भिखारी ठाकुर जिन्हें भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है, उनके नाटकों में भी बिहार से पलायन को दिखाया जाता है। बिदेसिया नाटक में जहां उसका मुख्य पात्र ‘परदेस’ चला जाता है तो वहीँ दूसरी ओर गबरघिचोर नाटक में उसके पिता उसे ‘परदेस’ ले जाना चाहता है।
देश के प्राय: सभी राज्यों में जहां पर किसी भी तरह के कार्य होते हैं, वहां अमूमन बिहार से कोई न कोई काम करता हुआ मिल जाएगा। वह काम करने वाला किसी भी लेवल पर हो सकता है। चाहे मजदूर हो या फिर ऑफिसर, एक बिहारी का होना लाजिमी है। लेकिन यही तस्वीर बिहार में नहीं दिखती यानि बिहार में हर राज्य के लोग काम करते हुए नहीं मिलेंगे और अगर कोई मिलेगा भी तो या वह किसी सरकारी नौकरी में होगा या फिर ट्रांसफर होने के दौरान कार्य करता हुआ मिलेगा। बिहार के बाहर बिहारियों के मिलने का एक ही कारण है और वह कारण है पलायन। यह ऐसा दंश है जो साल दर साल बिहारियों को अपने राज्य को छोड़ने के लिए मजबूर कर रहा है। सरकारें भी आती जाती रहती हैं, सुधार के तमाम दावे करती हैं लेकिन इस दंश का अबतक कोई इलाज नहीं हुआ है। लोग पलायन करने को मजबूर हैं और कर भी रहे हैं।

पिछले दो सालों में जब जब कोरोना ने पूरी दुनिया को परेशान किया तो हर स्तर पर लोगों को बचाने के लिए लॉकडाउन लगाना पड़ा। बड़ी संख्या में लोग अपने-अपने घरों की तरफ रवाना हुए। सबसे ज्यादा तकलीफ वैसे बिहारियों को हुई जो अपने घर से बाहर केवल रोज़गार तलाश में गए हुए थे।
लॉकडाउन के बाद मज़दूरों की बड़ी संख्या दूर राज्यों से वापस बिहार आने लगी थी। 14 सितंबर 2020 को लोकसभा में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रम मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने ये बताया था कि अलग-अलग राज्यों से बिहार वापस लौटने वाले मज़दूरों की संख्या 15,00,612 (पंद्रह लाख छह सौ बारह) थी।
पिछले करीब 20 सालों से मुंबई में पलायन कर के गए राजेश भारती भी वैसे ही बिहारियों में से हैं, जो पलायन के दर्द को झेल रहे हैं। मुंबई में प्रवासी बिहारियों के लिए काम करने वाले राजेश कहते हैं, अपने राज्य से बाहर लोगों को तकलीफ ना हो, इसके लिए मैंने बहुत मेहनत कर के यहां के लोगों को एक साथ जोड़ा है। मूलरूप से मुजफ्फरपुर जिले के बरूराज थाना अंतर्गत नरियर पानापुर इलाके निवासी और अभी मुंबई के खारघर में रहने वाले राजेश बताते हैं, जीवन में सन 2000 को कभी नहीं भूल पाउंगा जब मुझे रोजगार की तलाश में अपने शहर को छोड़ना पड़ा था। तब से लेकर अब तक यहीं पर हूं।

मुंबई में प्रवासी बिहारियों के लिए बिहारी मुंबईकर नाम से एनजीओ चलाने वाले राजेश बताते हैं, उनका संगठन मुंबई के साथ ही देश के दूसरे हिस्सों में भी वैसे बिहारियों की मदद करता है जो रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों में जाते हैं और उनको मदद की जरूरत होती है। वह कहते हैं, विभिन्न स्तरों पर सरकारी और गैर सरकारी माध्यमों से मिली जानकारी के अनुसार बिहार से कम से कम 40 लाख लोग रोजगार के नाम पर दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं और साल दर साल इसमें वृद्धि ही हो रही है। ऐसे में यह आंकड़ा सरकार को आइना दिखाने के लिए काफी है जो यह दावा करती है कि सरकार डेवलपमेंट के लिए कार्य करती है।
राजेश बताते हैं, पलायन को रोकने के लिए शायद सरकार के पास कोई ठोस नीति नहीं है और अगर नीति है भी तो इसके बेहतर तरीके से संधारण में नियत की कमी है। सरकार आम लोगों के लिए योजनाएं तैयार कर सकती है लेकिन धरातल पर उन योजनाओं को उतारने के लिए अफसरशाही ही जिम्मेवार होती है। अगर सरकारी योजनाओं का लाभ लोगों को मिले, रोजगार का सृजन हो तो पलायन पर कुछ रोक तो लगाई ही जा सकती है।

