मेरे पिता राजमिस्त्री का काम करते हैं. हम बहुत मेहनत से पढ़ें. पोस्ट ग्रेजुएट हैं. दो बार CTET क्वालीफाई किये हैं और STET पास किये हैं. बी.एड की पढ़ाई किये हैं. लेकिन आज तक मेरी नियुक्ति कही नहीं हुई है. अब मेरी उम्र 30 साल से ज़्यादा हो चुकी है और लगता है मेरा इतना पढ़ना बेकार ही था.सुजीत कुमार
देश भर में बेरोज़गारी बढ़ते जा रही है. साल 2014 और साल 2019 में हुए लोकसभा चुनावों में भी बेरोज़गारी पर कई वादे किये गए. साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनावों में विपक्ष में राष्ट्रीय जनता दल के मुख्यमंत्री उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने 10 लाख रोज़गार का वादा किया तो वहीं सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड और बीजेपी ने 19 लाख रोज़गार का वादा किया था. हालांकि बिहार में रोज़गार के ऊपर किया गया वादा हकीकत से कोसो दूर नज़र आ रहा है. बेरोज़गारी में बिहार देश में छठे नंबर पर है. CMIE की रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण बिहार में बेरोज़गारी दर 12.9% और शहरी क्षेत्र में बेरोज़गारी दर 16.6% है.
बिहार में बेरोज़गारी की मुख्य वजह ज़मानों से लंबित भर्तियां भी हैं. बिहार में अभी तक BSSC 2014, शिक्षक भर्तियां 2019, ललित कला शिक्षक भर्ती 2013, सांख्यिकी स्वयंसेवक भर्तियां 2013, अनियोजित कार्यपालक सहायक समेत कई भर्तियां सालों से लंबित चल रही हैं. जिसकी वजह से कई युवाओं का जीवन अधर में लटका हुआ है.
बिहार में साल 2015 से शिक्षकों की कोई नियुक्ति ही नहीं हुई है. साल 2019 में STET (स्टेट टीचर्स एलेजिबिलिटी टेस्ट) का विज्ञापन दिया गया था. विज्ञापन 37,440 रिक्तियों पर निकाला गया था. इसकी परीक्षा जनवरी 2020 में आयोजित की गयी. लेकिन इस परीक्षा में हुई धांधली की वजह से पूरी परीक्षा ही रद्द कर दी गयी. उसके बाद फिर से ये परीक्षा साल 2020 में ही सितंबर के महीने में आयोजित की गयी. लेकिन इस बार इस परीक्षा को बिहार बोर्ड ने नहीं बल्कि बेलट्रोन नाम की एक प्राइवेट कंपनी ने TCS के साथ मिलकर ऑनलाइन आयोजित किया.
इस परीक्षा का परिणाम साल 2021 में जारी किया गया. इसमें 30,675 अभ्यर्थी पास हुए. STET के नतीजे में दो तरह से परिणाम घोषित हुए. एक मेरिट और दूसरा नॉन-मेरिट. कई अभ्यर्थी जो न्यूनतम अंक से ज़्यादा लेकर आये थे उन्हें नॉन-मेरिट में जगह दी गयी और जो ज़्यादा अंक लेकर आये थे उन्हें मेरिट लिस्ट में जगह दी गयी. इसकी वजह से बिहार में शिक्षक भर्ती को लेकर एक लंबा आंदोलन चला. नॉन मेरिट में आये अभ्यर्थियों का तर्क था कि जब अभी सीट ख़ाली है तो उन्हें भी इसमें नियुक्त किया जाए. जिसके बाद शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मेरिट और नॉन-मेरिट के रिजल्ट को बराबर घोषित कर दिया.
इसकी वजह से मेरिट में आने वाले छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि अब अकादमिक अंकों को भी देखकर नियुक्ति की जा रही है. सुजीत एक मेरिट लिस्ट में आये STET के अभ्यर्थी हैं. वो बताते हैं
मेरा मेट्रिक 2006 में हुआ है उस समय 700 अंकों की परीक्षा ली जाती थी. अब ये परीक्षा 500 अंकों की ली जाती है. हम लोग के समय ऑब्जेक्टिव सवाल नहीं रहते थे अब आधे सवाल ऑब्जेक्टिव रहते हैं. इसके साथ ही अलग-अलग बोर्ड का मार्किंग पैटर्न अलग है. इसको चयन प्रक्रिया का आधार कैसे बनाया जा सकता है?
STET के ही एक अभ्यर्थी हैं अनिल कुमार, उन्होंने प्रदर्शन के दौरान आत्मदाह करने की कोशिश की थी. वो बताते हैं
सरकार गोल-गोल घुमाने का काम कर रही है. जब हम शिक्षा मंत्री के पास अपनी बात रखते हैं तो वो धमकी के लहज़े में बात करते हैं. बिहार सरकार संवैधानिक तरीके से काम ही नहीं कर रही है. हम दो महीने से प्रदर्शन के लिए इजाज़त का पत्र दिए हुए हैं लेकिन हम लोग को इजाज़त नहीं मिल रही है. अगर प्रदर्शन करते हैं तो पुलिस लाठीचार्ज करती है. मेरे पास और कोई रास्ता ही नहीं है सिवाए आत्मदाह करने के. मेरी बस ये मांग है कि सरकार ने जो विज्ञापन निकाला था उसका पालन करे. साथ ही जितने भी दोषी हैं उन्हें बर्खास्त किया जाए, विधानसभा में श्वेत पत्र लाया जाए और साथ ही जितने भी अभ्यर्थी का 3 साल बर्बाद हुआ है उन्हें मुआवज़ा दिया जाए.
