मुझे ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया, पहले से दो महिलाओं का ऑपरेशन हुआ था और वह दर्द से चिल्ला रही थी. मैंने कारण पूछा तो बोला गया कि यह दोनों नशा करती थी, इसीलिए ऐसे चिल्ला रही है. जब मेरा नंबर आया तो मैंने पूछा कि बिना बेहोशी के सुई दिए ही ऑपरेशन करेंगे क्या. तो डॉक्टर बोले हां ऐसे ही करूंगा. डॉक्टर ने कहा कि अभी सुई नहीं देंगे, बाद में देंगे. उसके बाद उन्होंने सर्जरी करनी शुरू कर दी. थोड़ा दर्द हुआ तो हम बर्दाश्त करते गए. लेकिन दर्द से जब हम जोर जोर से चिल्लाने लगे तो चार लोगों ने मिलकर पहले मेरे पैर-हाथ पकड़े फिर डॉक्टर ने सर्जरी की.
यह कहना है परिवार नियोजन की सर्जरी करने वाली पीड़िता प्रतिमा कुमारी का.
प्रतिमा जब ऑपरेशन के लिए जा रही थी तो चिल्लाने की आवाज सुनकर डर से सात अन्य महिलाएं बगैर ऑपरेशन के ही चली गईं. इस मामले में सात महिलाओं के द्वारा शिकायत दर्ज कराया गया है.
यह अमानवीय घटना खगड़िया जिले के अलौली सीएचसी का है. जहां 23 महिलाओं का बंध्याकरन का ऑपरेशन बिना एनेस्थिसीया दिए ही कर दिया गया है. यहां 30 महिलाओं का परिवार नियोजन का ऑपरेशन किया जाना था. यह ऑपरेशन ग्लोबल डेवलपमेंट इनिशिएटिव एनजीओ के द्वारा कराया जा रहा था. मामले ने जब तूल पकड़ा तो सिविल सर्जन डॉ अमरनाथ झा ने जांच करके रिपोर्ट डीएम को सौंपा है. इस मामले में राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी जवाब मांगा है.
प्रतिमा कुमारी बताती हैं जिस तरीके से महिलाओं का ऑपरेशन किया जा रहा था इसका उन्होंने विरोध भी किया, लेकिन ऑपरेशन करने वालों ने कहा ऐसे ही होता है. थोड़ा दर्द होगा, ऐसा कह कर उन्होंने बिना कोई दवा दिए ही चीरा लगा दिया. प्रतिमा बताती हैं कि उन्हें नस खिंचाने जैसा दर्द होने लगा और जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उन्हें दर्द में तड़पता छोड़ दिया गया. उन्होंने बताया कि वो दर्द से चीखती रहीं, चिल्लाती रहीं लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी.
अलौली अस्पताल में मौजूद महिलाओं की मानें तो वे ऑपरेशन के समय दर्द से कराह रहीं थीं. लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं था. महिलाओं का आरोप है कि जिस समय ऑपरेशन किया जा रहा था वहां डॉक्टर भी मौजूद नहीं थे. उन्हें जबरन ऑपरेशन थियेटर में ले जाकर ऑपरेट कर दिया गया. बंध्याकरण के दौरान महिलाओं को बेहोशी का इंजेक्शन दिया जाता है. लेकिन महिलाओं का आरोप है कि ऐसा नहीं किया गया है.
सिविल सर्जन पहुंचे पीड़िता के घर
इस अमानवीय घटना के सामने आने के बाद सिविल सर्जन पीड़िता प्रतिमा कुमारी के घर पहुंचे. सिविल सर्जन अमरनाथ झा के सामने प्रतिमा कुमारी ने कहा कि
डॉक्टर और एनजीओ की लापरवाही की वजह से जान चली जाती. ऑपरेशन के समय जब हम चिल्लाने लगे तब चार लोगों ने पैर-हाथ बांधकर व मुंह दबाकर शांत कराया. ऑपरेशन के बाद दो दवाई देकर घर भेज दिया गया. दवाई से दर्द कम नहीं होने पर निजी क्लिनिक में इलाज कराना पड़ा.
घटना के बाद खगड़िया के स्वास्थ्य व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा हो गया है. महिलाओं ने बताया कि उन्हें जमीन पर लिटा दिया गया था. बेहोशी का इंजेक्शन नहीं दिया गया था. साथ ही कोई और सुविधा भी नहीं दी गई थी.