साल 2021 में नीति आयोग की तरफ से जारी रिपोर्ट भी कई आंकड़ों पर बिहार की गिनती फिसड्डी राज्यों में कर चुका है। आयोग द्वारा पिछले साल नवंबर माह में जारी रिपोर्ट में शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसे कई और अहम बिंदुओं पर बिहार को सबसे निचले पायदान पर स्थान मिला था। जिसे लेकर राज्य के राजनैतिक गलियारों में खूब बवाल भी मचा हुआ था।
एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर सह सोशियो एकोनॉमिक एनालिस्ट अजय झा कहते हैं, इस तस्वीर में बदलाव तभी हो सकती है जब इसके लिए बेहतर तरीके से पहल की जाए। वह कहते हैं पलायन लंबे वक्त से हो रहा है और यह एक तरह से अभी तक रूका नहीं है। हालांकि सरकारी डाटा इसमें कुछ सुधार की बात कहता है। वह कहते हैं, अगर पलायन को रोकना है तो सबसे अहम इंडस्ट्री, इंपोर्ट फैक्टर है। हालांकि केंद्र व राज्य सरकार ने कई प्लान भी तैयार किए हैं लेकिन पलायन में कमी नहीं है। यह भी है कि पलायन कई तरह के हैं। लेकिन सबसे ज्यादा पलायन कृषि क्षेत्र से है। अगर कृषि के साथ मैन्यूफैक्चरिंग व इंपोर्ट सेक्शन में सरकार ध्यान दे तो बेहतर होगा। वह यह भी कहते हैं, सबसे ज्यादा मैनपावर अगर किसी क्षेत्र में लगा है तो वह कृषि क्षेत्र ही है। हालांकि नीतीश सरकार के आने के बाद कृषि में सुधार तो दिख रहा है और स्टेट जीडीपी में थोडा बूस्ट भी दिख रहा है। इसे बेहतर कह सकते हैं।

जब लॉकडाउन के दौरान बिहार के कई लोग राज्य वापस आये थे तो उन्हें ये उम्मीद थी कि सरकार उनके लिए रोज़गार की व्यवस्था करेगा। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि बिहार के सभी मज़दूर वापस आ जायें, उन्हें बिहार में ही काम दिया जाएगा और साथ ही अब उन्हें बाहर जाने की ज़रूरत भी नहीं पड़ेगी। रोज़गार को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जून 2020 में 50 हज़ार करोड़ रूपए ‘प्रधानमंत्री ग़रीब रोज़गार अभियान’ के तहत 3 महीने के लिए रोज़गार देने के लिए शुरू किया गया था। इस योजना में 6 राज्यों का चयन किया गया था जिसमें बिहार भी एक राज्य था। बिहार के 32 जिले इस योजना के तहत आये थे। प्रधानमंत्री मोदी ने 20 जून को इस योजना की घोषणा करते हुए वीडियो कांफ्रेंसिंग के ज़रिये कहा था कि जो मज़दूर अपने गांव वापस लौटे हैं उन्हें उन्हीं के गांव में काम दिया जाएगा। इस योजना में से अभी तक 39,292 करोड़ रूपए ही ख़र्च किये गए हैं।

बेगूसराय के सुनील कुमार सूरत (गुजरात) में दैनिक मज़दूर के तौर पर काम करते थे। अब वहां काम नहीं रहने के कारण वो वापस अपने गांव लौट आये हैं। डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए सुनील कुमार बताते हैं कि
हम लोग बाहर जाना नहीं चाहते हैं, सरकार हमें बाहर भेजने के लिए मजबूर कर देती है। अगर मेरे पास बेगूसराय या बिहार में काम रहेगा तो हम बाहर क्यों जायेंगे? हमको थोड़ी अच्छा लगता है घर परिवार से दूर रहकर काम करना। लेकिन मजबूरी है. उसके ऊपर से पिछले साल भी वापस गांव लौटना पड़ा था उसके बाद 4 महीने किसी भी तरह का काम नहीं मिला। कोरोना में स्थिति सामान्य हो रही थी कि कंपनी फिर से बंद हो गयी। अब बड़े बाबू साहब लोग तो घर से काम करते हैं लेकिन हमलोग को तो घर से भी काम करने का कोई रास्ता नहीं है और बिहार सरकार हमें काम देती है नहीं।
प्रो अजय कहते हैं, दिल्ली, पंजाब में जाने वाले बिहारी प्रवासी कृषि व मैन्यूफैक्चरिंग से जुडे उद्योगों में अपना पसीना बहाते हैं। अगर कॉटेज इंडस्ट्री को बिहार में बेहतर तरीके से सरकार प्लांट कर सके तो यहां पर भी बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। झारखंड बनने के बाद भी राज्य का दक्षिणी हिस्सा मैन्यूफैक्चरिंग हब के रूप में विकसित किया जा सकता है, क्योंकि इस हिस्से में पहले से भी इस प्वाइंट पर अवसर मिलता रहा है। वह कहते हैं, अपने घर से दूर जाकर कमाना कोई नहीं चाहता है लेकिन जीवन गुजारने के लिए कुछ तो करना ही होगा। अगर सरकार ईमानदारी से प्रयास करे तो काफी बदलाव देखने को मिल सकता है।

बिहार में बहार है का दावा करने वाली सरकार इस बात पर ध्यान नहीं देती कि अधिकांश बिहार आज के समय में बिहार से बाहर रहने के लिए मजबूर क्यों हैं। अगर सरकार बिहार में रोज़गार का सृजन करे और उद्योग के साथ-साथ ग्रामीण बिहार में माइक्रो स्तर पर रोज़गार बढ़ाए तो पलायन को रोका जा सकता है।