकार की इस कार्यशैली पर आलोचना भी की गयी है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने अपनी रिपोर्ट में ये बताया कि बिहार सरकार ने 684 करोड़ रूपए ख़र्च ही नहीं किये.
रिपोर्ट के अनुसार 2016-17 से 2019-20 के बीच हर साल सिर्फ़ 16% से लेकर 50% तक राशि का इस्तेमाल किया गया है. इसके साथ ही राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने पिछली किश्तों के उपयोग को सुनिश्चित किए बिना अगली किश्तों के लिए धन जारी किया.
नमामि गंगे पर फ़ेल हो रहे सरकारी तंत्र पर डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए जल स्रोत के विशेषज्ञ एमपी सिन्हा बताते हैं-
गंगा को साफ़ करने की बात जो सरकार कह रही है वो तो पैसा ख़र्च करने से मुमकिन ही नहीं है. सरकार बिना किसी प्लानिंग के बस राशि आवंटित कर रही है और परिणाम खोज रही है. सरकार को सबसे पहले ये इन्तेजाम करना चाहिए कि वो कैसे गन्दा पानी गंगा में बहने से रोके.
ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार में सीवरेज के बुनियादी ढांचे की कमी की वजह से 2016-17 के दौरान पानी में कॉलीफॉर्म (टीसी) और फेकल कॉलीफॉर्म (एफसी) की अधिकतम मात्रा 9000 एमपीएन/100 एमएल और 3100 एमपीएन/100 एमएल के स्तर तक पायी गई थी. 2019-20 में यह बढ़कर 1,60,000 एमपीएन/100 एमएल (टीसी और एफसी दोनों के लिए) तक बढ़ी गई है. यह इस दौरान पानी की गुणवत्ता में गिरावट है.
नमामि गंगा प्रोजेक्ट के लिए गंगा के किनारे बसे शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट की बात कही गयी थी जिससे शहर का गन्दा पानी गंगा में ना बहे. लेकिन बिहार में सीवेज ट्रीटमेंट का काम भी ठीक से नहीं किया गया है. पटना शहर में कुल 4 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है लेकिन ख़ुद पटना नगर निगम की बुकलेट के अनुसार ये दयनीय हालत में हैं. इसमें से कुछ ऑपरेशनल भी नहीं हैं. केंद्र सरकार उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में 63 सीवरेज मैनेजमेंट प्रोजेक्ट चला रही है. लेकिन अभी भी पटना का सीवेज सीधा गंगा में बहता है.
बिहार में नमामि गंगे प्रोजेक्ट में पटना में 372.755 करोड़ की पहाड़ी सीवरेज जोन फाइव परियोजना, 277.42 करोड़ की करमलीचक सीवरेज नेटवर्क, 184.86 करोड़ की पहाड़ी सीवरेज जोन चार और 191.62 करोड़ की पहाड़ी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट पर काम चल रहा है. इसके साथ ही मोकामा में 53.81 करोड़ की, बाढ़ शहर में 58.27 करोड़ की, सुल्तानगंज नगर परिषद में 60.22 करोड़ की तथा नवगछिया नगर पंचायत में 60.79 करोड़ की परियोजनाओं के लिए राशि मंज़ूर की जा चुकी है.
पटना में सीवर लाइन को दुरुस्त करने के नाम पर हर दिन कहीं ना कहीं सड़क खोदी जाती है. लेकिन पिछले 8 सालों से पटना का सीवेज सिस्टम अभी तक दुरुस्त नहीं हुआ है. काम कराने की जिम्मेदारी बुडको यानि बिहार अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड पर है. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में बुडको के द्वारा डेडलाइन का पालन नहीं करने की भी बात कही गयी है.
गंगा पर सरकार की उदासीनता को बताते हुए एमपी सिन्हा आगे बताते हैं
हमलोगों ने केवल प्रकृति का दोहन किया है उसे संजो कर नहीं रखा. एक तरफ़ सरकार नमामि गंगे जैसी परियोजना लाती है जिसमें वो गंगा को स्वच्छ करने की बात करती है लेकिन वहीं दूसरी ओर बीच गंगा में पुल का निर्माण करने गंगा को ख़त्म करने का काम भी कर रही है.
गंगा को स्वच्छ बनाने और उसपर रिसर्च करने के लिए पटना में गंगा रिसर्च सेंटर बनाया गया. लेकिन 336 करोड़ से निर्मित ये सेंटर अभी तक खुला ही नहीं है. ये राशि भी नमामि गंगे प्रोजेक्ट से ही ख़र्च की गयी थी. साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा रिसर्च सेंटर का लोकार्पण किया था लेकिन अभी तक ये बंद है. उस समय भी नमामि गंगे प्रोजेक्ट से 16 घाट, 3 भवन और एक शवदाह गृह का लोकार्पण किया गया था.
इस बारे में बात करने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने बुडको मैनेजिंग डायरेक्टर धर्मेंद्र सिंह से बात की. उन्होंने बताया
नमामि गंगे का कार्य तेज़ी से बढ़ रहा है. जल्द ही बिहार का सीवर ट्रीटमेंट कर दिया जाएगा और स्वच्छ गंगा का सपना पूरा होगा.
बिहार में गंगा को लेकर कई चुनावी वादे और कई सौ करोड़ रूपए की राशि आवंटित की जा चुकी है. ऐसे में गंगा प्रदूषित रहती है तो सरकार की परियोजना पर सवालिया निशान लगता है.