जिले में पहला मामला नहीं
खगड़िया जिले में यह पहला मामला नहीं है, नवंबर महीने के 11 तारीख को जिले के परबत्ता सीएचसी से भी लापरवाही सामने आई थी. जिले के परबत्ता सीएचसी में दो दर्जन महिलाओं को ऑपरेशन के लिए एक साथ एनेस्थीसीया देकर जमीन पर लेटा दिया गया था. इस मामले में भी वहां काम कर रहे एनजीओ और सीएचसी प्रभारी की लापरवाही सामने आई थी.
वहीं दोनों मामले की जांच के बाद सिविल सर्जन अमरनाथ झा ने कहा कि
दोनों मामले की जांचकर रिपोर्ट डीएम को सौंप दी गई है. इसमें जो भी दोषी पाए जाएंगे, उनके विरूद्ध आवश्यक कार्रवाई की जाएगी. दोनों एनजीओ का अनुबंध रद्द कर दिया गया है. साथ ही सीएचसी प्रभारी को चेतावनी दी गई है कि भविष्य में ऐसी लापरवाही नहीं बरती जाए.
वहीं मामले के बाद राष्ट्रीय महिला आयोग और बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने भी संज्ञान ले लिया है. महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने बिहार के मुख्य सचिव आमिर सुबहानी को पत्र लिखकर मामले पर आपत्ति जताते हुए कड़ी कारवाई की मांग की है. जिसके बाद स्वास्थ्य विभाग ने खगड़िया डीएम से जांच रिपोर्ट मांगी है.
डॉक्टरों का कहना है- बेहोश नही करना सरकारी प्रावधान
मामले में अलौली सीएचसी के प्रभारी मनीष कुमार ने कहा कि
सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग द्वारा इस तरह के ऑपरेशन करने के दौरान मरीज को बेहोश करने का प्रावधान नहीं है. ऑपरेशन में जहां चीरा लगाया जाता है, सिर्फ उसी जगह को इंजेक्शन देकर सुन्न किया जाता है. इस तरीके में मरीज़ होश में ही रहते हैं और ऑपरेशन के औजारों की आवाज व अन्य गतिविधि से डर जाते हैं. इसी वजह से ऐसी घटना हुई. जबकि ऑपरेशन से पहले मरीजों को इसकी जानकारी दी गयी थी.
वहीं अस्पताल के सर्जन डॉ गुलशनोवर का कहना है कि
अलौली सीएचसी में सभी पेशेंट को जाइलोकेन इंजेक्शन दिया गया था. ऑपरेशन किए जाने की जगह को सुन्न कर ऑपरेशन किया गया है. सरकार के नए निर्देश के अनुसार अब पेशेंट को बेहोश नहीं करना है. ऑपरेशन के पूर्व सभी को इसकी जानकारी दी गयी थी. बावजूद इसके कुछ पेशेंट ऑपरेशन की गतिविधि को महसूस कर शोर करना शुरू कर दिए. हालांकि बाद में सभी ठीक है. भला बिना सुन्न किए किसी को चीरा कैसे लगाया जा सकता है? पेशेंट ऐसे ही बोलते हैं.
क्या होता है एनेस्थिसीया?
किसी भी तरह के सर्जरी से पहले मरीज को एनेस्थिसीया का इंजेक्शन दिया जाता है. इस दवा को देने के बाद मरीज़ को एहसास ही नहीं होता कि उसके शरीर पर कहां, क्या हुआ है. लेकिन कई बार यह दवा मरीज पर कम असर करती है. यानि उस स्थिति में शरीर तो सुन्न हो जाता है लेकिन मरीज का दिमाग सारी गतिविधि को महसूस करता रहता है. सर्जरी के दौरान उन्हें एहसास होता रहता है कि कब, कहां, क्या हो रहा है.
लेकिन, एनेस्थीसिया के असर की वजह से वो इस हालत में नहीं होते कि अपनी बात कह पाएं. यहां तक की वो हाथ-पैर भी नहीं हिला डुला पाते हैं. ऐसे में उन्हें तकलीफ का गहरा एहसास होता है. यही एहसास मरीजों में हमेशा के लिए डर भर देता है.