तो सदियों से चली आ रही मान्यताओं के अनुसार सभी तरह के तीज त्योहार महिलाएं ही करती हैं जिनमें कभी वह अपने सुहाग के लिए तो कभी घर-परिवार और बच्चों की लंबी आयु के लिए प्राथना करती हैं. लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार यह देखा गया है कि महिलाएं अपने पतियों के मुकाबले 9 महीने ज्यादा जिंदा रहती हैं. बता दें कि हाल ही में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआई) की एक रिपोर्ट आई है जिसके अनुसार बिहार में औरतें मर्दों के मुकाबले 9 महीने ज्यादा जिंदा रहती हैं. यानी महिलाओं की औसतन आयु अधिक है. लेकिन इसके पीछे का साइंस क्या है, जानिये इस रिपोर्ट में.
देश भर में पुरुषों और महिलाओं की मृत्यु दर पर आधारित इस रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में महिलाओं की औसत उम्र 69.6 वर्ष है जबकि पुरुषों की औसत उम्र 68.8 वर्ष है. जाहिर है इस डेटा का तात्पर्य है कि बिहार राज्य में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले 9 महीने अधिक जीवित रहती हैं. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 2014-18 की तुलना में 2015-19 में औसत आयु में 37 दिन की वृद्धि हुई है. सोचनीय यह है कि इसका कारण क्या हो सकता है?
इसके पीछे एक कारण यह हो सकता है कि महिलाओं की प्रतिरोधक क्षमता धीरे-धीरे कमजोर होती है. दरअसल, पुरुषों और महिलाओं की प्रतिरोधक क्षमताओं के दो प्रमुख घटक (टी कोशिकाएं और बी कोशिकाएं) में अंतर होता है. ‘टी’ कोशिकाओं का काम होता है शरीर का संक्रमण से संरक्षण करना जबकि ‘बी’ कोशिकाएं शरीर के लिए एंटीबॉडीज़ रिलीज करती है. बीबीसी की एक रिपोर्ट की मानें तो ज्यादातर टी और बी कोशिकाओं की पुरुषों में तेजी से गिरावट देखी गई है. वहीं महिलाओं में उम्र के साथ ये कोशिकाएं तेजी से बढ़ती हैं. जबकि पुरुषों में यह रफ्तार महिलाओं की अपेक्षा कम देखी गई है.
वहीं जब इस डेटा के संदर्भ में हमने पीएमसीएच की डॉक्टर नीना अग्रवाल से बात की तो उन्होंने कहा कि महिलाएं स्वभाव से भी मेहनती होती हैं. दूसरा पूरे घर के काम-काज का बोझ महिलाओं पर ही रहता है तो इस तरह से वह पुरुषों की अपेक्षा अधिक काम करती हैं (कुछ एक मामले को छोड़ दें), जिससे आयु बढ़ता है. मानसिक पक्षों की बात रखते हुए उन्होंने कहा कि यूं भी महिलाओं को बचपन से ऐसे माहौल में रखा जाता है कि उन्हें हर तरह के वातावरण में शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आप को ढालने की क्षमता होती है. इस तरह उन्हें तनाव की परेशानी कम होती है.
उन्होंने बताया कि बिहार की महिलाएं किसी प्रकार के नशीले पदार्थ जैसे तंबाकू, सिगरेट, शराब से दूर रहती हैं साथ में उनके खान-पान में तीसी शामिल होता है. इसमें कैल्शियम होता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं. वहीं कोशिकाएं के बारे में बताया कि इम्यूनिटी से संबंधित शरीर में जितने भी सेल्स होते हैं वह महिलाओं में हाइपर एक्टिव होते हैं.
कथक नृत्यांगना, संगीत शिक्षायतन की संस्थापक और पीडब्लूसी की असिस्टेंट प्रोफेसर यामिनी शर्मा ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि अब महिलाएं खुद के बारे में सोचने लगी हैं. परिधान और लुक के साथ-साथ शरीर पर भी ध्यान देने लगी हैं. कहा,
मेरे डांस अकेडमी में ज्यादा से ज्यादा महिलाएं खास कर के जो माएं हैं वह आने लगी हैं. यही नहीं योगा क्लासेज में भी ज्यादा से ज्यादा महिलाएं आने लगी हैं.
यामिनी शर्मा आगे कहती हैं कि औरतों के सजग होने का एक कारण कोरोना पेंडमीक भी है. उन्होंने कहा कि वैसे भी जिस तरह से लड़कियों की परवरिश होती है उनमें सहनशक्ति बचपन से ही बोया जाता है.
वहीं पेशे से बिजनेस करने वाले और फ्रीलांसर पत्रकार पंकज पटवारी का भी कहना है कि महिलाओं में सहनशक्ति एक बड़ा फैक्टर होता है. उन्होंने कहा, “पौराणिक काल में भी कहा जाता है नारी शक्ति और शक्ति है तो सहनशक्ति भी है.”
वहीं जब हमने उनसे कहा कि क्या आजकल की महिलाएं अपने लिए समय निकाल कर खुद को डांस या योगा जैसे फिटनेस आईडिया की तरफ ले जा रही हैं तो उन्होंने कहा कि देखिये आज के समय में हर हाथ में मोबाइल है, हर हाथ में मोबाइल मतलब हर हाथ में दुनिया. आजकल सोशल मीडिया पर महिलाओं के योग और ज़ुम्बा या डांस से संबंधित कई वीडियो आते रहते हैं. जब आम महिलाएं इन्हें देखती हैं तो उन्हें लगता है कि क्यों न वह भी इन सब का पार्ट बनें. इस तरह अब बहुत सी घरेलू और कामकाजी महिला भी फिटनेस फ्रीक होती जा रही हैं. इसके आलवा महिलाएं अपने खानपान को लेकर भी पहले से कई ज्यादा जागरूक हुई हैं.
वहीं हमने एक आम घरेलू महिला आशा सिन्हा उनके दिनचर्या के बारे में जानने की कोशिश कि तो उन्होंने बताया कि वह सुबह उठते ही सबसे पहले टहलने जाती हैं. फिर दिन की शुरुआत वह ग्रीन टी से करती हैं. चीनी से सख्त परहेज करती हैं और खाने में दलिया, हरी सब्जियां और फल का प्रयोग जरूर करती हैं. बता दें कि आशा जी 57 साल की हैं और कहती हैं कि महिलाएं जब खुद का ही ध्यान नहीं रखेंगी तो घर परिवार का ध्यान कैसे रख पाएंगी. उन्होंने हमें सेल्फ केयर की जरूरत बतलाते हुए कहा कि अपने शरीर के प्रति खुद ही सतर्क होने की जरूरत है. साथ ही जरूरत है कि खुद को मानसिक तनाव से दूर रखें. इसके लिए महिलाओं को योगा करना चाहिए, संगीत सुनना चाहिए या कोई अच्छी किताब पढ़नी चाहिए. उन्होंने बताया कि वह अपने घर में पौधे लगाती हैं और उनको पानी देना, उनके साथ समय बिताना उनकी रूटीन में शामिल है.
जाहिर सी बात है कि औरतों की आयु में बढ़ोतरी होना महज एक इत्तफ़ाक या कोई वरदान नहीं है बल्कि इसके पीछे कई बायोलॉजिकल फैक्ट्स हैं और साथ ही महिलाओं की सहनशक्ति भी है. बात बस इतनी सी है कि आप अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं, अपने खान-पान में सुधार लाते हैं और साथ ही हर प्रकार के तनाव से दूरी बनाए रखते हैं तो आप भी अधिक समय तक जीवित रह सकते हैं.