लेकिन बिहार में STET की ही भर्ती में गड़बड़ी नहीं हुई है. Bihar Staff Service Commission (BSSC) ने साल 2014 में कई पदों पर भर्ती निकाली थी जिसका रिजल्ट साल 2021 में दिया गया लेकिन आज तक इसमें भी नियुक्ति नहीं हुई है. लगभग 8 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी इसके अभ्यर्थी ख़ाली हाथ हैं. इतने लंबे समय नियुक्ति लंबित रहने की वजह से सबसे अधिक दिक्कत लोहार समुदाय को हो रही है. दरअसल बिहार में लोहार समुदाय साल 2014 के समय EBC यानी अत्यंत पिछड़े वर्ग के एनेक्सचर 1 में आती थी लेकिन साल 2016 में अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में रखा गया. EBC में फॉर्म भरे अभ्यर्थी का आज के समय में आरक्षण की श्रेणी ही बदल चुकी है.
इसकी वजह से BSSC कई लोहार समुदाय के अभ्यर्थी का चयन ही नहीं कर रहा है. दरअसल OBC की श्रेणी में आये अभ्यर्थी को NCL यानी Non Creamy Layer सर्टिफिकेट देना होता है. लेकिन अब श्रेणी बदलने की वजह से कई छात्र NCL नहीं दे सकते और विभाग उनसे NCL की मांग कर रहा है.
सूरज कुमार के साथ भी यही समस्या हो रही है. सूरज कुमार बताते हैं
सबसे पहले हम लोग लगभग 7 साल परीक्षा के परिणाम का इंतज़ार किये. उसके बाद जब साल 2021 में परिणाम आया तो काउन्सिलिंग की तिथि अचानक घोषित कर दी गयी. 14 दिसंबर से लेकर 24 दिसंबर तक काउन्सिलिंग की तिथि रखी गयी. इसके बाद 7 दिसंबर को एक और नोटिस आया कि आप साल 2014 का NCL लेकर काउन्सिलिंग में आइये. हम लोग इसको लेकर कई बार विभाग गए लेकिन कोई जवाब नहीं मिल और हमलोग को तत्काल जवाब चाहिए था नहीं तो हमलोग का पूरा जीवन बर्बाद हो जाता. 13 दिसंबर को हम लोग प्रदर्शन किये लेकिन उसका भी कोई नतीजा नहीं आया. उसके बाद 21 दिसंबर को हमलोगों ने हाईकोर्ट में याचिका दाख़िल की. अभी उसपर सुनवाई जारी है.
लोहार समुदाय के अलावा OBC समुदाय के कई छात्रों को NCL की वजह से समस्या हो रही है.
बिहार में साल 2013 में बिहार सांख्यिकी तंत्र विकास अभिकरण योजना एवं विकास विभाग की ओर से सांख्यिकी स्वयंसेवकों का पद पर नियुक्ति का पत्र जारी हुआ था. इनका काम स्थनीय स्तर पर कई तरह के सांख्यिकी आंकड़ें इकठ्ठा करना था. उसके बाद सांख्यिकी स्वयंसेवकों की नियुक्ति समय पर हुई लेकिन इनका मानदेय काफ़ी दिन तक बकाया रहा. इसके ख़िलाफ़ साल 2015 में समस्तीपुर में चुनावी रैली के दौरान सांख्यिकी स्वयंसेवकों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बकाया राशि चुकाने की मांग रखी. लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बात सुनने की बजाय उन्हें धमकी ही दे डाली. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धमकी भरे लहजे में कहा, ‘ई क्या है जी मांग पूरी करो, मांग पूरी करो. चुपचाप ठंडा होकर सुनो. हल्ला किया तो सड़क पर ला दूंगा. तुम लोगों के पैनल को डिजॉल्व करने का चिट्ठी आया था, हम ही साइन नहीं किए हैं. हल्ला करोगे तो जाकर साइन कर देंगे.’
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने और कोई वादा पूरा किया हो या नहीं लेकिन अपना ‘सड़क पर ला देने’ वादा निभाया और उसके बाद जल्द ही लगभग 73 हज़ार सांख्यिकी स्वयंसेवकों को अचानक हटा दिया गया और आज तक उनकी फिर से नियुक्ति नहीं की गयी.
बिहार में इतने दिनों से लंबित भर्तियों के मुद्दे को लेकर पालीगंज (पटना) से CPI-ML विधायक संदीप सौरभ ने छात्रों के साथ 17 फरवरी को एक बैठक भी की. संदीप सौरभ ने इस बैठक के दौरान कहा
बतौर विधायक हमारा दायित्व है कि विधानसभा में ये सवाल पूछें. हमलोगों ने बेरोज़गारी का मुद्दा पहले भी उठाया है और आगे भी उठाते रहेंगे. सरकार को सामने आकर ये जवाब देना चाहिए कि वो युवाओं के साथ ऐसा क्यों कर रही है? ना इन युवाओं को प्रदर्शन करने की इजाज़त है और ना अपनी मांग रखने की. शिक्षा मंत्री और कर्मचारी चयन आयोग जवाब नहीं युवाओं के सवालों का जवाब नहीं देते हैं. ऐसे में बिहार के युवाओं का जीवन बर्बाद होने की कगार पर है. इसके लिए हमलोग जल्द ही एक बड़े आंदोलन की ओर बढ़ेंगे.
बिहार में जब युवाओं को सम्मानजनक रोज़गार तक मुहैया नहीं हो पा रहा है तो फिर बिहार में किस बात के विकास का ढिंढोरा सरकार पीटती है ये समझ से बाहर है.