क्या बिहार सरकार कभी सरकार स्कूल को डिजिटल शिक्षा से जोड़ पाएगी?

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आमिर अब्बास
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क्या बिहार सरकार कभी सरकार स्कूल को डिजिटल शिक्षा से जोड़ पाएगी?
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साल 2020 में जब कोरोना पूरे देश में फैलना शुरू हुआ तो किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि ये कितना वृहत रूप लेगा. लॉकडाउन जैसे शब्द भी लोगों के लिए नए थे. कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को तो नुकसान पहुंचा ही लेकिन उतना ही नुकसान बच्चों की शिक्षा को भी हुआ है. कोरोना की पहली लहर में प्राइवेट स्कूल ने तुरंत ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था कर दी. प्राइवेट स्कूल में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चों के लिए मोबाइल, लैपटॉप और वाई-फ़ाई जैसी सुविधा कोई बड़ी बात नहीं थी. लेकिन ग्रामीण इलाकों के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे अभी भी इन सारी सुविधाओं से कोसो दूर हैं. डिजिटल शिक्षा से नहीं जुड़े होने की वजह से सरकारी स्कूल के बच्चों की पढ़ाई पिछले 2 सालों से ठीक से नहीं हो पा रही है.

इस समस्या के समाधान के लिए चुनाव के दौरान जदयू-भाजपा गठबंधन ने 9वीं से लेकर 12वीं तक के बच्चों को टैब या लैपटॉप बांटने का अपने मैनिफेस्टो में वादा किया था. इससे 36 लाख बच्चों की पढ़ाई में सुविधा मिलती. लेकिन ये वादा भी सिर्फ़ चुनावी ‘जुमला’ बनकर रह गया और भी तक इसपर अमल नहीं किया गया है. बिहार सरकार ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार को पत्र लिख धनराशि देने की मांग कही गयी थी. लेकिन केंद्र की ओर से मांग ठुकरा दी गयी थी. इसके बाद बिहार सरकार साल 2021 के जून महीने में बिहार सरकार ने अपने संसाधन से बच्चों को डिजिटल पढ़ाई से जोड़ने की बात कही थी.

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कोरोना की चौथी लहर के शुरुआत के साथ ही सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों और उनके मां-बाप को इस बात फिर से डर सताने लगा कि कहीं इस बार भी स्कूल के बंद होने से उनके बच्चों की पढ़ाई ना छूट जाए. बेगूसराय के बलिया का अविनाश उच्च माध्यमिक विद्यालय में 9वीं कक्षा में पढ़ाई करता है. अविनाश बताता है

पिछले दो सालों में काफ़ी कम स्कूल खुला है. इस वजह से पढ़ाई हो ही नहीं पा रही है. मां-बाप इतने पढ़े लिखे नहीं हैं कि वो घर पर पढ़ाने का काम करें. इंटरनेट से देखकर हम पढ़ाई कर सकते थे लेकिन उसके लिए मेरे पास ना तो फ़ोन है और ना ही इंटरनेट रिचार्ज के लिए पैसा. घर में एक भी स्मार्टफ़ोन भी मौजूद नहीं है.

शिक्षा बजट में वित्तीय वर्ष 2022-23 में 37191 करोड़ रूपए आवंटित किये गए हैं लेकिन कोरोना के दौर में बच्चों को डिजिटल पढ़ाई से जोड़ना का सरकार ने कोई ख़र्च नहीं रखा है. डिजिटल पढ़ाई से जोड़ने के लिए सरकार अभी तक कोई भी योजना बना पाने में विफ़ल रही है. शिक्षाविद अज़ीम खां डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताते हैं

जदयू-बीजेपी गठबंधन की सरकार ने चुनाव के दौरान अपने मैनिफेस्टो में ये वादा किया था कि 9वीं से 12वीं के बच्चों को डिजिटल पढ़ाई से जोड़ा जाएगा. क्यों नहीं जोड़ा गया, क्योंकि सरकार की मंशा ही नहीं है. सरकार अगर चाहे तो उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं होता है. लेकिन सरकार अगर सरकारी स्कूल के बच्चों की शिक्षा पर इतना ध्यान देगी तो फिर आगे के चुनावों में उनके लिए वोटों का ध्रुवीकरण कर पाना नामुमकिन होगा.

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साल 2021 में बिहार को डिजिटल शिक्षा से जोड़ने के लिए शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने  टैब, लैपटॉप और इलेक्ट्रॉनिक्स गैजेट तैयार करने वाली विभिन्न कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की थी. 15 दिनों के अंदर कंपनियों से प्रस्ताव मिलने के बाद विभाग को फिर इस पर विमर्श करना था कि उन्हें बच्चों को छोटा लैपटॉप मुहैया कराना है या टैब.

अज़ीम खां आगे बताते हैं

कोरोना को लेकर अगर सरकार किसी चीज़ को सबसे पहले बंद कर रही है तो वो है शैक्षणिक संस्थान. वैज्ञानिकों ने पहली लहर के बाद ही ये अनुमान करना शुरू कर दिया था कि कोरोना की लहर से अगले 5 सालों तक लोग परेशान रहेंगे. 2 साल बीत गए, अभी कितने साल और जायेंगे ये पता नहीं है. ऐसे में शिक्षा विभाग को सबसे पहले बच्चों की पढ़ाई को सुरक्षित करने का रास्ता सोचना चाहिए था. क्योंकि उनके ऐसा नहीं करने से लाखों बच्चे, ख़ास तौर से छात्राओं में, ड्रॉपआउट होने की संख्या बढ़ी है.

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कुछ ऐसी ही घटना सीवान के गौरियाकोठी में भी देखने को मिली. चांदनी कुमारी साल 2021 में दसवीं की परीक्षा में शामिल होने वाली थीं. लेकिन जब लगातार स्कूल बंद रहें और चांदनी के घर में पढ़ाई का कोई संसाधन मौजूद नहीं था. इसलिए चांदनी के मां-बाप ने उसकी शादी करवा दी. चांदनी बताती हैं

जब स्कूल बंद हुआ तो सब कोई हमेशा बोलने लगा कि बैठकर वक्त बर्बाद हो रहा है. घर में ना ही किताब है और ना मोबाइल की पढ़ाई कर पाए. तो फिर पापा मेरी शादी करवा दिए. अगर हमलोगों को सरकार की ओर से टैब या लैपटॉप मिला होता तो मेरी शादी नहीं होती और हम आज पढ़ाई कर रहे होते.

पटना के बिड़ला मंदिर के पास रहने वाली असीमा (बदला हुआ नाम) की शादी लॉकडाउन में डिजिटल माध्यम के नहीं रहने से हुई थी. हालांकि असीमा की पढ़ाई उसके ससुराल वालों ने नहीं रोकी और वो आज भी अपनी पढ़ाई जारी रखी हुई हैं.

सब पढ़ें-सब बढ़ें योजना की तरफ़ से टैब और लैपटॉप मिलने की प्रक्रिया कहां तक पहुंची इसकी जानकारी के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने जिला शिक्षा पदाधिकारी से बात की तो उन्होंने इस मामले पर बात करने से इनकार कर दिया. इसके बाद टीम ने राज्य स्तरीय अधिकारियों से भी जानकारी लेने की कोशिश की लेकिन विभाग की ओर से कोई जवाब नहीं दिया गया है.